आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए कुछ ही पलों में सब कुछ बनने लग जाए तो फिर कला शैली के क्या मायने रह जाएंगे. इसमें जो इंसानी भावों और स्पर्श का महत्व होता है, वो तो ख़त्म ही हो जाएगा.
मान लीजिए आप हफ़्तों और महीनों की मेहनत से कोई पेंटिंग बनाएं. उसे बनाते हुए अपनी सारी कला, सारे जज़्बात उसमें उतार दें और उधर कोई दूसरा किसी मशीन का इस्तेमाल कर उसे पल भर में बना दे. आप निराश होंगे या नहीं. क्या उथल पुथल होगी आपके मन के भीतर. आपके भीतर के कलाकार की क्या हालत होगी. दुनिया में आजकल ऐसा ही हो रहा है, जब से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर आया है, कला और कलाकारों को इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. सवाल है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए कुछ ही पलों में जब सब कुछ तैयार हो जाए तो कला शैली के क्या मायने रह जाएंगे. इसमें जो इंसानी भावों और स्पर्श का महत्व होता है, वो तो ख़त्म ही हो जाएगा.

जापान के प्रतिष्ठित Studio Ghibli की 2013 में रिलीज़ हुई फिल्म The Wind Rises का एक छोटा सा सीन है. फिल्म में ग्रेट कांटो भूकंप के बाद सड़कों पर अफ़रातफ़री को दिखाते सीन में लगता है कि हर व्यक्ति का कोई मक़सद है. वो डरा या सहमा हुआ कहीं भाग रहा है. किसी न किसी तरह व्यस्त दिख रहा है. 4 सेकंड का ये सीन असलियत के काफ़ी क़रीब लगता है. आप हैरान होंगे ये जानकर कि चार सेकंड के इस ऐनिमेशन को बनाने में आर्टिस्ट ईजी यामामोरी को एक साल तीन महीने लग गए. इसके हर फ्रेम को पूरी तरह हाथ से बनाया गया. हर चेहरे के भाव को स्पष्टता से उकेरा गया और फिर इसे ऐनिमेट किया गया. इस काम में बहुत धैर्य और समय लगता है. दरअसल Studio Ghibli के डायरेक्टर हायो मियाज़ाकी इस बात पर अडिग थे कि इस सीन को पूरी तरह हाथ से बनाया जाए. इसीलिए सिर्फ़ इस सीन को तैयार करने में Studio Ghibli की टीम को सवा साल लग गए.
लेकिन अगर अब ये सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए कुछ ही पलों में बनने लग जाए तो फिर इस कला शैली के क्या मायने रह जाएंगे. इसमें जो इंसानी भावों और स्पर्श का महत्व होता है, वो तो ख़त्म ही हो जाएगा. वैसे ही जैसे पावरलूम के कपड़ों के साथ कोई भाव नहीं जुड़ा होता, लेकिन हैंडलूम पहनते वक्त आपको अहसास होता है कि किसी ने काफ़ी मेहनत के साथ इस कपड़े, इस शॉल को लंबे समय में तैयार किया है. उसका जज़्बा, उसके भाव उस कपड़े के तंतुओं में घुले मिले होते हैं या फिर एक और उदाहरण लें. पारंपरिक मधुबनी पेंटिंग का. आप उसे ख़रीदते हैं तो आपको पता होता है कि ये किसी की मेहनत, किसी की कला का नमूना है, लेकिन उसकी शैली को कॉपी कर AI उसे पलक झपकते ही बनाने लगे तो आप वैसी कृति को कितना महत्व देंगे. शुरू में कुछ आश्चर्यचकित होंगे और कुछ समय बाद ये बात आपके लिए सामान्य हो जाएगी, लेकिन मधुबनी पेंटिंग बनाने वाले कलाकारों को ये बात ज़रूर सालती रहेगी.
आम हो गया Studio Ghibli का स्टाइल
बस ऐसा ही एक मुद्दा इन दिनों दुनिया भर में काफ़ी सुर्ख़ियों में है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र की नामी कंपनी OpenAI का चैटबॉट ChatGPT जो आए दिन कमाल कर रहा है, उसका ताज़ा कमाल जितना सराहा जा रहा है उतना ही विवादों में भी फंस गया है. 26 मार्च को OpenAI ने अपने ChatGPT – 4o के AI image generation में अपडेट का एलान किया जिससे उसमें अलग-अलग स्टाइल्स को या कला शैलियों को कॉपी करने की क्षमता आ गई. इसके बाद तो लोगों ने ChatGPT के सामने अलग अलग शैलियों को कॉपी करने के कमांड देने शुरू कर दिए और इसमें सबसे ज़्यादा छा गया जापान के मशहूर Studio Ghibli का स्टाइल जो अपनी सुंदर, प्यारी, खुशनुमा तस्वीरों की शैली के लिए जाना जाता है. सोशल मीडिया पर सक्रिय करोड़ों लोगों ने अपनी और अपनों की तस्वीरें Studio Ghibli स्टाइल में बनवानी शुरू कर दीं. Studio Ghibli स्टाइल पोर्ट्रेट से सोशल मीडिया भर गया. किसी ने उन्हें अपना प्रोफाइल पिक बना दिया, किसी ने अपनी नई पोस्ट बना दिया. लाइक्स और शेयर्स की बाढ़ आ गई. इसे गिबलिफिकेशन एक्सपेरिमेंट भी कहा जा रहा है. ख़ुद OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने सोशल मीडिया X पर अपनी प्रोफ़ाइल तस्वीर के तौर पर अपनी गिबली इमेज लगा दी. सोशल मीडिया पर सक्रिय आम और ख़ास लोगों ने इस क़दर इसका इस्तेमाल किया कि OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन को लॉन्च के अगले ही दिन कहना पड़ गया कि उनके सिस्टम पर बोझ बहुत ज़्यादा बढ़ गया है.

ऑल्टमैन ने लिखा कि ये बहुत अच्छा है कि लोग ChatGPT की तस्वीरों को पसंद कर रहे हैं, लेकिन हमारे GPU पिघल रहे हैं यानी ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स पर बोझ बहुत बढ़ गया है, वो गर्म हो रही हैं. इसीलिए जब तक हम जल्द ही इसे और क्षमतावान बना पाते हैं तब तक अस्थायी तौर पर कुछ रेट लिमिट लगा रहे हैं. ChatGPT के मुफ़्त संस्करण में प्रति दिन एक एड्रेस से तीन इमेज ही जनरेट हो पाएंगी.

इसके कुछ ही दिन के अंदर अब सैम ऑल्टमैन ने ये एलान कर दिया है कि ChatGPT इमेज जनरेशन को सभी फ्री यूज़र्स के लिए खोल दिया गया है. इसका साफ़ मतलब है कि Open AI ने अपने चैट जीपीटी की क्षमता को बड़ी तेज़ी से बढ़ा दिया है.
अभी बड़ा सवाल ये है कि AI की अद्भुत क्षमता अगर कला शैलियों की हूबहू नकल करने लगेगी या उसी कला शैली में कुछ नया बनाने लगेगी तो इंसान की उस प्रतिभा का क्या होगा जो उसे नैसर्गिक तौर पर हासिल होती है और जिसे मेहनत कर वो संवारता है, अपने अनुभवों को उसमें उतारता है और कुछ नया सृजन करता है. Studio Ghibli के बहाने ये सवाल गहरा गया है.

Studio Ghibli की स्थापना 1985 में फिल्मकार हायो मियाज़ाकी, इसाओ ताकाहाता और तोशियो सुज़ुकी ने की थी. जापान का ये सबसे प्रतिष्ठित एनिमेशन स्टूडियो रहा है, जिसकी ख़ासियत हाथ से बने एनिमेशन, तस्वीरों या पात्रों की अद्भुत भाव भंगिमाएं, बहुत ही बारीकी से रची गई पृष्ठभूमि और कहानी कहने का बेहद दिलचस्प तरीका है. Studio Ghibli का ये अद्भुत सौंदर्य बोध बीते चार दशकों से लोगों को लुभाता रहा है. ये anime art एक तरह का खुशनुमा माहौल बनाती है, एक तरह की ज़िंदादिली दिखाती है. अगर तनाव भरे चेहरों को भी दिखाया गया हो तो वो आंखों और ज़ेहन पर भारी नहीं पड़ते. इस एनिमे आर्ट में इस्तेमाल रंगों में अलग सी ऊष्मा महसूस होती है, उसके स्केच उसे अलग बनाते हैं. यही वजह है कि Studio Ghibli की इमेज देखते ही पहचानी जाती है और अगर किसी ख़ूबसूरत कहानी में उन्हें पिरो दिया जाता है तो वो अपने आप में एक अद्भुत कृति की तरह सामने आती है. यही Studio Ghibli इफेक्ट है, जिसे ChatGPT के नए संस्करण से धक्का लगा है.
क्या ये कला की चोरी नहीं है?
कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये कला की चोरी नहीं है. क्या ये कलाकारों से उनके हक़ को छीनना नहीं है. उनकी प्रतिभा के साथ अन्याय नहीं है. क्या ये बौद्धिक संपदा अधिकारों को दूसरे तरीके से हथियाना नहीं माना जाएगा. क्या इसके लिए ChatGPT को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. क्या हम सभी लोगों को जिन्होंने भी ChatGPT से गिबली स्टाइल में इमेज बनवाई हैं, इस अपराध के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो गए हैं. ऐसे तमाम सवाल हैं जो कलाकारों की दुनिया में लगातार उठ रहे हैं. इस बीच ChatGPT द्वारा बनाई जा रही इन तस्वीरों पर अभी तक Studio Ghibli के संस्थापक हायो मियाज़ाकी की प्रतिक्रिया नहीं आई है, अलबत्ता उनके करोड़ों प्रशंसक ज़रूर नाराज़ हैं, लेकिन AI आर्ट को लेकर मियाज़ाकी की एक पुरानी प्रतिक्रिया का काफ़ी ज़िक्र हो रहा है.
And yet you leave out a full minute of context, showing that Miyazaki was disgusted by a completely different technology made to generate grotesque body horror. From 8 years ago. https://t.co/HjvW57a1mS pic.twitter.com/oCl8EwkyOp
— Minh Nhat Nguyen (@menhguin) March 27, 2025
क़रीब दशक भर पहले 2016 में हायो मियाज़ाकी को AI द्वारा बनाया गया एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें एक अजीब सा अधबना प्राणी दर्द से कराहता ज़मीन पर रेंग रहा था. मियाज़ाकी से इस वीडियो पर उनकी राय पूछी गई तो मियाज़ाकी ने कहा कि ये जीवन का अपमान है, जिसने भी ये बनाया है उसे नहीं पता कि दर्द क्या होता है. मैं पूरी तरह निराश हूं. अगर आप ऐसी अजीब चीज़ बनाना चाहते हैं तो बना सकते हैं. मैं इस टैक्नोलॉजी को कभी अपने काम में शामिल नहीं करूंगा. मैं ठोस तौर पर महसूस करता हूं कि ये ख़ुद जीवन का ही अपमान है.

उम्मीद करनी चाहिए कला में AI के ऐसे इस्तेमाल को लेकर Studio Ghibli के संस्थापक हायो मियाज़ाकी की राय में इससे अंतर नहीं आया होगा और अब जब उनके स्टूडियो की ख़ास स्टाइल को AI धड़ल्ले से कॉपी कर रहा है तो उनके प्रशंसक भी इससे खुश नहीं हैं. हालांकि चैटजीपीटी की ओर से पिछले मंगलवार को पेश एक टैक्निकल पेपर में कहा गया था कि नया AI टूल व्यक्तिगत कलाकारों की शैली को कॉपी करने में थोड़ा रूढ़ीवादी दृष्टिकोण रखेगा. अगर कोई यूज़र किसी जीवित कलाकार की स्टाइल में इमेज जनरेट करने को कहेगा तो उससे इनकार कर दिया जाएगा, लेकिन स्टूडियो स्टाइल्स को मोटे तौर पर कॉपी करने की इजाज़त बनी रहेगी.
दरअसल किसी कलाकृति को बनाना अपने आप में एक साधना है. कलाकार अपने सारे अनुभवों और भावों को पूरी सूक्ष्मता के साथ कैनवस पर उकेर देता है. अपने पात्रों की हर भाव भंगिमा को बारीकी के साथ उतार देता है. रंगों और स्ट्रोक्स से अपनी पेंटिंग में जीवन भर देता है, लेकिन मशीनी सोच से भरी दुनिया में शायद इन भावों की अहमियत खोती जा रही है. ओपनएआई के प्रमुख सैम ऑल्टमैन ने अब एलान कर दिया है चैट जीपीटी के इस फीचर को यूज़र्स के लिए फ्री कर दिया गया है जो अब तक प्रीमियम यूज़र्स के लिए उपलब्ध थी. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी AI सिस्टम के अंदर किसी ख़ास शैली को तैयार करने की क्षमता आई हो लेकिन ChaptGPT का नया अपडेट इसे नई ऊंचाइयों पर ले गया. बहुत ही आसान तरीके से वो कला शैली को हूबहू कॉपी करने में सक्षम हो गया.
एआई सीख सकता है, इमोशन पैदा नहीं कर सकता: शाह
इस पूरे मुद्दे पर हमने फोटोग्राफ़र, ग्राफिक डिज़ाइनर और फिल्म मेकर पार्थिव शाह से बात की. उन्होंने कहा कि यह हमारे बौद्धिक अधिकारों का हनन है, क्योंकि साधारत तौर पर हमें इसके लिए अनुमति देनी होगी. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर पेंटिंग्स की शैली को कंप्यूटर को सिखाया जाए तो वो तो सीख लेगा. किसी को ज्यादा वक्त लगेगा किसी को कम वक्त लगेगा वो सीख तो लेगा लेकिन मेरा मानना है कि उसके लिए अनुमति लेनी जरूरी है.
शाह ने कहा कि इंसान ही मशीन को सिखाएंगे. मशीनें थोड़ा सा तेज कर लेती हैं और ज्यादा बेहतर है, लेकिन आप अपना चेहरा देखें या मेरी अंगुलिया देंखे तो वो सारी अलग-अलग होती हैं. मेरे दोनों कान अलग हैं, मेरी दोनों आंखें अलग हैं. कंप्यूटर सीधा कर देगा स्ट्रेट कर देगा उससे कोई मजा नहीं आएगा. वो परफेक्ट किसके लिए है, वो मेरे लिए तो परफेक्ट नहीं है.
उन्होंने कहा कि एआई सीख तो लेता है, लेकिन ह्यूमन इमोशन को पैदा नहीं कर सकता है. मुझे इसमें एक ही परेशानी लग रही है कि हम जब ग्रोक में या चैट जीपीटी में अपना फोटोग्राफ अपलोड करते हैं तो हम उसका राइट दे देते हैं. उन्होंने कहा कि जब मैं अपने परिवार का फोटो लगा देता हूं तो वो उनका राइट हो जाता है, वो उसको यूज कर सकते हैं. हम सारे लोग अपलोड करके उन्हें पूरा राइट दे रहे हैं. यह बहुत ही खतरनाक है.
उन्होंने कहा कि कला के मायने ही ये है कि एक इंसान जब कोई कलाकृति बनाता है, कोई कविता लिखता है या कोई उपन्यास लिखता है या कोई चित्र या स्कल्पचर बनाता है तो उसकी उस समय की मनस्थिति क्या है? उसके आसपास क्या हो रहा है? उससे प्रेरणा लेकर या उससे परेशान या उससे हताश होकर के उसमें से कुछ निकलता है. कोई भी पौधा जमीन से निकलता है तो जमीन को फटना पड़ता है. यह चीज सिर्फ इंसान में होती है और वो ही क्रिएट कर सकता है. अभी समय लगेगा कि एआई को कि वह अपने आप कुछ चीजें क्रिएट कर सके. हमें एक स्तर पर घबराना नहीं चाहिए. हालांकि हम लोग इतना प्रभावित हो गए हैं कि हमने इसे यूज करना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि हमें बहुत ही सोचे-समझे तरीके से इसका यूज करना होगा.

फिलहाल तथ्य ये है कि लोग भर भरकर अपनी और अपनों की अलग अलग तस्वीरें इसके बाद इन AI chatbot के हवाले कर रहे हैं और इसे लेकर ही कई जानकार ख़ासतौर पर डिजिटल प्राइवेसी की दिशा में काम कर रहे लोग सतर्क भी कर रहे हैं. उनका दावा है कि इस तरह से ये एआई चैटबॉट अपने एआई की ट्रेनिंग के लिए करोड़ों व्यक्तिगत इमेज हासिल कर रहे हैं. लोगों को मज़ा तो आ रहा है लेकिन उन्हें ये अहसास नहीं है कि वो अपना नया फेशियल डेटा ओपन एआई या ग्रोक 3 को सौंप रहे हैं जो निजता से जुड़ी एक गंभीर चिंता खड़ी करता है.

इसी दिशा में काम करने वाली एक हस्ती लुइज़ा जारोवस्की जो एआई, टेक एंड प्राइवेसी अकेडमी की सह-संस्थापक हैं वो लिखती हैं कि अधिकतर लोगों ने ये अहसास नहीं किया है कि गिबली इफेक्ट न सिर्फ़ एक AI कॉपीराइट विवाद है बल्कि ये हज़ारों लोगों की नई व्यक्तिगत तस्वीरें पाने की OpenAI की पब्लिक रिलेशंस ट्रिक भी है. हज़ारों लोग ख़ुद ही अपनी व्यक्तिगत तस्वीरें और चेहरे चैटजीपीटी पर अपलोड कर रहे हैं. इससे OpenAI को अपने AI मॉडल्स के प्रशिक्षण के लिए हज़ारों नए चेहरे मुफ़्त और आसानी में उपलब्ध हो रहे हैं.
अब ये सवाल भी उठ रहा है कि जब AI किसी भी चीज़ की कॉपी कर सकता है तो कॉपीराइट के मुद्दे का क्या होगा. क्या ये माना जाए कि कॉपीराइट का दौर ख़त्म हो गया या फिर इस नई चुनौती से निपटने के लिए कुछ नया किया जाएगा. AI की ऐसी तमाम क्षमताएं दरअसल ये सवाल खड़ा कर रही हैं कि क्या वो समय आने वाला है जब कई काम, कई नौकरियां AI की भेंट चढ़ जाएंगी. लाखों लोग इसका शिकार बनेंगे. क्या इसी बहाने AI की ऐसी तमाम क्षमताओं की समीक्षा नहीं होनी चाहिए. क्या कोई रेड लाइन, कोई सीमा तय नहीं की जानी चाहिए. ये बहस आने वाले दिनों में और तेज़ होगी.
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