एक छोटी सी बच्ची, जो तेज आहट पर ही डरकर अपनी मां के सीने से लिपट जाती होगी, मौत और ताबूत की बात कर रही है. जन्नत और जहन्नुम की बात कर रही है.
कर्नाटक में चौथी कक्षा में पढ़ने वाली एक 9-10 साल की बच्ची का वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें वह स्कूल में एक प्रोजेक्ट बनाकर लाई है, जिसमें वह दिखा रही है कि दो गुड़ियां हैं, एक ने बुर्का पहना है तो दूसरी ने शॉर्ट ड्रेस, बुर्के वाली लड़की के सामने ताबूत है, जिस पर लाश पर फूल बिखरे हैं… जन्नत का नजारा है, वहीं दूसरी गुड़िया के सामने ताबूत में लाश पर बिच्छू और सांप बिखरे हैं और पीछे लगी तस्वीर में जहन्नुम का नजारा है. अब सोचिए एक छोटी सी बच्ची, जो तेज आहट पर ही डरकर अपनी मां के सीने से लिपट जाती होगी, मौत और ताबूत की बात कर रही है. जन्नत और जहन्नुम की बात कर रही है. उसके दिलोदिमाग पर इसका कितना गहरा असर पड़ा होगा. धार्मिक कट्टरता कह लें… या धर्म से जुड़े नियम-पालन क्या इस बच्ची को समझ आ रहे होंगे. अभी उसके गुड़ियों संग खेलने के दिन हैं, लेकिन अब उसे गुड़ियों में भी जिंदगी-मौत और जन्नत-जहन्नुम का पाठ पढ़ाकर उलझाया जा रहा है.
यहां किसी धर्म के विरोध की बात नहीं, बल्कि बच्चों के दिल में मौत और उसके बाद का डर डालने की खिलाफत है. यहां विरोध किसी विशेष धर्म से जुड़े नियम पालन का भी कतई नहीं है. सभी धर्मों का सम्मान हमारी संस्कृति का हिस्सा है.
बता दूं कि ये मामला चामराजनगर जिले के स्कूल का है. इससे जुड़े वीडियो में ये छात्रा कहती है कि अगर आप बुर्का पहनते हैं तो मरने के बाद आपके शरीर को कुछ नहीं होता वहीं आप छोटे कपड़े पहनते हैं तो आप जहन्नुम में जाएंगे और सांप और बिच्छू आपके शरीर को खा जाएंगे.छात्रा ने ये भी कहा कि जो शख्स अपनी बीवी को बिना बुर्का पहने घर में घूमने देता है वो भी पापी है. ये वीडियो 5 जनवरी का बताया जा रहा है.
इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर काफी रिएक्शन आ रहे हैं. कई लोगों ने इस बयान की निंदा की है तो वहीं कुछ ने इसे सही बताया है. कुछेक ने बच्ची के घर के माहौल और स्कूल में शिक्षा की प्रकृति पर भी सवाल उठाया है. बात बढ़ी तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और पुलिस महानिदेशक को टैग करते हुए कई ट्वीट में मामले में तत्काल कार्रवाई और जांच की मांग की गई है. घटना के सामने आने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने जांच का आश्वासन दिया था.
इस घटना ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है. जब बच्चों का मानसिक विकास हो रहा होता है तो इस तरह का कंटेंट उनके दिल-दिमाग पर गहरा असर छोड़ता है. बच्चे इनसे प्रभावित होते हैं, कई बार इन पर यकीन कर लेते हैं तो अक्सर इन बातों को अपने जीवन में इतना उतार लेते हैं और उससे डरने लगते हैं कि ऐसा नहीं किया तो ऐसा हो जाएगा और उनका पूरा जीवन ही उलट-पुलट हो जाता है.
बात तब और खराब हो जाती है जब इन बातों पर कोई सही राय नहीं मिल पाती या यूं कहें बच्चा उस पर विश्वास ना करे इसकी कोई काट उन्हें नहीं मिल पाती तो वह और उलझता चला जाता है. ऐसे में मां-बाप और शिक्षक ही अपने बच्चों को सही रास्ता दिखा सकते हैं.
सोशल मीडिया पर यूजर्स की अलग-अलग राय
बच्ची इसमें वीडियो के जरिए ये भी कहती दिख रही है कि शॉर्ट ड्रेस पहनने वाली लड़किया जहन्नुम में जाएंगी और घर में जो शौहर अपनी पत्नी को बिना बुर्के के रखता है, उसकी नमाज या दुआ स्वीकार नहीं होती. इस पर एक यूजर ने लिखा कि यह मामला धार्मिक कट्टरता और बच्चों का मासूमियत के बीच संतुलन को लेकर गंभीर बहस छेड़ सकता है.बच्चों को शिक्षा के माध्यम से तार्किक सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए.
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना. बच्ची को तो ये सिखाना चाहिए कि सभी धर्मों का सम्मान करे. दूसरे के धर्म के लोग दोजख की आग में जलेंगे ये सिखाना ठीक नहीं है. आप अपने धर्म का सम्मान करना सिखा रहे हैं, तो इतना प्रेम आपको बच्चे में डालना होगा कि वह दूसरे के धर्म का भी सम्मान करे.
एक अन्य सोशल मीडिया यूजर ने कहा कि इसमें बवाल की क्या बात है. वह अपने धर्म की बात कर रही है. पर्दे में रहने में क्या बुराई है, जिसको इसमें बुरा नजर आ रहा वो अपना देखे. हर कोई अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करता है. अपने धर्म की अच्छी बातों को लोगों के सामने रखता है तो इसमें बुराई क्या है? हर मां-बाप को अपनी बच्ची को ऐसी नेक परवरिश देनी चाहिए.
वहीं एक अन्य सोशल मीडिया यूजर ने कहा कि छोटी-सी बच्ची दो ताबूत लेकर प्रोजेक्ट में आई, सोचिए उसे किस तरह का परिवेश मिल रही होगी. अभी उसकी उम्र है ये सोचने की कि उसकी मौत के बाद क्या होगा. उसका तो अभी सपने बुनने का समय है. बुर्का या कुछ अन्य नियम जब वह थोड़ी समझदार होगी अपने आप समझ लेगी.
बहुत-सी चीजें बच्चें अपने घर में माता-पिता या अन्य के देखकर खुद ही सीख जाते हैं. ये जहन में जबरदस्ती डालने की जरूरत नहीं है. अभी छोटी-सी बच्ची के दिमाग में जन्म और मरण को लेकर इतना बोझ क्यों डालना? हर चीज का समय होता है. वो अपने समय से समझ लेगी.
एक यूजर ने लिखा कि लोग जन्नत और जहन्नुम की बात करते हैं, लेकिन आज तक कोई जन्नत जहन्नुम से लौटकर आया है क्या? किसे क्या पता है कि मरने के बाद कहां जाएंगे, कहां नहीं. ये सब बकवास है, बच्चों के दिमाग में इस तरह की चीजें नहीं डालनी चाहिए फिर चाहे वह कोई भी धर्म क्यों न हो.
एक यूजर ने पूरी कहानी में हिन्दू-मुस्लिम एंगल में जोड़ दिया. उन्होंने लिखा कि जो लड़कियां पर्दे में रहती हैं तो उनके साथ छेड़खानी की घटनाएं कम हो रही हैं, जबकि दूसरे धर्म की लड़कियां अजीबोगरीब कपड़े पहनकर घूमती हैं तो उनके साथ छेड़खानी हो रही है. उनके साथ रेप की घटनाएं हो रही हैं.इसलिए कोई भी धर्म हो लड़कियों को पर्दे में ही रहना चाहिए.
बच्चे हैं, उन्हें पंख चाहिए उड़ने के लिए…
खैर ये बहस तो लंबी है. बच्ची है तो इसलिए सवाल भी हो रहे हैं. यही बात कोई बड़ी लड़की या महिला करती तो शायद बात ही ना होती. जिस उम्र में बच्चे अपने कैनवास पर रंग बिखेर रहे होते हैं ऐसे में जहन्नुम और मौत की बातें करना कितना उचित है.. बच्चे हैं, उन्हें पंख चाहिए उड़ने के लिए…
माता-पिता उन्हें पंख दे सकते हैं… उड़ान दे सकते हैं. उन्हें बंधन चाहिए…प्रेम का बंधन.. अपने माता-पिता के आंचल का बंधन… किसी डर या नियम का बंधन नहीं, जिसका पालन नहीं किया तो वे जहन्नुम में चली जाएगी. कुछ सिखाना भी है तो अच्छा तर्क देकर सीखा सकते हैं.. दोजख या मौत की बात करके नहीं.
लेखक परिचय- वंदना वर्मा NDTV में डेप्यूटी एडिटर हैं.
(डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.)
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