किसी आपराधिक मामले में भारत में न्याय मिलना कितना मुश्किल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नाबालिग के साथ हुए रेप के मामले में पीड़िता को 40 साल बाद न्याय मिला.
नाबालिग रेप पीड़िता को करीब 40 साल बाद न्याय मिला. फैसला सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज ने न्याय में हुई देरी के लिए दुख जताया. जज ने कहा, “यह बहुत दुख की बात है कि इस नाबालिग लड़की और उसके परिवार को अपने जीवन के इस भयावह अध्याय को बंद करने के इंतजार में लगभग चार दशक गुजारने पड़े.” न्याय में देरी की यह कहानी राजस्थान से सामने आई. जहां 1986 में एक नाबालिग के साथ रेप हुआ था.
2013 में हाईकोर्ट ने बरी करने का दिया था आदेश
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2013 में हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया था. जिसके बाद पीड़िता के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसमें अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई सात साल की सजा बहाल की.
कोर्ट ने आरोपी को 4 हफ्ते में सरेंडर करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते में दोषी को सरेंडर करने के आदेश दिए. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने यह फैसला सुनाया. दोनों जजों ने इस मामले में फैसले में करीब 40 साल लग जाने का दुख भी जताया.
मार्च 1986 में नाबालिग बच्ची का हुआ था रेप
मालूम हो कि करीब 40 साल पहले 3 मार्च 1986 को एक ऐसी घटना हुई, जिसने एक नाबालिग लड़की के जीवन की दिशा हमेशा के लिए बदल दी. गुलाब चंद नामक एक व्यक्ति ने उसे बेहोश पाया और उसके गुप्तांगों से खून बह रहा था. कथित तौर पर बच्ची का यौन शोषण किया गया था.
बच्ची की चुप्पी का मतलब नहीं कि उसके साथ अन्याय नहीं हुआः सुप्रीम कोर्ट
गुलाब चंद ने 4 मार्च, 1986 को संबंधित पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई और अब इस फैसले के माध्यम से मामले को अंतिम रूप से समाप्त कर दिया जाएगा. इस फैसले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी भी की. कोर्ट ने कहा कि बच्ची की चुप्पी का मतलब ये नहीं लगाया जा सकता कि उसके साथ अपराध हुआ ही नहीं.
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