भारत के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी में छात्रों की आत्महत्या के बढ़े मामलों पर चिंता बढ़ी है और स्वतंत्र जांच आयोग स्थापित की जाने की मांग उठ खड़ी हुई है.
देश के प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) में एडमिशन लेना हर उस छात्र का सपना होता है, जो इंजीनियरिंग करना चाहता है. हर साल लाखों की संख्या में छात्र आईआईटी की परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन सिर्फ चुनिंदा ही उसमें सफल हो पाते हैं, पर क्यों हर महीने वहां पढ़ने वाला 1 से ज्यादा छात्र अपनी जान दे रहे हैं. बीते दस वर्षों में ऐसी मामलों की संख्या में 150% से ज़्यादा इजाफा हुआ है. अब स्वतंत्र जांच आयोग स्थापित किए जाने की मांग उठ रही है, जिसमें मनोचिकित्सक हों, लेकिन IIT प्रोफेसर शामिल ना किए जाएं.
32 महीने, 39 खुदकुशी!
भारत के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी में छात्रों की आत्महत्या के बढ़े मामलों पर चिंता बढ़ी है और स्वतंत्र जांच आयोग स्थापित की जाने की मांग उठ खड़ी हुई है. आंकड़े बताते हैं कि इस साल नौ महीने में ही अब तक 10 छात्र सुसाइड से अपनी जान गंवा चुके हैं. इनमें पांच लड़के और पांच लड़कियां शामिल हैं. RTI के जवाब से मिले आंकड़े बताते हैं कि बीते 20 साल में आईआईटी के 127 छात्रों ने आत्महत्या की है. 2005 से 2014 के बीच 35 छात्रों ने जान दी, जबकि 2014 से 2024 तक 92 छात्रों ने जान दी. यानी बीते दस सालों में IITके छात्रों में आत्महत्या के मामले डेढ़ सौ से ज्यादा फीसदी बढ़े हैं.
IIT मद्रास में सबसे ज्यादा 26 छात्रों ने दी जान
IIT कानपुर में 18
IIT खड़गपुर में 14
IIT गुवाहाटी में 13
IIT दिल्ली और IIT बॉम्बे में 10-10 छात्रों ने खुदकुशी की है.
बाकी मामले दूसरे आईआईटी संस्थानों से रहे. इन सभी मामलों में एकडेमिक प्रेशर यानी शैक्षणिक दबाव मुख्य कारण के रूप में देखा गया.
इनक्वायरी कमीनशन की मांग
मांग उठ रही है कि ऐसे मामलों में आईआईटी के भीतर इंडिपेंडेंट कमीशन ऑफ इनक्वायरी बनाया जाए, जिसमें मनोचिकित्सक शामिल किए जायें. साथ ही मांग की गई है कि इसमें आईआईटी प्रोफ़ेसर शामिल ना हों.
आरटीआई एप्लिकेंट और पूर्व आईआईटी कानपुर छात्र धीरज सिंह ने बताया, “पहले जहां चार महीने में खुदकुशी की एक खबर पहुंचती थी अब लगभग हर महीने एक से ज्यादा ऐसे मामले रिपोर्ट हो रहे हैं. इसके तीन उपाय हैं, हॉस्टल या ब्रांच स्तर पर ही ऐसा माहौल बने जहां छात्रों द्वारा ही पियर मेंटरशिप दी जाये. सीनियर और पूर्व छात्र ज़िम्मेदारी निभायें. एकडेमिक रिफॉर्म की जरूरत है क्योंकि एकडेमिक प्रेशर ही नंबर वन कारण बनकर उभरा है इन मामलों में. मिनिस्ट्री को भी बड़ा रोल प्ले करना चाहिए कि इंडिपेंडेंट कमीशन ऑफ़ इनक्वायरी स्थापित की जाये, जिसमें मनोचिकित्सक हों, इसमें आईआईटी प्रोफ़ेसर ना हो और निर्धारित करे की जवाबदेही किसकी बनती है.”
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक?
मुंबई के बड़े अस्पतालों और इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी से जुड़े देश के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी बताते हैं कि “साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी” बेहद जरूरी है.
डॉ हरीश शेट्टी ने बताया, साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी बेहद जरूरी है. मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक और वकील इसका हिस्सा हों, पूरी स्कैनिंग हो हिस्ट्री की, सोशल मीडिया की भी पूरी हिस्ट्री निकाली जाये, छह महीने में किससे मिले, क्या बात की, पूरी जानकारी निकालने का काम इस ऑटोप्सी के जरिये हो ताकि रियल समस्या पता चले और इसका हल निकले.
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