शोले की इस 49 पुरानी तस्वीर में दाएं से अमजद खान, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, डायरेक्टर रमेश सिप्पी और धर्मेंद्र के साथ वह शख्स मौजूद हैं, जिन्होंने वकालत की डिग्री के साथ पाकिस्तान के कराची से मायानगरी में परिवार समेत कदम रखा.
शोले की इस 49 पुरानी तस्वीर में दाएं से अमजद खान, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, डायरेक्टर रमेश सिप्पी और धर्मेंद्र के साथ वह शख्स मौजूद हैं, जिन्होंने वकालत की डिग्री के साथ पाकिस्तान के कराची से मायानगरी में परिवार समेत कदम रखा. वह बिजनेस करना बखूबी जानते थे बस फिर क्या था अपनी जमीनों पर बनाने लगे फ्लैट. उस दौर में लीक से हटके थी सोच. जनाब ये तो शुरुआत भर थी. उस शख्स ने अपनी जिंदगी में कई खूबसूरत एक्सपेरिमेंट किए. एक फली मिस्त्री साहब थे उनसे दोस्ती गांठी तो फिल्म बनाने का आईडिया भी आया. इस एक आईडिया ने उस दौर में बदल दी दुनिया और बना डाली फिल्म ‘सजा’. एक्टर भी धाकड़ चुने द एवरग्रीन स्टार देव आनंद और नशीली आंखों वाली निम्मी. फिल्म चल पड़ी और इस तरह वह शख्स गोपालदास परमानंद सिपाहीमलानी से जीपी सिप्पी के नाम से फेमस हो गए.
आगे फिल्मी गाड़ी ने भी रफ्तार पकड़ ली. एक बाद एक ऐसी फिल्में जो समय से आगे की सोचती थीं. हिंदी फिल्मों में 1953 में आई शहंशाह में पहली बार गेवाकलर का इस्तेमाल किया गया. उस समय के जाने माने हीरो रंजन और हिरोइन कामिनी कौशल थीं. प्रयोग लोगों को काफी पसंद भी आया. कुछ फिल्में भी सिप्पी साहब ने डायरेक्ट की जैसे 1955 की मरीन ड्राइव, 1959 की भाई बहन, 1961 में आई मिस्टर इंडिया. कुछ एक्टिंग भी की. भाई बहन में तो जेपी सिप्पी साहब अपने साहिबजादे रमेश के साथ भी दिखे. वक्त बिता, साल बिता और उनके इस सफर में बेटे रमेश सिप्पी भी शामिल हो गए. वो निर्देशन करते थे और जेपी सिप्पी साहब प्रोड्यूस. विधवा विवाह पर बनी अंजाम, तो फुल टू एंटरटेनर सीता और गीता भी हिंदी सिने जगत में मील का पत्थर साबित हुईं.
Producer G P Sippy, #Dharmendra, Director #RameshSippy, #Sanjeev #Kumar, #AmitabhBachchan and #AmjadKhan. pic.twitter.com/abG0nKjOxd
— Bollywoodirect (@Bollywoodirect) January 23, 2024
शोले को पिता और बेटे की जोड़ी ने किया था प्रोड्यूस और डायरेक्ट
साल बीते और बाप बेटे की इस जोड़ी के जीवन से जुड़ा बेहतरीन साल 1975, जिसमें कई अद्भुत और बड़े प्रयोग हुए. लीक से हटकर एक फिल्म बनाई, जिसका नाम था ‘शोले’. डाकुओं पर बनी फिल्में पहले भी कई बन चुकी थी लेकिन ये तो सिप्पी फैमिली की थी. इसीलिए कुछ तो हटकर होना था. तो हुआ भी और स्टोरी, लोकेशन , एक्टर्स सब लाजवाब के साथ यह कल्ट फिल्म बन गई. भारतीय सिनेमा को एक नया डाकू भी फिल्म ने दिया, वो था ‘गब्बर’ इसे अमजद खान ने निभाया था. वहीं दो मेन लीड जय-वीरू के किरदार में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की जोड़ी फैंस की चहीता हो गई. जबकि ठाकुर के किरदार में संजीव कुमार ने दिल जीत लिया. इस मूवी का एक-एक किरदार लोगों के दिलों में छा गया. सलीम जावेद की कसी हुई पटकथा ने गजब का जादू किया.
शोले का बजट था इतना
उस जमाने में सबसे महंगी फिल्म शोले तैयार हुई, जिसका बजट 3 करोड़ का था. ये सब तो हुआ ही लेकिन इसके साथ एक और नायाब चीज हुई. सिप्पी साहब ने कुछ ऐसा हिंदी सिनेमा को दिया जो तकनीक के मामले में नया था. 70 एमएम का नाम हमने सुना और बड़े पर्दे पर स्टीरियोफोनिक आवाज का लाजवाब कॉम्बिनेशन एक अलग ही माहौल सिनेमाघर में क्रिएट कर गया. 2007 में 25 दिसंबर को जब जीपी सिप्पी साहब का इंतकाल तब वो 93 बरस के थे. आखिरी फिल्म थी हमेशा. उन्हें अपने काम से प्यार और सिने इंडस्ट्री से बेहद प्यार था इसलिए कहते थे देयर इज नो बिजनेस लाइक फिल्म बिजनेस.
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