Medical Miracle Artificial Intelligence: जोसेफ की कहानी हमें सिखाती है कि हार मान लेना कोई ऑप्शन नहीं. जब सारी उम्मीदें टूट जाएं, तब भी एक छोटी सी किरण बाकी रहती है. और आज AI जैसी टेक्नोलॉजी उस किरण को सूरज में बदल रही है.
Medical Miracle Artificial Intelligence: एक 37 साल का नौजवान अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. डॉक्टर्स ने बोल दिया, ‘अब बस ये तय कर लो, मरना घर पर है या अस्पताल में.’ हर सांस के साथ मौत करीब आ रही थी, लेकिन तभी… एक मशीन ने वो कर दिखाया, जो इंसान नहीं कर सके. AI ने उसे मौत के मुंह से खींच लिया! ये कहानी जोसेफ कोट्स की है. हैरान करने वाली, इमोशनल और हौसले से भरी. जोसेफ कोट्स वॉशिंगटन के रेंटन शहर में रहने वाला एक 37 साल का नौजवान है. हंसता-खेलता, जिंदगी से भरा हुआ, लेकिन एक दिन उसकी जिंदगी में अंधेरा छा गया. उसे एक रेयर ब्लड डिसऑर्डर हुआ. POEMS सिंड्रोम. नाम छोटा सा, लेकिन असर? जैसे किसी ने उसकी जिंदगी को जहर से भर दिया. हाथ-पैर सुन्न हो गए, जैसे वो किसी और के हों. उसका दिल इतना बड़ा हो गया कि हर धड़कन एक जंग बन गई. किडनी फेल होने लगी. हर कुछ दिन में उसके पेट से लीटरों पानी निकालना पड़ता था. इन सबके बीच जोसेफ का मन टूट चुका था. वो हर रात बिस्तर पर लेटकर सोचता,’क्या ये मेरी आखिरी रात है? क्या मैं सुबह देख भी पाऊंगा?’ उसकी गर्लफ्रेंड तारा बताती हैं कि जोसेफ रातों को चुपके से रोता था. वो बोलता था,’मैं अब हारा गया हूं, तारा. बस अब मुझे जाने दो.’ लेकिन तारा ने हार नहीं मानी.
तारा की जिद और डॉ. डेविड की एंट्री
जोसेफ ने भले ही हार मान ली थी, लेकिन तारा की आंखों में आंसुओं के साथ-साथ एक जिद थी. उसने एक साल पहले एक रेयर डिजीज समिट में मिले डॉ. डेविड फजेनबॉम को याद किया. रात के 2 बजे, सन्नाटे में उसने एक इमेल टाइप किया, ‘डॉ. डेविड, प्लीज जोसेफ को बचा लो! मेरे पास और कोई नहीं है.’ अगली सुबह तक डॉ. डेविड का जवाब आ गया. और जवाब में था एक ऐसा ट्रीटमेंट प्लान, जो पहले कभी किसी ने आजमाया नहीं था. कीमोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेरॉयड्स का एक अनोखा कॉम्बिनेशन. लेकिन ये प्लान किसी इंसान ने नहीं बनाया था. इसे सुझाया था एक AI मॉडल ने! हां, एक मशीन ने वो कर दिखाया, जो इंसानों की समझ से बाहर था. लेकिन जोसेफ को इस पर भरोसा नहीं था. वो डर गया. उसने तारा से कहा,’अगर ये फेल हो गया तो? मैं और तकलीफ नहीं झेल सकता.’
ट्रीटमेंट की शुरूआत
जोसेफ का डॉक्टर, डॉ. वेन गाओ, भी डर गया. बोला, ‘ये ट्रीटमेंट बहुत रिस्की है. कीमोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और स्टेरॉयड्स का ऐसा मिक्स… कहीं जोसेफ की हालत और खराब ना हो जाए.’ लेकिन तारा ने जोसेफ का हाथ थामा और कहा, ‘हमें कोशिश तो करनी होगी.’ जोसेफ ने आखिरी बार हिम्मत जुटाई. ट्रीटमेंट शुरू हुआ. पहला दिन… जोसेफ को लगा जैसे उसका शरीर जल रहा हो. कीमोथेरेपी की वजह से उसे उल्टियां हुईं, शरीर में दर्द, कमजोरी. वो हर पल सोचता—’मैंने गलत फैसला ले लिया. मैं अब नहीं बचूंगा.’ वो तारा से कहता, ‘मुझे बस अब शांति चाहिए.’ लेकिन तारा और डॉक्टर्स ने हार नहीं मानी. इम्यूनोथेरेपी के डोज़ के साथ-साथ स्टेरॉयड्स दिए गए, ताकि उसका शरीर इस ट्रीटमेंट को झेल सके. हर दिन एक नई जंग थी. जोसेफ की आंखों में डर था, लेकिन कहीं ना कहीं एक छोटी सी उम्मीद भी जाग रही थी.
ट्रीटमेंट का असर और जोसेफ की वापसी
और फिर… सात दिन बाद… एक चमत्कार हुआ! जोसेफ की हालत में सुधार शुरू हो गया. उसके पेट में पानी कम जमा होने लगा. उसकी सांसें जो हर पल रुकने को तैयार थीं, अब आसानी से चलने लगीं. जोसेफ को पहली बार लगा कि शायद वो जिंदा रह सकता है. वो तारा से बोला—’मुझे लगता है मैं बच जाऊंगा.’ हर हफ्ते उसकी हालत सुधरती गई. वो बिस्तर से उठकर थोड़ा चलने लगा. उसकी आंखों में वो चमक लौटने लगी, जो महीनों पहले कहीं खो गई थी. चार महीने बाद… जोसेफ इतना फिट हो गया कि उसे स्टेम सेल ट्रांसप्लांट मिल सका. इस ट्रांसप्लांट ने उसकी जिंदगी को एक नया रास्ता दे दिया. उसकी बॉडी से वो रेयर डिसऑर्डर धीरे-धीरे खत्म होने लगा. और आज… जोसेफ रिमिशन में है. वो जिंदा है! वो हंस रहा है! पिछले महीने वो तारा के साथ डॉ. डेविड से मिलने फिलाडेल्फिया गया. वो जोसेफ, जो कभी बिस्तर से हिल भी नहीं सकता था, उस दिन जिम में वर्कआउट करते वक्त बस थोड़ा सा टखना तुड़वा बैठा. लेकिन उसकी मुस्कान… उसने कहा—’मैं अब बिल्कुल ठीक हूं!’
AI का जादू और ड्रग रिपर्पजिंग की ताकत
अब सवाल ये कि AI ने ऐसा कैसे कर दिखाया? डॉ. डेविड फजेनबॉम ने AI का इस्तेमाल किया पुरानी दवाइयों को नए तरीके से आजमाने के लिए. इसे कहते हैं ड्रग रिपर्पजिंग. जैसे वियाग्रा पहले दिल की दवा थी, आज कुछ और के लिए फेमस है. AI ने हजारों दवाइयों और बीमारियों का डेटा चेक किया और जोसेफ के लिए ये खास ट्रीटमेंट सुझाया. डॉ. डेविड ने एक नॉन-प्रॉफिट बनाया—एवरी क्योर. ये 4000 दवाइयों को 18,500 बीमारियों से मैच करता है और स्कोर देता है कि कौन सी दवा कितनी काम कर सकती है. जोसेफ के ट्रीटमेंट में AI ने जो कॉम्बिनेशन सुझाया, वो पहले कभी किसी ने ट्राई नहीं किया था. लेकिन इसने काम कर दिखाया.
और भी चमत्कार और भविष्य की उम्मीद
जोसेफ की कहानी अकेली नहीं है. बर्मिंघम, अलबामा में एक 19 साल के लड़के को बार-बार उल्टियां हो रही थीं. AI ने सुझाया—नाक से इसोप्रोपिल अल्कोहल सूंघो. अजीब लगता है ना? लेकिन काम कर गया! कनाडा में एक मरीज को कासलमैन डिजीज थी. AI की सलाह पर एक गठिया की दवा दी गई—और वो भी ठीक हो गया! लेकिन हर चीज परफेक्ट तो नहीं है. AI गलत भी हो सकता है. इसलिए डॉक्टर्स की निगरानी जरूरी है. और एक दिक्कत ये भी है कि ड्रग रिपर्पजिंग से ज्यादा पैसा नहीं कमाया जा सकता, क्योंकि ज्यादातर दवाइयां जेनेरिक होती हैं—यानी सस्ती. फिर भी, डॉ. डेविड की टीम को 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा की फंडिंग मिली है ताकि वो और क्लिनिकल ट्रायल्स कर सकें. तो भविष्य में शायद और लोग जोसेफ की तरह अपनी जिंदगी वापस पा सकें. जोसेफ की कहानी हमें सिखाती है कि हार मान लेना कोई ऑप्शन नहीं. जब सारी उम्मीदें टूट जाएं, तब भी एक छोटी सी किरण बाकी रहती है. और आज AI जैसी टेक्नोलॉजी उस किरण को सूरज में बदल रही है.
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