भारत ने चिंता जताते हुए भूकंप प्रभावित म्यामांर और थाइलैंड को ज़रूरी मदद पहुंचाने का प्रस्ताव दिया है. भारत इस सिलसिले में दोनों देशों के साथ संपर्क में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूकंप से हुई तबाही पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत दोनों देशों की हर तरह से मदद करने को तैयार है.
दुनिया की एक बड़ी आबादी ऐसी ज़मीन के ऊपर बसी हुई है जिसके नीचे लगातार हलचल बनी हुई है. इस हलचल के कारण जो भारी दबाव बन रहा है वो आए दिन भूकंपों की शक्ल में सामने आता है और ऊपर रिहायशी इलाकों में तबाही मचाता है. ऐसा ही एक वाकया शुक्रवार को फिर सामने आया. भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में आए 7.7 की तीव्रता के भूकंप ने एक बड़े इलाके में तबाही मचाही है और उसका असर 900 किलोमीटर दूर थाइलैंड के बैंकॉक तक में दिखा जहां कुछ इमारतें ज़मींदोज़ हो गईं. एनडीटीवी एक्स्प्लेनर में आज इसी ज़लज़ले से हुई तबाही और उसके कारणों पर बात करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि भारत में कौन से ऐसे इलाके हैं जहां भूकंप से ऐसी तबाही की आशंका बनी हुई है.
म्यामांर में शुक्रवार की दोपहर आम दिनों की तरह चहल पहल थी कि अचानक अपने पैरों के नीचे ज़मीन के हिलने से लोग दहशत में आ गए. भारतीय समय के मुताबिक 11 बजकर 50 मिनट पर अचानक आए इस भूकंप की तीव्रता 7.7 मापी गई, जो बहुत ज़्यादा थी. इस भूकंप का केंद्र म्यामांर की राजधानी नेपिटॉ से क़रीब ढाई सौ किलोमीटर दूर सैगाइंग शहर के पास था और जम़ीन के क़रीब 10 किलोमीटर नीचे. इस भूकंप से म्यांमार में भारी तबाही की ख़बरें सामने आ रही हैं. भूकंप के 12 मिनट बाद एक और भूकंप यानी आफ्टरशॉक, इसकी भी तीव्रता 6.4 थी जो काफ़ी ज़्यादा थी.
भूकंप के बाद लगाई गई इमरजेंसी
पहले भूकंप से कमज़ोर पड़ी कई इमारतें दूसरे भूकंप में ढह गईं. कई लोगों को तो संभलने का भी मौका नहीं मिला. जो जानकारियां सामने आ रही हैं उनके मुताबिक म्यामांर में हताहतों की तादाद सैकड़ों में होने की आशंका है और सैकड़ों इमारतें और मकान ज़मींदोज़ हो गए हैं. हालात को देखते हुए वहां इमरजेंसी लगा दी गई है.
म्यांमार में भूकंप से हुए नुक़सान का अंदाज़ा आप इस तस्वीर से लगा सकते हैं. सैगाईं शहर में इरावड़ी नदी पर बना 91 साल पुराना आवा ब्रिज इस भूकंप के झटकों से टूट गया. ये पुल ब्रिटिश दौर में बना था. इसके साथ ही राजधानी नेपिटॉ और मांडले शहर की कई ऊंची इमारतों को भी भूकंप से नुकसान पहुंचा है. सैकड़ों घरों में दरारें आ चुकी हैं. राहत और बचाव का काम चल रहा है. जिसमें म्यांमार की सेना के अलावा अन्य सुरक्षा बलों के जवान जुटे हुए हैं. म्यांमार के कई शहरों के अस्पतालों में हताहतों को लाए जाने का सिलसिला जारी है. दूर दराज़ के कई इलाकों में तो अभी नुक़सान का ठीक से अंदाज़ा भी नहीं लग पाया है. इस बीच रात होने से राहत और बचाव के काम में दिक्कतें आ रही हैं.
144 को हुई मौत, 732 लोग घायल
म्यांमार की फौजी सरकार के मुताबिक अब तक 144 लोगों के मारे जाने और 732 लोगों के घायल होने की सूचना है. लेकिन ये सही तस्वीर नहीं लग रही. तबाही इससे कहीं ज़्यादा होने की आशंका है. दरअसल म्यांमार में फौजी शासन होने के कारण वहां से तस्वीरें और सूचनाएं आना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन ये पता लग रहा है कि भूकंप से सैगाइंग शहर समेत म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले में जान माल का काफ़ी नुकसान हुआ है. कई इमारतें जम़ींदोज़ हो गई हैं. भूकंप प्रभावित इलाकों में मोबाइल फ़ोन और बिजली की व्यवस्था चरमरा गई है. इस कारण वहां से सूचना मिलना और मुश्किल हो गया है. म्यांमार में प्रेस पर तमाम तरह की बंदिशें हैं और विदेशी पत्रकारों को बहुत कम इजाज़त मिलती है. इसलिए सूचनाएं थोड़ा और धीमी आएंगी.
- म्यांमार में आए इस भूकंप का असर भारत, चीन, थाईलैंड, वियतनाम और बांग्लादेश तक महसूस हुआ. भारत में इम्फ़ाल और कोलकाता में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए म्यांमार के बाहर भूकंप से सबसे ज़्यादा तबाही की तस्वीरें थाइलैंड से सामने आईं.
- भूकंप के केंद्र से क़रीब 900 किलोमीटर दूर बैंकॉक में भूकंप के कारण एक तीस मंज़िला इमारत गिर गई जिसे बनाने का काम अभी चल ही रहा था.
- तीस मंज़िल की ये इमारत भूकंप के झटकों से कुछ ही पलों में भरभराकर गिर पड़ी.
- जानकारी के मुताबिक इस इमारत को बनाने में 400 लोग काम कर रहे थे. जिनमें से कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई और कम से कम 84 लोग इमारत के मलबे में दबे बताए गए.
- बैंकॉक के पुलिस उपप्रमुख ने कहा कि उन्हें आशंका है कि सैकड़ों लोग भूकंप से जुड़ी घटनाओं में घायल हुए हैं और अभी सही संख्या का पता लगना बाकी है.
- थाइलैंड में भूकंप से हुए नुक़सान के बाद वहां के प्रधानमंत्री ने देश में इमरजेंसी घोषित कर दी है.
- बैंकॉक में भूकंप के झटके इतने तेज थे कि कई ऊंची इमारतों के टॉप पर बने स्विमिंग पूल के पानी में इतनी हलचल मच गई कि वो किसी झरने की तरह नीचे गिरने लगा
- जो भी इमारत ज़रा भी कमज़ोर थी वो या तो गिर पड़ी या उसमें दरारें आ गईं.
- दो ऊंची इमारतें भूकंप से इतनी हिल गईं कि आपस में ही टकरा गईं. दोनों ही इमारतों को इससे काफ़ी नुक़सान पहुंचा.
- भूकंप के चलते बैंकॉक एयरपोर्ट से विमानों की उड़ान रोक दी गईं.
- थाइलैंड सरकार ने भी इमरजेंसी का एलान कर दिया है.
भारत ने भूकंप के बाद के हालात पर चिंता जताते हुए भूकंप प्रभावित म्यामांर और थाइलैंड को ज़रूरी मदद पहुंचाने का प्रस्ताव दिया है. भारत इस सिलसिले में दोनों देशों के साथ क़रीबी संपर्क में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूकंप से हुई तबाही पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत दोनों देशों की हर तरह से मदद करने को तैयार है. आपको बता दें की थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में अगले ही हफ़्ते BIMSTEC की बैठक होनी है जिसमें अन्य देशों के नेताओं के अलावा ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी भी जाने वाले हैं.
भूकंप का केंद्र कहां पर था और भूकंप कैसे आते हैं
अमेरिका की यूनाइटेड स्टेट्स जियोलोजिकल सर्विस – USGS के मुताबिक 7.7 की तीव्रता वाले इस भूकंप का केंद्र म्यांमार के सैगाइंग शहर के क़रीब था और ज़मीन से क़रीब दस किलोमीटर नीचे था. इसमें लाल रंग जितना गहरा है वहां भूकंप की तीव्रता उतनी ही ज़्यादा महसूस की गई. इसका असर भारत, चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, थाइलैंड तक महसूस किया गया. दरअसल म्यांमार में पहले भी ऐसे भूकंप आते रहे हैं. पहले भी यहां बड़े भूकंप आए हैं. इसकी वजह है यहां भारतीय टैक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट के बीच लगातार होने वाली रगड़ से पैदा तनाव जिसे Strike Slip faulting कहा जाता है.
क़रीब 20 करोड़ साल पहले धरती का सुपर कॉन्टिनेंट पैनजिया टूटना शुरू हुआ जिससे कई महाद्वीप टूट कर निकले. इनमें से एक था गोंडवाना जो पैनजिया का दक्षिणी हिस्सा था. क़रीब दस करोड़ साल पहले इस सुपर कॉन्टिनेंट गोंडवाना से भारतीय टैक्टोनिक प्लेट टूटकर अलग निकली और उत्तर की ओर बढ़नी शुरू हुई. चार से पांच करोड़ साल के बीच भारतीय प्लेट उत्तर की ओर यूरेशियन प्लेट से टकरानी शुरू हुई. भारतीय प्लेट हर साल 5 सेंटीमीटर उत्तर की ओर बढ़ती गई और इसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय और यूरेशियन प्लेट्स के बीच भारी दबाव बन गया.
भारतीय टैक्नटोनिक प्लेट, यूरेशियन प्लेट के नीचे जाने लगी और इससे पैदा दबाव के नतीजे के तौर पर हिमालय बनना शुरू हुआ. दबाव से ऊपर उठी ज़मीन हिमालय की शक्ल में सामने आने लगी. भारतीय प्लेट आज भी हर साल 5 सेंटीमीटर यूरेशियन प्लेट के नीचे जा रही है, इसी दबाव की वजह से हिमालय की ऊंचाई आज भी बढ़ रही है. और इसी कारण हिमालय को दुनिया का सबसे युवा पहाड़ माना जाता है. भारतीय और यूरेशियन प्लेट के बीच ये भयानक दबाव जब एक क्रिटिकल प्वॉइंट तक पहुंच जाता है कि टैक्टोनिक प्लेट उसे बर्दाश्त नहीं कर पातीं तो वो टूटती हैं, और उससे पैदा होने वाली भयानक ऊर्चा भूकंप की शक्ल में सामने आती है. यही वजह है कि पूरा हिमालयी इलाका भूकंप के लिहाज से काफ़ी संवेदनशील है.
इस लाल लाइन को जो ये बता रही है कि भारतीय प्लेट कहां यूरेशियन प्लेट के नीचे जा रही है और इस पूरे इलाके में ज़मीन के नीचे भयानक दबाव होने के कारण भूकंप आते हैं. इसी के क़रीब है सैगाइंग फॉल्ट. सैगाइंग फॉल्ट एक तरह से पश्चिम में भारतीय प्लेट और पूर्व में यूरेशियन प्लेट के बीच है. भारतीय प्लेट उत्तर की ओर बढ़ रही है और यूरेशियन प्लेट पर रगड़ मार रही है. इस पूरे इलाके में इससे पहले भी ऐसे बड़े strike slip earthquake आते रहे हैं जिनकी तीव्रता 7 या उससे ज़्यादा रही है.
अब सवाल ये है कि ये भूकंप या ऐसे और भूकंप हमारे लिए क्या संकेत हैं..भारत में भूकंप के लिहाज़ से सबसे संवेदनशील इलाके में हिमालयी इलाके शामिल हैं जहां ज़मीन के नीचे लगातार हलचल है. भारतीय प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट पर दबाव बनाए हुए है. हिमालयी इलाके में बीते कुछ दशकों में कई भयानक भूकंप आए हैं.
इन वर्षों में आठ की तीव्रता से अधिक के भूकंप आए हैं. लेकिन लाल रंग से जो ये इलाका आप देख रहे हैं यहां बीते दो से तीन सौ साल में आठ की तीव्रता से ऊपर का भूकंप नहीं आया है. ऐसे में इसे सेंट्रल साइज़्मिक गैप कहा जाता है जहां एक बड़े भूकंप का आना बाकी है. कई बड़ी रिसर्च कहती हैं कि ये भूकंप यहां कभी भी आ सकता है.
इस पूरे मुद्दे पर देश के जाने माने अर्थक्वेक सांइटिस्ट डॉ विनीत गहलोत जो वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालय जियोलोजी के डायरेक्टर हैं उन्होंने बताया कि म्यांमार में सैगाइंग इलाके में जो ये भूकंप आया है, उसमें कोई शक नहीं है कि वो उतना ही संवेदनशील है जितना का हिमालय है. फर्क बस इतना है कि हिमालय में इससे बड़े भी भूकंप आए हैं, सैगाइंग इलाके में उतने बड़े भूंकप नहीं आए हैं. ये इंडियन प्लेट का ही पार्ट है. ये इलाका भी संवेदनशील है.
भूंकप से दिल्ली, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, मेरठ जैसे तमाम बड़े घने रिहायशी इलाकों के लिए कितना ख़तरा है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हिमालय में इससे बड़े-बड़े भूकंप आए हैं और सगाइंग फॉल्ट पर उतने बड़े भूकंप नहीं आए हैं जितने हिमालय में आते हैं. हिमालय में तो हमारे पास सबसे बड़ा भूकंप 8.6 का 8 6 का जो आसाम में आया था वो बहुत बड़ा भूकंप था उसकी तुलना में यह भूकंप तो बहुत छोटे भूकंप है. 7.77 पॉइंट. वहां पर अभी तक सगाई फौल्ट पर कोई बड़ा भूकंप मतलब बड़ा जिसको ग्रेट अर्थक्वेक की कैटेगरी में कहते हैं, उतना बड़ा भूकंप नहीं आया है. तो हिमालय उस लिहाज से इस क्षेत्र के मुकाबले कहीं ज्यादा संवेदनशील है. हिमालय में बड़े काफी बड़े भूकंप आते हैं. आपको याद होगा 1936, 1934 का जो भूकंप था, बिहार और नेपाल का उसमें भूकंप तो आया था हिमालय में लेकिन उससे ज्यादा डैमेज जो हुआ था. वो मैदानी क्षेत्र में हुआ था जो बिहार का इलाका था उसमें ज्यादा डैमेज हुआ था तो. इसलिए उसके चलते जो ये वाले भूकंप है जो हिमालय में भूकंप आते हैं वो उनके आने की प्रक्रिया की वजह से जो इलाके हैं वो ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं और और जहां तक बात आप उसकी नोएडा, दिल्ली की करते हैं तो देखिए आपको याद होगा 1833 में जो भूकंप आया था गढ़वाल में श्रीनगर देवप्रयाग के पास में तो उसमें जो बहुत डैमेज हुआ था. मथुरा में बहुत डैमेज हुआ था. उसमें बल्कि जो उसको कुतुब मीनार थी उसको भी डैमेज हो गया था. तो जब भी कोई बड़ा भूकंप आता है उसका सीधा असर जो है वो मैदानी क्षेत्र और दिल्ली के आसपास के इलाकों में पड़ता .
हिमालय में कभी भी कोई बड़ा भूकंप आ सकता है, ख़ासतौर पर गढ़वाल इलाके में जिसे सेंट्रल साइज़्मिक गैप कहते हैं… हम भूकंप नहीं रोक सकते लेकिन उससे जुड़ा नुक़सान कम कर सकते हैं… ऐसे में क्या किया जाना चाहिए?इस सवाल के जवाब पर उन्होंने कहा कि भूकंप आ सकता है खासतौर पर गढ़वाल इलाके में जिसे सेंट्रल साइज कैप कहते हैं. हम भूकंप को नहीं रोक सकते. लेकिन उससे जुड़ा नुकसान कम कर सकते हैं. स्पेशली जो कुमाऊं का इलाका है और ईस्टर्न गढ़वाल का इलाका है. वहां पर पिछले कम से कम 500 या 700 साल से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. अब मैं उन छोटे-छोटे भूकंप की बात नहीं कर रहा हूं. बड़ा भूकंप पिछले 500 700 साल में नहीं आया है और वहां पर भूकंप आने की प्रक्रिया जिसके लिए एनर्जी चाहिए होती है. जो स्टेन एनर्जी दो प्लेटों के टकराव की वजह से संचित होती है वहां पर वो लगातार बन रही है. जो हमारे आंकड़े हैं वो लगातार बता रहे हैं कि वहां पर जो ऊर्जा है, जो एनर्जी है वो लगातार इकट्ठी हो रही है. तो आप सोच लीजिए कि अगर 500 साल से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है गढ़वाल कुमाऊं के इलाके में, तो गढ़वाल कुमाऊं बहुत ज्यादा संवेदनशील हो जाता है.
उन्होंने आगे कहा कितना बड़ा भूकंप आ सकता है. यह भी हमें मालूम है कि उस इलाके में वो इलाका कौन सा होगा और कौन सा क्षेत्र ज्यादा प्रभावित होगा. हमें यह नहीं मालूम कि वो भूकंप उसका एग्जैक्ट टाइम या उसका एग्जैक्ट दिन क्या होगा. ह
भूकंप की तीव्रता का अंदाज़ा कैसे लगाया जाए
पिछले ही महीने में फरवरी में दिल्ली और एनसीआर के लोगों ने 4 की तीव्रता के भूकंप का अनुभव किया था. जो बड़ा भूकंप नहीं है लेकिन लोगों में उस भूकंप से भी दहशत पैदा हो गई थी. सोचिए कि अगर पांच की तीव्रता का भूकंप होगा तो वो कितना बड़ा होगा. भूकंपविज्ञानियों के मुताबिक जब तीव्रता में एक अंक का अंतर आता है तो भूकंप के आकार में यानी मैग्नीट्यूड में दस गुना का अंतर होता है. उसकी ऊर्जा में 32 गुना का यानी 5 तीव्रता का भूकंप magnitude में 4 के भूकंप से 10 गुना बड़ा होगा और उसमें रिलीज़ होने वाली ऊर्जा 32 गुना होगी.

अब अगर 6 की तीव्रता का भूकंप होगा तो उसका मैग्नीट्यूड 4 के मुक़ाबले दस गुना दस यानी सौ गुना होगा. और उसकी ऊर्जा 32 गुना 32 यानी क़रीब एक हज़ार गुना होगी.सोचिए 6 की तीव्रता का भूूकंप कितना भयानक होगा. अगर सात की तीव्रता का भूकंप होगा तो वो 4 के मुक़ाबले 100 गुना 10 यानी हज़ार गुना बड़ा होगा. और उससे निकलने वाली ऊर्जा हज़ार गुना 33 यानी क़रीब 32 हज़ार गुना ज़्यादा होगी. अब आप सोचिए कि तीव्रता में बस एक का अंतर कितना बड़ा होता जा रहा है.

म्यांमार का भूकंप तो इससे भी ज़्यादा 7.7 की तीव्रता का था. इसके अलावा भूकंप जितना धरती की सतह के क़रीब होगा उससे होने वाला नुक़सान उतना ही ज़्यादा होगा. भूकंप के लिहाज़ से भारतीय उपमहाद्वीप जितना संवेदनशील है उससे ज़्यादा संवेदनशील दुनिया के कई और इलाके हैं. जापान तो लगभग हर रोज़ कोई न कोई भूकंप झेलता है.
साल 1900 से आज तक तीव्रता के लिहाज़ से सबसे बड़े भूकंप कौन से रहे हैं
- सबसे भयानक भूकंप आया 22 मई, 1960 को चिली के वालविडिया इलाके में जिसकी तीव्रता रही 9.5 जो बहुत ही भयानक है. उस भूकंप में 1650 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. 3000 से ज़्यादा घायल हुए थे और बीस लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए थे. उस भूकंप से समुद्र में उठी सुनामी से हवाई, जापान और फिलीपींस तक नुक़सान हुआ था. इस भूकंप के दो दिन बाद क़रीब का एक ज्वालामुखी भी फूटा जिससे वायुमंडल में 6 किलोमीटर की ऊंचाई तक धूल और गर्म हवाएं उठीं जिन्होंने काफ़ी दूर तक नुक़सान पहुंचाया.
- दूसरा सबसे भयानक भूकंप 28 मार्च, 1964 को अलास्का में आया जिसकी तीव्रता 9.2 थी. चिली के मुक़ाबले इससे नुक़सान कम हुआ क्योंकि जहां ये आया वहां आबादी कम थी. लेकिन इससे उठी सुनामी से क़रीब सवा सौ लोगों की जान गई. अलास्का में आया ये भूकंप कनाडा में भी महसूस किया गया और इससे उठी सुनामी ने हवाई तक नुक़सान पहुंचाया.
- तीसरा सबसे भयानक भूकंप क़रीब बीस साल पहले 26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में आया. इससे भयानक नुक़सान हुआ. क़रीब 2 लाख 28 हज़ार लोगों की इससे मौत हुई. इससे उठी सुनामी ने दक्षिण एशिया और पूर्वी अफ्रीका तक समुद्र तट से लगे 14 से अधिक देशों में तबाही मचाई 17 लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए. भारत में भी इसका बहुत असर दिखाई दिया, कई लोग हताहत हुए.
- चौथा सबसे भयानक भूकंप 11 मार्च, 2011 को जापान के सेंदाई इलाके में आया. इस भूकंप की तीव्रता 9 रही. इससे भी भारी तबाही मची. समुद्र में सुनामी उठी. दस हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. सुनामी से समुद्र का पानी घुसने से जापान में फुकुशिमा न्यूक्लियर रिएक्टर हादसा हुआ जिससे निपटना में जापान को भारी मशक्कत करनी पड़ी.
- पांचवां सबसे भयानक भूकंप 4 नवंबर, 1952 को रूस के कमचटका में आया. इस भूकंप की तीव्रता 9 रही. इस भूकंप से उठी सुनामी ने अमेरिका के हवाई द्वीप तक तबाही मचाई.
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