स्पेस से लौटे अंतरिक्ष यात्रियों के पैरों में क्या हो जाता है? Chicken Legs के बारे में डिटेल में जानिए​

 अगर अंतरिक्ष यात्रियों को सही तरीके से ट्रेनिंग न दी जाए, तो उनका शरीर हमेशा के लिए कमजोर हो सकता है. यही वजह है कि NASA और SpaceX इस रिहैबिलिटेशन को बहुत सीरियसली लेते हैं. पढ़िए सिद्धार्थ प्रकाश की रिपोर्ट…

आप 9 महीने तक बिना चले-फिरे सिर्फ हवा में तैर रहे हों… और फिर अचानक आपको ज़मीन पर चलने के लिए कहा जाए! सुनने में अजीब लग रहा है न? लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों की यही हकीकत होती है. ISS से लौटने के बाद सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) और उनके साथियों के साथ क्या हो रहा है? उनके पैरों को क्या हो गया है? और ‘Chicken Legs’ आखिर होता क्या है? पूरी कहानी आसान भाषा में यहां समझिए. 

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सुनीता और बुच को हो रही क्या परेशानी?

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर 286 दिन यानी करीब 9 महीने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) में रहने के बाद SpaceX के ड्रेगन कैप्सूल में वापस पृथ्वी पर लौट आए हैं. उनकी लैंडिंग फ्लोरिडा के पास टैल-अ-हैस्सी के समुद्र तट पर हुई. लेकिन ये वापसी आसान नहीं होती. अंतरिक्ष में 9 महीने बिताने के बाद, अब उन्हें 45 दिनों तक स्पेशल रीहैबिलिटेशन से गुज़रना होगा. और इसकी सबसे बड़ी वजह है जीरो ग्रैविटी का असर है.

चिकन लेग्स क्या है?

दरअसल, अंतरिक्ष में ग्रैविटी नहीं होती, यानी वहां हमारे पैर, शरीर का भार उठाने का काम नहीं करते. मतलब, जो मांसपेशियां पृथ्वी पर हमारे वजन को सहारा देने के लिए काम करती हैं, वो वहां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं. जब एस्टोनॉट महीनों तक स्पेस में रहते हैं, तो उनकी टांगों की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं और पतली हो जाती हैं, जबकि शरीर का ऊपरी हिस्सा पहले जैसा ही रहता है. ऐसे में जब वो वापस पृथ्वी पर आते हैं, तो उनकी टांगे पतली और कमजोर दिखने लगती हैं, बिलकुल मुर्गे की टांगों जैसी. इसलिए इसे “चिकल लेग्स सिंड्रोम” कहा जाता है.

स्पेस में शरीर पर ज़ीरो ग्रेविटी का असर

ज़ीरो ग्रेविटी की वजह से सिर्फ “चिकन लेग्स” ही नहीं, और भी कई दिक्कतें होती हैं.
1. बेबी फीट सिंड्रोम – अंतरिक्ष में पैरों का उपयोग ना होने से उनके नर्व्स और स्किन सेंसिटिव हो जाती है.
2. चक्कर और उलटी – माइक्रोग्रैविटी से शरीर का बैलेंस खराब हो जाता है, जिससे चक्कर और उलटी जैसा महसूस होता है.
3. बोन डेंसिटी लॉस – हड्डियां कमजोर हो जाती हैं क्योंकि उनमें से कैल्शियम कम होने लगता है.
4. फ्लूइड शिफ्ट – शरीर का तरल पैरों से ऊपर चला जाता है, जिससे चेहरा फूला हुआ दिखता है और पैर और ज्यादा पतले लगते हैं. यही कारण है कि जब अंतरिक्ष यात्री वापस लौटते हैं, तो उन्हें चलने, खड़े रहने और संतुलन बनाए रखने में दिक्कत होती है.

एस्ट्रोनॉट्स की रिकवरी कैसे होती है?

इन सभी समस्याओं से उबरने के लिए सुनीता विलियम्स और उनकी टीम को NASA का 45-दिनों का Rehabilitation Program करना होगा. इसमें क्या-क्या शामिल होगा, जानिए.

स्ट्रेंथ एक्सरसाइज- मांसपेशियों को फिर से मजबूत करने के लिए वर्कआउट
कार्डियोवस्कुलर ट्रेनिंग- दिल और फेफड़ों की कार्यक्षमता सुधारने के लिए एक्सरसाइज़
बोन रिकवरी थैरेपी- हड्डियों की ताकत बढ़ाने के लिए स्पेशल थेरेपी
बैलेंस ट्रेनिंग- दोबारा चलने और खड़े रहने की क्षमता को सुधारने के लिए ट्रेनिंग.

इसलिए लैंडिंग के बाद पहले ही दिन से एस्ट्रोनोट स्ट्रैंथ, कंडीशनिंग एंड रिहैबिलिटेशन (ASCR) प्रोग्राम शुरू कर दिया जाता है, जो रोज़ 2 घंटे, हफ्ते में 7 दिन चलता है.

क्यों जरूरी है अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग?

अगर अंतरिक्ष यात्रियों को सही तरीके से ट्रेनिंग न दी जाए, तो उनका शरीर हमेशा के लिए कमजोर हो सकता है. जरा सोचिए कि  9 महीने तक बिना ग्रैविटी के रहने के बाद आपकी हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर हो जाएं, और अचानक आपको वापस ग्रैविटी में डाल दिया जाए तो शरीर को वापस एडजस्ट होने में समय लगेगा ही. इसलिए NASA और SpaceX इस रिहैबिलिटेशन को बहुत सीरियसली लेते हैं.
 

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