बीएचयू में सोशल साइंस डिपॉर्टमेंट में पीएचडी में प्रवेश न पाने वाले शिवम सोनकर का कहना है कि इस सत्र की विज्ञप्ति के अनुसार, संबंधित विषय में तीन सीटें खाली हैं. बावजूद इसके उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया गया.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दलित छात्र शिवम सोनकर को पीएचडी में प्रवेश नहीं दिए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. सामान्य श्रेणी में द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले शिवम सोनकर को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा प्रवेश नहीं दिया गया है. इसके बाद सोनकर कुलपति आवास के बाहर धरने पर बैठे है, वहीं इससे कई अन्य छात्रों में भी रोष है. दूसरी तरफ बीएचयू प्रबंधन ने कहा है कि हमारे पास दो सीट थी, जिसमें एक हमने जनरल को दे दिया और एक ओबीसी को दी गई है. फिर भी हम उस छात्र के लिए कहेंगे कि उम्मीद पर दुनिया कायम है.
बीएचयू में सोशल साइंस डिपॉर्टमेंट में पीएचडी में प्रवेश न पाने वाले शिवम सोनकर का कहना है कि इस सत्र की विज्ञप्ति के अनुसार, संबंधित विषय में तीन सीटें खाली हैं. बावजूद इसके उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया गया. उन्होंने इसे संविधान और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया और बीएचयू प्रशासन पर भेदभाव का आरोप लगाया.

दो सीटों पर आरक्षण का रोस्टर लागू नहीं हो: शिवम
शिवम का कहना है कि बीएचयू प्रबंधन की बात गले से उतरने वाली नहीं है. उनका कहना है कि अगर सिर्फ दो सीट है तो आरक्षण का रोस्टर लागू ही नहीं होना चाहिए. कम से कम चार सीट होनी चाहिए और अगर दो सीट पर आरक्षण लागू करते हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता है कि एक सीट दलित के लिए होनी चाहिए. मेरिट पर भी हो तो मेरा नंबर दूसरा है. जब तक मुझे न्याय नहीं मिलता, तब तक हम कुलपति आवास पर धरने पर बैठे रहेंगे. शिवम नाम के छात्र ने कहा कि मेरी शैक्षिक हत्या हो रही है.
सोनकर समाज के लोगों का भी मिला साथ
शिवम का मुद्दा संसद तक में उठ चुका है. वहीं दूसरी तरफ शिवम् के साथ सोनकर समाज के नेता भी आ गए हैं. उनका कहना है कि एक दलित छात्र के साथ अन्याय हो रहा है. ये कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है बल्कि इसमें सभी दल इस बात को कह रहे हैं कि संविधान को खत्म किया जा रहा है.
बीएचयू प्रशासन ने अपनी सफाई में ये कहा
बीएचयू की एग्जामिनेशन कंट्रोलर का कहना है कि हमारे पास दो ही सीट थी. एक सीट हमने सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी को दी और एक सीट ओबीसी को दी गई. इसके अलावा कोई सीट नहीं थी, फिर भी हम उस छात्र के साथ हैं और यही कहेंगे कि उम्मीद पर दुनिया कायम है और वो भी उम्मीद रखे.
फ़िलहाल बीते कई दिनों से धरने पर बैठे शिवम के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है. बीएचयू से शुरू हुआ मुद्दा अब संसद तक में उठ गया है. देखना होगा कि शिवम को एडमिशन मिलता है या नहीं.
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