रेप जैसे मामलों में तुरंत कार्रवाई ही इंसाफ है. ऐसा ही एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में आया. आरोपी बेल मांग रहा था पर कोर्ट ने उसकी मांग खारिज कर दी. साथ ही एक साल में ट्रायल पूरा करने का आदेश भी दे दिया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने मुरादाबाद से जुड़े एक चार वर्ष की मासूम बच्ची से रेप के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि जिस चार साल की एक छोटी सी मासूम बच्ची के साथ रेप करने की कोशिश की गई है, वो इसका अर्थ भी नहीं समझती. उसे अपराध का मतलब तक नहीं मालूम. कोर्ट ने कहा जिस देश में छोटी बच्चियों की पूजा की जाती है, उस देश में छोटी बच्चियों के साथ रेप जैसा घृणित अपराध किया जा रहा है. रेप एक जघन्य अपराध है और इस प्रकार के मामले हमारे समाज में दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं.
क्या कहा कोर्ट ने?
कोर्ट ने बार-बार देखा है कि इस प्रकार का कृत्य न केवल पीड़ित के विरुद्ध अपराध है, बल्कि यह समाज के विरुद्ध भी अपराध है और यह पीड़ितों के मौलिक अधिकारों, मुख्य रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन है. ऐसी स्थिति में यदि न्यायालय की ओर से सही समय पर सही निर्णय नहीं लिया गया तो पीड़ित का न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं रह जाएगा. हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए ट्रायल एक साल में पूरा करने का भी निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस शेखर कुमार यादव ने आवेदक अहसान की जमानत याचिका को खारिज करते हुए दिया है.
क्या है केस?
मामले के मुताबिक आवेदक अहसान के खिलाफ मुरादाबाद के थाना कटघर में आईपीसी की धारा 363, 376, 511 और पॉस्को एक्ट की धारा 9एम, 9यू/10 में मामला दर्ज हुआ था. आवेदक ने जमानत की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की. गौरतलब है कि 21 अप्रैल 24 को दिन में तीन बजे बच्ची अपने घर से बाहर हो रहे शो को देखने गई थी. लोगों ने बताया कि आरोपी उसे जबरन साथ ले गया है. परिवार ने लड़की की तलाश शुरू की. रेलवे गेट क्रासिंग के पास आवाज सुनाई दी तो परिवार वालों को आता देख आरोपी भाग खड़ा हुआ. बच्ची बेहोश थी, शरीर पर कई चोट के निशान थे.उसके साथ रेप की कोशिश की गई थी.
आरोपी का तर्क
इस घटना की एफआईआर दर्ज की गई. आरोपी की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि वह निर्दोष है और उसे झूठा फंसाया गया है. 21अप्रैल की घटना की एफआईआर छह दिन बाद 27 अप्रैल 24 को लिखाई गई है. देरी का कारण नहीं बताया गया है. आरोपी 31 मई 24 से जेल में बंद है. आरोपी ने कहा कि शिकायतकर्ता के ड्राइवर वसीम के खिलाफ शिकायत की थी. उसने गलत काम किया और भाग कर मेरे घर में घुस गया और झूठी एफआईआर दर्ज कराई. आरोपी का यह भी कहना था कि पीड़िता के दोनों बयानों में विरोधाभास है. मेडिकल रिपोर्ट के विपरीत है. मेडिकल रिपोर्ट में अंदरूनी व बाहरी कोई चोट नहीं पाई गई, जबकि एफआईआर में शरीर पर चोटों का जिक्र किया गया है. आरोपी ने अपने खिलाफ चार आपराधिक केसों के इतिहास का खुलासा भी किया. सरकारी वकील ने जमानत का विरोध किया और कहा ये अपराध जघन्य है. आरोपी जमानत पर रिहा किए जाने लायक नहीं है. कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद आरोपी अहसान की जमानत अर्जी खारिज कर दी.
कोर्ट ने की सख्ती
कोर्ट ने कहा कि कथित अपराध के समय पीड़िता की उम्र लगभग 4 वर्ष थी. उसने धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन किया है. मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ सभी पक्षों के वकीलों द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क, आरोपों की प्रकृति, आवेदक को सौंपी गई भूमिका, अपराध की गंभीरता और मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि आवेदक ने चार साल की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया है. इस न्यायालय की राय है कि यह जमानत के लिए उपयुक्त मामला नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा आवेदक के अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों पर विचार करते हुए ट्रायल कोर्ट को इस मामले की सुनवाई जल्दी से करते हुए एक साल के अंदर पूरा करने का निर्देश दिया है.
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