जब 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से भारत आज़ाद हुआ तो देश का दो भागों में बंटवारा हुआ. एक हिस्सा भारत कहलाया और दूसरा पाकिस्तान. उस समय ज़्यादातर मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान में शामिल हो गया और हिन्दू बहुल इलाका भारत का हिस्सा बने रहे.
विदेश मंत्री एस जयशंकर के मुताबिक मुझे लगता है कि पीओके के भारत में वापस आने से कश्मीर समस्या का समाधान हो जाएगा. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का मानना है कि मुझे नही लगता कि पाकिस्तान हमे पीओके लौटाएगा. मुझे विश्वास है कि पीओके के लोग खुद ही भारत में विलय की मांग करेंगे. जम्मू कश्मीर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि पाकिस्तान से पीओके वापस लेने से किसने रोक रखा है.
पहले विदेश मंत्री और फिर रक्षा मंत्री के पीओके पर दिये गये बयान पर देश से लेकर पाकिस्तान तक में खलबली मची है. पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने कहा कि कश्मीर को लेकर आधारहीन दावे करने के बजाए भारत को जम्मू कश्मीर के उस बड़े हिस्से को छोड़ देना चाहिए, जिस पर भारत 77 साल से कब्जा करके बैठा है. वैसे,यह हंगामा होना लाजिमी भी है. तभी तो जम्मू कश्मीर विधानसभा में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पीओके को लेकर सरकार पर तंज कसा है. ऐसे पहले यह जान लेते हैं कि पीओके है क्या? जिसको लेकर इतना हाय तौबा मची हुई है.
जम्मू कश्मीर सीएम उमर अब्दुल्ला
जब ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ भारत…
जब 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से भारत आज़ाद हुआ तो देश का दो भागों में बंटवारा हुआ. एक हिस्सा भारत कहलाया और दूसरा पाकिस्तान. उस समय ज़्यादातर मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान में शामिल हो गया और हिन्दू बहुल इलाका भारत का हिस्सा बने रहे. इसके बावजूद कुछ ऐसे राजा और नवाब थे, जो शुरू में यह तय ही नहीं कर पाए कि वह भारत में ही रहे या पाकिस्तान में शामिल हो. उस वक्त जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह भी कुछ ऐसी ही खामख्याली में थे. हरि सिंह के सामने दोनों विकल्प थे या तो अपनी रियासत को भारत में शामिल करें या पाकिस्तान में. लेकिन हरि सिंह कुछ भी फैसला नहीं कर पा रहे थे. वस्तुतः,वह चाह रहे थे कि भारत और पाकिस्तान में शामिल होने के बजाए जम्मू कश्मीर आज़ाद देश बना रहे. यह बात पाकिस्तान को रास नही आयी और उसने कबाइलियों की आड़ में कश्मीर पर हमला बोल दिया, उस हमले का सामना कर पाना महाराजा हरि सिंह के बस में नही था.
ऐसे में हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी. भारत सरकार ने साफ कर किया कि वह मदद के लिये अपनी सेना तभी भेज सकती है जब महाराजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर का विलय भारत में कर दें. जब तक महाराजा भारत की बात मानते तब तक काफी देर हो चुकी थी. कबाइलियों ने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था, जिस पर पाकिस्तान आज भी कब्जा जमाये बैठा है. इसी को हम पाकिस्तान कब्जे वाला कश्मीर या पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं. पीओके का कुल क्षेत्रफल करीब 13 हजार 297 स्कवायर किलोमीटर है. जबकि हमारे जम्मू कश्मीर का कुल एरिया 42 हजार 241 स्कवायर
किलोमीटर हैं. वही पीओके की कुल आबादी करीब 40 लाख है तो जम्मू कश्मीर की करीब सवा करोड़ हैं.
पीओके में आए दिन होते रहते हैं प्रदर्शन
वैसे कहने को तो पीओके को लेकर पाकिस्तान सरकार दावा करती है कि उसकी अपनी सरकार है. अपना राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री होता है लेकिन यह सब पाकिस्तान सरकार की कठपुतली होते हैं. आये दिन लोग यहां पाक सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते रहते है. लोगों की आम शिकायत है कि यह इलाका विकास से कोसों दूर हैं. यहां पढ़ने के लिए अच्छे स्कूल नहीं है और न ही वहां काम करने के अवसर या नौकरी. अब यहां के लोगों के पास अब पाकिस्तान की मुखालफत करने के अलावा कोई और रास्ता नही है. उनको लगता है कि उनके साथ लगातार भेदभाव होता रहता है और इसी वजह से वह आज़ादी या फिर भारत मे विलय की मांग करते रहते हैं. इसके बदले उन्हें अक्सर पाकिस्तानी सेना की पिटाई या फिर गोली ही मिलती है.
बातचीत से नहीं सुलझेगा POK का मुद्दा
पीओके को लेकर भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से 1994 में प्रस्ताव पारित करके कहा कि पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा हैं और इसे वापस लिया जाएगा. इतना ही मोदी सरकार ने 2019 में संसद के जरिये जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के साथ उसका विशेष राज्य का दर्जा भी खत्म कर दिया. उस समय भी सरकार ने यह कहा था कि पीओके को भारत में शामिल कराने के लिये हर कोशिश की जाएगी. लेकिन कोशिश कैसे होगी? लाख टके का सवाल अब यही हैं. पाकिस्तान से बातचीत के जरिये तो कश्मीर का यह मामला सुलझेगा नही वहीं कानूनी और मानव अधिकार के पैरोकारों की बात पाक नही सुनेगा. ऐसे में पाकिस्तान तो हमें पीओके देने से रहा. उल्टे वह जम्मू कश्मीर में 1990 के दशक से प्रॉक्सी वार छेड़े हुए है. इस लड़ाई में अब तक लाखों लोग मारे गए हैं.
POK हासिल करने के लिए कितना तैयार भारत
आर्थिक तौर पर भी देश पर भारी दवाब पड़ रहा है. पीओके के लोग पाकिस्तानी हुक्मरान के खिलाफ इतना बड़ा और जबरदस्त आंदोलन भी नही कर सकते कि पाकिस्तान वहां के लोगों की बात मानकर पीओके पर अपना दावा छोड़ दे. लिहाजा अब केवल सैन्य ऑपेरशन ही एक मात्र विकल्प बचता हैं तो अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत यह कार्रवाई कर सकता है. सेना में मेजर जनरल रहे आर सी पाढ़ी कहते हैं कि यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन जमीन में यह लगभग अंसभव है. पीओके का पूरा इलाका पहाड़ी है और इस एरिया में लड़ाई लड़ने के लिये लाखों की तादाद में फ़ौज चाहिए. साथ मे खुद का भी अच्छा खासा नुकसान होना तय है, क्या सेना और देश इसके लिये तैयार है? वही सेना में ही मेजर जनरल रहे संजय मेस्टन भी मानते हैं कि यह ऑपेरशन बहुत ही मुश्किल है.
भारत की राहत में क्या चुनौतियां
आर सी पाढ़ी कहते हैं कि पीओके कोई एक पहाड़ी नही है कि आप सरप्राइज तरीके से कब्जा कर लें. आपको पहाड़ पर बैठे दुश्मन के खिलाफ कार्रवाई करनी है और इसके लिये सैनिकों की तादाद दुश्मन से कम से कम 10 गुना से अधिक होना चाहिए. हथियार और साजोसामान भी भारी भरकम चाहिए. इसके बिना यह सब इतना आसान नही है. सेना को एक ही हालात में सफलता मिल सकती है जब पीओके के लोग बंगलादेश में तत्कालीन मुक्तिवाहिनी की तर्ज पर पाकिस्तानी सेना और हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दे. लोग सड़कों पर उतर आए. पाकिस्तानी सेना के मूवमेंट को रोक दें. लोग कहे कि हमे भारत मे शामिल होना है. हमे पाकिस्तान के साथ नही रहना हैं फिर कहीं जाकर भारत में पीओके शामिल हो जाएगा.
पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को वापस लाने के दावे और दिखाए जाने वाले सपने हकीकत से कोसों दूर हैं . रूस और यूक्रेन की लड़ाई इस बात का सबूत है कि आज के युग में किसी बड़े हिस्से पर कब्जा कर पाना लगभग असंभव है. इसके अलावा पाकिस्तान के पीछे इस्लामिक देश भी गाहे बगाहे खड़े रहते हैं और अब तो भारत के सबसे बड़े दुश्मन चीन की पाकिस्तान के साथ गलबहियां किसी से छुपी नहीं हैं. राजनीतिक पंडितों के बकौल, मतदाताओं की भावनाओं की फसल को काटने के लिए पीओके को भारत में मिलाने का सपना बनाए रखना होगा, भले ही वह कभी भी हकीकत में न बदल पाए.
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