आधुनिक युग में जब तकनीक और विज्ञान की गति तेज़ हुई है, तब होम्योपैथी ने भी खुद को न सिर्फ बनाए रखा है, बल्कि अधयन्न और कुशल और प्रासंगिक बनाकर दिखाया है.
जब मैं होम्योपैथी के बारे में सोचता हूं तो यह केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं लगती, बल्कि हमारी जीवनशैली का एक हिस्सा ही लगती है. अपने इस लंबे सफर में मैंने होम्योपैथी को न सिर्फ विज्ञान की दृष्टि से जाना है, बल्कि लोगों के जीवन में इसके असर को महसूस भी किया है. एक मां के चेहरे की मुस्कान, जब उसका बच्चा बिना साइड इफेक्ट्स के ठीक होता है, एक बुज़ुर्ग की आंखों में संतोष, जब उन्हें राहत मिलती है. यही असली प्रमाण है होम्योपैथी के सौम्य इलाज का.
होम्योपैथी की नींव डॉ. सैम्युअल हैनीमैन ने 1796 में रखी थी, लेकिन भारत में यह जितनी गहराई से रची-बसी है, वह देखना गर्व की बात है. आज हमारे देश में 3.45 लाख से ज्यादा पंजीकृत होम्योपैथिक चिकित्सक, 277 मेडिकल कॉलेज और 384 दवा GMP प्रमाणित कंपनियां हैं. ये सब मिलकर भारत में एक मजबूत और भरोसेमंद स्वास्थ्य प्रणाली को बढ़ावा दे रहे हैं.
आधुनिक युग में जब तकनीक और विज्ञान की गति तेज़ हुई है, तब होम्योपैथी ने भी खुद को न सिर्फ बनाए रखा है, बल्कि अधयन्न और कुशल और प्रासंगिक बनाकर दिखाया है. CCRH में हम 27 शोध संस्थानों और 6 क्लिनिकल सेंटर के माध्यम से 355 से अधिक शोध परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं. इनमें से 129 ऐसे क्लीनिकल ट्रायल्स हैं, जो किसी भी आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की कसौटी पर खरे उतरते हैं. हम होम्योपैथी को सिर्फ “वैकल्पिक” नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक, विश्वसनीय और मानवीय चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
कोविड-19 के दौरान जब पूरी दुनिया डर से जूझ रही थी, उस समय आयुष मंत्रालय द्वारा सुझाई गई Arsenicum album 30C जैसी होम्योपैथिक दवाओं ने लोगों में आशा की किरण जगाई. CCRH ने न सिर्फ महामारी संबंधी सलाह दी, बल्कि डेंगू, हीट स्ट्रोक और अन्य स्वास्थ्य संकटों पर भी अपना योगदान दिया. मुझे आज भी याद है कि कैसे सीमित संसाधनों के बावजूद हमारे चिकित्सकों ने घर-घर जाकर लोगों को निःशुल्क दवाएं दीं और उन्हें भरोसा दिलाया कि यह मुश्किल समय भी जल्द ही गुज़र जाएगा. बस संभव एवं सावधानी बनाये रखे.
लेकिन सिर्फ रोगों से लड़ना ही हमारा उद्देश्य नहीं है. CCRH में हमने शिक्षा, नवाचार और शोध को एक मिशन की तरह लिया है. अब तक हमने 132 होम्योपैथिक औषधियों को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध किया है. हमारी शोध-पत्रिकाओं में 400 से अधिक लेख प्रकाशित हुए हैं और यह सब सिर्फ कागज़ों में नहीं, बल्कि स्कूल हेल्थ प्रोग्राम, पोषण अभियान, मासिक धर्म स्वास्थ्य योजना जैसी जमीनी पहल से जुड़ा है, जो बच्चों, महिलाओं और ग्रामीण भारत तक पहुंची है.
हमारे वैज्ञानिकों ने 17 हजार से अधिक हर्बेरियम शीट्स को डिजिटाइज़ किया है, नए डाटा पोर्टल्स बनाए हैं और 80 होम्योपैथिक कॉलेजों में MoU कर उनमें रिसर्च कल्चर को बढ़ावा दिया है. ये सभी कदम होम्योपैथी को आधुनिक बनाते हुए उसकी आत्मा को जीवित रखते हैं.
आज जब हम विश्व होम्योपैथी दिवस 2025 मना रहे हैं तो यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक संकल्प है. इस बार का आयोजन इसलिए विशेष है, क्योंकि इसमें हम शोधकर्ताओं, चिकित्सकों, छात्रों और उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाकर मिलकर सोचने और आगे बढ़ने का अवसर दे रहे हैं. प्रदर्शनी, विचार-मंथन सत्र, और अनुभव साझा करने के मंच, ये सभी भविष्य में होम्योपैथी की दिशा को तय करेंगे.
हमारा सपना सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. जैसे भारत ने वैक्सीन मैत्री के माध्यम से दुनिया को स्वास्थ्य सेवा दी, वैसे ही हम होम्योपैथी में भी भारत को वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में देखना चाहते हैं. आज CCRH, NCH और NIH मिलकर प्रशिक्षण और शोध सहयोगों के माध्यम से दुनिया को दिखा रहे हैं कि होम्योपैथी न केवल एक वैज्ञानिक पद्धति है, बल्कि तीव्र दवाओं के दुष्प्रभावों से बचने के लिए भविष्य में एक कारगर विकल्प सिद्ध हो सकती है.
मैं अपने अनुभवों से कह सकता हूं, होम्योपैथी एक विज्ञान है जो व्यक्ति को पूरी तरह समझने की कोशिश करता है. इसमें सिर्फ बीमारी नहीं, बल्कि बीमारी से ग्रस्त इंसान, उसके हाव-भाव और भावनाओं को देखकर इलाज किया जाता है. यही इसकी विशेषता है जो बीमार लोगों को पूर्णत: स्वस्थ करने में मदद करती है. मैं विश्व होमियोपैथी दिवस के अवसर पर चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, छात्रों और प्रिय नागरिकों से आग्रह करता हूं कि आइए, हम सब मिलकर इस दिवस पर स्वस्थ रहने के लिए उपयुक्त कदम उठाएं. होम्योपैथी सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं, यह विश्वास, संवेदना और सेवा का संगम है.
लेखक डॉ. सुभाष कौशिक, महानिदेशक, केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (CCRH)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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