कांग्रेस पिछली बार 70 विधानसभा सीटों पर लड़ी थी और जीती थी 19. कांग्रेस को भी पता है कि लालू यादव इस बार कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं देने वाले, ऐसे में उन्हें कम से कम अपनी जमीन तो तैयार करनी पड़ेगी.
बिहार में चुनाव से आठ महीने पहले कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदलकर सबको चौंका दिया है. कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने गुजरात में कहा था कि कांग्रेस के कई नेता बीजेपी के पे रोल पर हैं, तब यह लगा था कि यह बात केवल गुजरात के संदर्भ में कही गई है. मगर अब जब कांग्रेस ने बिहार में अपना प्रदेश अध्यक्ष बदला है, तो लगता है कि राहुल गांधी के दिमाग में अन्य प्रदेशों के नेताओं के बारे में भी जानकारी है. शुरुआत बिहार से हुई है, राजेश कुमार अब बिहार कांग्रेस के नए अध्यक्ष होंगे. वो औरंगाबाद के कुटुंबा से दो बार के विधायक हैं.
राजेश कुमार के पिता दिलकेश्वर राम भी बिहार के जाने माने नाम रहे हैं. दिलकेश्वर राम चंद्रशेखर सिंह और भागवत झा आजाद के मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके हैं.

हालांकि असली खबर ये नहीं है, असली खबर है कि अखिलेश सिंह को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से क्यों हटाया गया. दरअसल के हटाने की वजह पार्टी में अंदरूनी कलह बताई जा रही है. लालू यादव से नजदीकियां तो अब पुरानी बात हो गई. बिहार के कांग्रेस नेताओं से बात करने पर कई बातों की जानकारी मिलती है कि किस तरह अखिलेश सिंह ने अपने हित के लिए पार्टी को नजरअंदाज किया, चाहे अपने बेटे आकाश सिंह को चुनाव लड़वाना हो या अपने राज्यसभा सीट के लिए लालू यादव के आगे पार्टी हित की बलि देनी हो, या फिर विधान परिषद की सारी सीटें आरजेडी को दे देनी हो. यही नहीं बिहार कांग्रेस के दफ्तर सदाकत आश्रम में जब श्रीकृष्ण सिंह की जयंती का समारोह रखा गया, तो लालू यादव को मुख्य अतिथि बनाया गया.

ऐसी तमाम बातों का जिक्र बिहार के कांग्रेस नेता अखिलेश सिंह के बारे में करते हैं. शायद इसमें से कुछ बातें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के पास भी पहुंची होंगी. फिर शुरू हुआ कांग्रेस का ऑपरेशन बिहार… सबसे पहले कृष्णा अल्लावरु को प्रभारी बनाकर पटना भेजा गया, यहीं से शुरू हुआ खेल. कृष्णा अल्लावरु ने पटना पहुंचते ही पार्टी में गुटबाजी करने वाले नेताओं को चेताया. स्थानीय नेताओं से फीडबैक लेकर दिल्ली भेजना शुरू किया और इसके बाद बिहार से वनवास झेल रहे कन्हैया कुमार की एंट्री हुई. कन्हैया को लेकर कांग्रेस का प्लान एकदम साफ था, उनकी भाषण देने की कला और अपनी बात से लोगों को सहमत कराने की क्षमता का लाभ उठाना. कांग्रेस के कुछ नेताओं के विरोध के बावजूद कन्हैया की पदयात्रा शुरू करा दी गई. यात्रा का नाम दिया गया ‘पलायन रोको, नौकरी दो, नशा नहीं’. हालांकि कांग्रेस के कई नेता इस यात्रा के पक्ष में नहीं थे, लेकिन अभी भी ये यात्रा जारी है.

दरअसल लालू यादव कन्हैया की बिहार में सक्रियता से खुश नहीं बताए जा रहे हैं. ऊपर से पप्पू यादव भी कांग्रेस के लिए ताल ठोक रहे हैं. बिहार में राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाए जाने पर पप्पू यादव का बड़ा ही रोचक बयान आया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के लिए बिहार में बहुत स्पेस है, पार्टी को एक ऐसा लीडरशिप चाहिए जो जननेता हो और ओबीसी और ईबीसी समाज से आता हो. तेजस्वी यादव अपने पिता के बल पर नेता बने हैं. कांग्रेस पार्टी अपना हित तो देखेगी ही.
वहीं नए अध्यक्ष राजेश कुमार का कहना है समय कम है, इम्तिहान बड़ा है. पार्टी की तरफ़ से चुनौती दी गई है, उसका मुकाबला करेंगे. खरगे जी और राहुल जी का धन्यवाद है कि उन्होंने एक दलित के बेटे को इतना बड़ा दायित्व दिया है. गठबंधन के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी का आलाकमान इस पर फैसला करेगा.

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों का मानना है कि बिहार में कांग्रेस किसी भी हालत में लालू यादव को नाराज नहीं कर सकती है. वहां पर कांग्रेस बी टीम ही रहेगी. अखिलेश सिंह के बारे में भी लोगों का मानना है कि लालू यादव से गठबंधन के लिए बातचीत करने के लिए अखिलेश सही व्यक्ति थे, आखिर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उतनी सीटों पर उन्हीं की बदौलत लड़ने में सफल रही. लालू किसी और नेता के वश में नहीं आएंगे. इसके लिए खरगे साहब या राहुल गांधी को ही बात करनी पड़ेगी.
बाकि ये भी सही है कि एक राजनैतिक दल की हैसियत से कांग्रेस को पदयात्रा करना या किन नेताओं को जिम्मेदारी देनी है, ये पार्टी का अधिकार है. कांग्रेस पिछली बार 70 विधानसभा सीटों पर लड़ी थी और जीती थी 19. कांग्रेस को भी पता है कि लालू यादव इस बार कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं देने वाले, ऐसे में उन्हें कम से कम अपनी जमीन तो तैयार करनी पड़ेगी, लोगों तक पहुंचना पड़ेगा, ताकि वह सम्मानजनक सीटों की मांग कर सके, जो जायज हो और जिस पर गठबंधन में विचार किया जा सके.

आठ महीने का वक्त है कांग्रेस के पास जो कि कांग्रेस के लिए कम है. यही करना था तो 2024 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद शुरू कर देते. मगर ये कांग्रेस है जहां कुछ भी करने में वक्त लगता है. इतने कम समय में कांग्रेस इतना जरूर कर सकती है कि वह युवा नेताओं की फौज उतारकर पदयात्रा कर, लोगों के जेहन में आ जाए और लोग उसकी चर्चा करने लगें.
राजेश कुमार के जरिए दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश होगी, जिस पर जीतन राम मांझी और चिराग पासवान का कब्जा है. बिहार में करीब 20 फीसदी दलित हैं जो परंपरागत रूप से सत्ता के साथ ही रहना चाहते हैं. बीजेपी और जेडीयू के पास भी कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है. मगर बिहार में कांग्रेस के लिए खोने को कुछ नहीं है. शायद यही बदलाव कुछ काम कर जाए, ऐसी उम्मीद कांग्रेसी बिहार विधान सभा चुनाव के लिए कर रहे होंगे.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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