भारत में बीते 60 सालों में 250 भाषाएं विलुप्त हो गईं, अमेरिका में हैं 328 जीवित भाषाएं, जानिए ऐसे कई Unknown Facts​

 Unknown Facts About Languages: भाषाओं में भी ख़ासतौर पर उन भाषाओं के जल्दी विलुप्त होने का ख़तरा है, जिनकी कोई लिपि नहीं है. इन भाषाओं के साथ चिंता की बात ये है कि इन्हें बोलने वाले लोग ही गिने चुने रह गए हैं.

Unknown Facts About Languages: भारत में सैकड़ों मातृभाषाएं हमारी हज़ारों साल से चली आ रही विविध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं, एक समृद्ध इतिहास का परिचय कराती हैं, एक जीवंत समाज को बयान करती हैं, लेकिन अफ़सोस आज स्थिति ये है कि हमारी कई भाषाएं धीरे-धीरे मरती जा रही हैं. लुप्त होती जा रही हैं. उन्हें बोलने वाले बस गिने-चुने ही रह गए हैं.

आप हैरान होंगे ये जानकर कि भारत में 19,500 मातृभाषाएं हैं. इसीलिए कहा जाता है कि यहां कोस-कोस पर बदले पानी, तीन कोस पर वाणी. यानी यहां हर कोस पर पानी बदल जाता है और तीन कोस पर भाषा, बोली बदल जाती है. ये बताता है कि कितनी विविधता हमारे देश में है.

क्या आपको पता है

19,500 में से 121 ऐसी मातृभाषाएं हैं, जिन्हें दस हज़ार से ज़्यादा लोग बोलते हैं.इन 121 भाषाओं में से 22 ऐसी हैं, जिन्हें संविधान की आठवीं अनूसूची के तहत भाषा का दर्जा दिया गया है.भारत की 96.71 फीसदी आबादी इन 22 भाषाओं को बोलती है.आठवीं अनुसूची में शामिल ये जो 22 भाषाएं हैं, वो हैं असमिया, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी.इसके अलावा 99 अन्य भाषाएं हैं, जिन्हें बोली या Dialect कहा जाता है. इनमें भी कई भाषाएं हैं, जिन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग हो रही है. जैसे अंगिका, बंजारा, बजिका, भोजपुरी, भोटी, भोटिया, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, धतकी, गढ़वाली, कुमाऊंनी, हिमाचली, गोंडी, गुज्जरी, हो, कचाछी, कातमपुरी, कारबी, खासी, कोडवा, कुक बराक, कुरुख, कुर्माली, लेपचा, लिम्बू, मिजो, मगही, मुंदारी, नागपुरी, निकोबारी, पाली, राजस्थानी, सम्बलपुरी, शौरसेनी, सिरैकी, तेनियादी, तुलू वगैरह.ये तो वो भाषाएं हैं, जिनके लिए समय-समय पर संसद में मांग उठती रहती है. हालांकि, इन्हें शामिल किया जाएगा या नहीं और किया जाएगा तो कब, इसकी कोई समय सीमा तय नहीं है.

हर साल क़रीब चार भाषाएं लुप्त हो रहीं

ये तो बस कुछ उदाहरण थे. भारत में और भी कई भाषाएं हैं, जो इनसे भी ज़्यादा संकट में हैं. अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में कोई उनका नामलेवा भी नहीं बचेगा. यही सबसे बड़ी चिंता है कि भारत में भाषाओं की विविधता का ये संसार धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है. कई भाषाएं ख़ासतौर पर जनजातीय इलाकों की भाषाओं को बोलने वाले तो बस इक्का-दुक्का लोग ही रह गए हैं. भारत में भाषाओं के लुप्त होने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हर साल क़रीब चार भाषाएं लुप्त हो रहीं हैं.

बीते साठ साल में भारत की 250 भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं.42 भारतीय भाषाओं पर विलुप्ति का गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है, जो दुनिया के किसी भी और देश से ज़्यादा है.197 और भाषाओं को भी ख़तरा है, लेकिन थोड़ा कम.भारत ही नहीं दुनिया भर में 40% ऐसी देसी भाषाएं हैं, जो विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं.

जिनकी लिपि नहीं, उन्हें ज्यादा खतरा

भाषाओं में भी ख़ासतौर पर उन भाषाओं के जल्दी विलुप्त होने का ख़तरा है, जिनकी कोई लिपि नहीं है. इन भाषाओं के साथ चिंता की बात ये है कि इन्हें बोलने वाले लोग ही गिने चुने रह गए हैं. जैसे कई आदिवासी समाजों की भाषाओं-बोलियों की तो स्थिति ये है कि अगर उस आदिवासी समुदाय के कुछ वरिष्ठ लोग गुज़र गए तो वो भाषा भी उनके साथ ख़त्म हो जाएगी और ऐसा हो भी रहा है. जबकि इन भाषाओं में उन स्थानीय आदिवासी लोगों की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का रिकॉर्ड होता है. भाषा ख़त्म होने के साथ वो सब भी ख़त्म हो जाता है. उस जानकारी को हासिल करने के स्रोत बहुत ही कम रह जाते हैं. हम एक बड़े समृद्ध संसार को समेटने से वंचित रह जाते हैं.

जैसे भारत में अरुणाचल प्रदेश की कोरो भाषा को बोलने वाले बस कुछ सौ लोग ही रह गए हैं.अंडमान द्वीप समूह की भाषा ग्रेट अंडमानीज़, जो कभी वहां की कई जानजातियों द्वारा खूब बोली जाती थी, उसे बोलने वाले बस कुछ बुज़ुर्ग ही बाकी हैं.निकोबार द्वीप समूह की निकाबोरी भाषा भी विलुप्ति की ओर बढ़ रही है, क्योंकि युवा पीढ़ी उसे छोड़ती जा रही है.सेंटिनलीज़ – ये भी अंडमान-निकोबार के उत्तरी सेंटिनल द्वीप में बोली जाती है, लेकिन इसे बोलने वाले समुदाय के अलग-थलग रहने के बारे में इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है.त्रिपुरा की साइमार भी ऐसी ही एक भाषा है, जिसे बोलने वाले लोग 2 हज़ार भी नहीं रह गए हैं.हिमाचल प्रदेश की माझी को बोलने वालों की तादाद भी 2 हज़ार से कम है.कोरो एक तिब्बती-बर्मन भाषा है, जो अरुणाचल प्रदेश में बोली जाती है और इसे बोलने वाले भी काफ़ी कम रह गए हैं.तमिलनाडु की नीलगिरि पहाड़ियों में बोली जाने वाली तोड़ा को बोलने वाले भी कम ही लोग रह गए हैं.इसी तरह निहालीस, दारमा, गांगते, सुमी, ज़ाखरिंग, महासुवी… ऐसी कई और भी बोलियां हैं, जिन्हें संजो कर रखने की कोशिश नहीं की गई तो जल्द ही हम इन्हें खो देंगे.

भाषाएं भारत के इतिहास को देखने का एक आईना भी हैं. भारत के विराट भूगोल में बसने वाले हमारे समाजों के अंदर झांकने की कुंजी हैं. भाषाएं भारत की ख़ूबसूरत परंपराओं की वाहक हैं. जहां पांच हज़ार साल पुरानी तमिल भाषा भारत का गौरव है, वहीं सबसे अधिक बोली जाने वाली हिंदी देश के तमाम भाषा भाषी लोगों और इलाकों के बीच एक पुल का काम करती है.

इनके अलावा भी बांग्ला, मराठी, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, ओड़िया, पंजाबी, गुजराती, अवधी, मैथिली, डोगरी ऐसी तमाम भाषाएं, किसके नाम लें, किसके न लें… ये सभी भाषाएं हमें समृद्ध बनाती हैं, इनका साहित्य हमें रोशनी दिखाता है और ये भाषाएं आपस में किसी माला की तरह गुंथी हुई भी होती हैं. एक भाषा के शब्द कब किसी दूसरी भाषा के हो जाते हैं, पता ही नहीं लगता. समय के साथ भाषाओं का ये गुम्फन उन्हें और संपन्न और चमकीला बनाता है, लेकिन इन भाषाओं के बीच झगड़े कराने वाले छोटे दिल इस बड़ी बात को नहीं समझ पाते.

अक्सर हमारे राजनेताओं की संकीर्ण सोच इन भाषाओं की विराटता और विविधता के आगे बौनी साबित होती रही है. भाषाओं के नाम पर झगड़ा करने वाले ये समझ ही नहीं पाते कि हर भाषा की अपनी अहमियत, अपनी विरासत है, एक विराट इतिहास है, जो भारत को भारत बनाता है. बस चिंता है तो विलुप्ति की ओर बढ़ी रही भाषाओं के भविष्य की. पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के अलावा देश के कई अन्य जनजातीयों की भाषाएं सबसे ज़्यादा ख़तरे में हैं.

क्यों भाषाएं समाप्त हो रहीं

इसके कारण भी कई हैं. जैसे-जैसे कथित आधुनिकीकरण हो रहा है, लोग शहरी इलाकों में बढ़ रहे हैं. युवा पीढ़ियां उन भाषाओं को अपना रही हैं, जो पहले से काफ़ी प्रभावी हैं और नए इलाकों के समाज से उन्हें जोड़ती हैं. अपनी और अपने पुरखों की मातृभाषाओं से दूर होती जा रही हैं. इसके अलावा जिन भाषाओं में नौकरियों की संभावनाएं ज़्यादा हैं, वो प्रभावी साबित हो रही हैं और बाकी भाषाएं उसकी क़ीमत चुका रही हैं. जैसे हिंदी और अंग्रेज़ी के प्रभुत्व के चलते कई भाषाएं कमज़ोर पड़ जा रही हैं. यही नहीं नए दौर के साथ लोग भी अपने बच्चों को अपनी विरासत से जुड़ी दुधबोली भाषाएं नहीं सिखा रहे हैं. 

मातृभाषाओं को संजोना, आगे की पीढ़ियों तक उनका प्रसार करना वक़्त की ज़रूरत है. इसकी अहमियत समझते हुए ही साल 2000 से हर साल 21 फरवरी को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के तौर पर मनाया जाता है. 1999 में यूनेस्को ने दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाने के लिए 21 फरवरी को एक ख़ास दिन के तौर पर मनाने का फ़ैसला किया. दुनिया की बात करें तो भाषाओं की डायरेक्टरी Ethnologue के मुताबिक, दुनिया में 7,111 जीवित भाषाएं हैं, जो आज भी इस्तेमाल हो रही हैं, लोगों द्वारा बोली जाती हैं. चीनी, स्पेनिश, अंग्रेज़ी, हिंदी और अरबी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाएं हैं. दुनिया की 40% से ज़्यादा आबादी इन पांच भाषाओं को बोलती है. 

क्या आप जानते हैं कि भाषाओं के मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध देश कौन सा है?ये है प्रशांत महासागर का द्वीपीय देश पापुआ न्यू गिनी.90 लाख से कम आबादी वाले इस देश में 840 से ज़्यादा जीवित भाषाएं हैं.यह देश कुदरती तौर पर बहुत ही समृद्ध है.इसके बाद दूसरा स्थान है पूर्वी एशियाई देश इंडोनेशिया का.क़रीब 28 करोड़ की आबादी वाले इस देश में 711 जीवित भाषाएं हैं.तीसरे स्थान पर है अफ्रीकी देश नाइजीरिया.क़रीब 21 करोड़ की आबादी वाले नाइजीरिया में 517 जीवित भाषाएं हैं, जो आज भी बोली जाती हैं.इस मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है.दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले भारत में 456 जीवित भाषाएं हैं.इनमें हम सभी मातृभाषाओं की बात नहीं कर रहे.पांचवें स्थान पर है अमेरिका, जहां 328 जीवित भाषाएं हैं.अधिकतर भाषाएं वहां के मूल निवासियों द्वारा बोली जाती हैं.छठे स्थान पर है ऑस्ट्रेलिया, जहां 312 जीवित भाषाएं हैं.ऑस्ट्रेलिया की क़रीब 23 फीसदी आबादी अपने घर पर अंग्रेज़ी नहीं, बल्कि अपनी मातृभाषा बोलती है.चीन सातवें स्थान पर है, जहां 309 जीवित भाषाएं हैं.आठवें स्थान पर है उत्तर अमेरिका का देश मैक्सिको, जहां 292 भाषाएं हैं.नौवें स्थान पर है अफ्रीकी देश कैमरून, जहां 274 भाषाएं हैं.221 भाषाओं के साथ ब्राज़ील दसवें स्थान पर है.

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