January 17, 2025
Explainer: Spadex डॉकिंग मिशन सफल, जानिए क्‍यों है यह इसरो की बड़ी सफलता

Explainer: Spadex डॉकिंग मिशन सफल, जानिए क्‍यों है यह इसरो की बड़ी सफलता​

भारत ने अंतरिक्ष में एक और सफलता अपने नाम की है. इसरो का Spadex डॉकिंग मिशन कामयाब रहा है. अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश है जो अंतरिक्ष में बेहद तेज़ रफ़्तार से चक्कर लगा रहे दो उपग्रहों को आपस में जोड़ने में कामयाब हुआ है.

भारत ने अंतरिक्ष में एक और सफलता अपने नाम की है. इसरो का Spadex डॉकिंग मिशन कामयाब रहा है. अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश है जो अंतरिक्ष में बेहद तेज़ रफ़्तार से चक्कर लगा रहे दो उपग्रहों को आपस में जोड़ने में कामयाब हुआ है.

अंतरिक्ष की अंतहीन दुनिया और ब्रह्मांड के अज्ञात रहस्यों की पड़ताल करने की दिशा में भारत ने एक ऐतिहासिक मील का पत्थर पार कर लिया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने धरती से 475 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में वो काम कर दिखाया है जो अब तक दुनिया के सिर्फ़ तीन देश ही कर पाए थे. अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश बन गया है जो अंतरिक्ष में बेहद तेज़ रफ़्तार से चक्कर लगा रहे दो उपग्रहों को आपस में जोड़ने में कामयाब हुआ है. इसे डॉकिंग कहते हैं. इसरो का Spadex डॉकिंग मिशन कामयाब हो गया है.

इसरो ने गुरुवार की सुबह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्‍स पर देश को इसके साथ ही एक शानदार गुड मॉर्निंग मैसेज दिया. इसरो ने लिखा भारत ने अंतरिक्ष के इतिहास में अपना नाम जोड़ लिया है. गुड मॉर्निंग इंडिया. इसरो के SpaDeX ने डॉकिंग की ऐतिहासिक कामयाबी को हासिल कर लिया है. इस पल का गवाह बनने पर हमें नाज़ है.

कई सफलताएं दर्ज, लेकिन यह खास

अंतरिक्ष में भारत पहले ही कई कामयाबियां हासिल कर चुका है. भारत एक साथ सौ उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में उतार चुका है. दूसरे देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज चुका है. चांद पर उसका लैंडर उतर चुका है, उसका रोवर चांद की सतह को नाप चुका है. चांद पर पानी है भारत ये भी दुनिया को बता चुका है. मंगल ग्रह पर अपना यान तक भेज चुका है, वहां से लगातार आठ साल तक वैज्ञानिक जानकारियां हासिल कर चुका है. ऐसे में ये जानने की इच्छा सबकी होगी कि इस डॉकिंग मिशन में ऐसा क्या है जो इसकी कहानी अंतरिक्ष में भारत की ताज़ा कामयाबी को इतना गाढ़ा कर रही है.

दरअसल भारत ब्रह्मांड की कई गुत्थियों को सुलझाने की दिशा में तभी तेज़ी से आगे बढ़ सकता है, जब अंतरिक्ष में कुछ समय बिताया जा सके. अपना मानव मिशन अंतरिक्ष और चांद तक भेजा जा सके. अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन बनाया जा सके. इसके लिए इसरो के SpaDeX यानी Space Docking Experiment मिशन का कामयाब होना ज़रूरी था.

भारत ने कैसे हासिल की कामयाबी?

इसके लिए भारत ने 30 दिसंबर को अपने सबसे भरोसेमंद रॉकेट पीएसएलवी C60 के ज़रिए 24 पेलोड्स के साथ-साथ दो छोटे यानों को अंतरिक्ष में भेजा. ये थे SDX01 जो Chaser था और SDX02 जो टारगेट था. इन्हें SpaDeX मिशन के तहत भेजा गया. चेज़र यानी वो यान जिसे आगे उड़ रहे टारगेट यान का पीछा कर उसे अपनी जकड़ में लेना था. अंतरिक्ष में 220 किलोग्राम वज़नी इन दोनों उपग्रहों के आलिंगन पर पूरी दुनिया की निगाहें थीं, लेकिन ये इतना आसान नहीं था. दोनों उपग्रह धरती से 475 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा में छोड़े गए जहां उन्होंने एक दूसरे से सुरक्षित दूरी पर पृथ्वी का चक्कर लगाना शुरू कर दिया.

दोनों की रफ़्तार कितनी थी ये सुनकर आप हैरान होंगे. ये रफ़्तार थी 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा जो एके 47 राइफ़ल की गोली की रफ़्तार से दस गुना से भी ज़्यादा है. अब आपको अंदाज़ा आएगा कि इस रफ़्तार से उड़ रहे सवा दो क्विंटल के दो अलग अलग उपग्रहों को अंतरिक्ष में जोड़ना यानी डॉकिंग कितनी बारीकी का काम होगा. वैज्ञानिक गणना में ज़रा सी भी चूक की गुंजाइश नहीं थी. यही वजह रही कि इसरो ने डॉकिंग से पहले कई बार परीक्षण किये. 7 जनवरी और 9 जनवरी को डॉकिंग की दो शुरूआती कोशिशों को अधूरा छोड़ दिया गया क्योंकि यान ड्रिफ्ट कर रहे थे यानी अपने रास्ते से थोड़ा हट रहे थे इस वजह से काफ़ी क़रीब आने के बावजूद डॉकिंग को टाला गया. इस दौरान दोनों यानों ने एक दूसरे की तस्वीरें भी खींची. 12 जनवरी को इसरो दोनों यानों को तीन मीटर तक क़रीब ले आया और फिर उन्हें सुरक्षित दूरी पर वापस पहुंचा दिया.

इन कोशिशों से मिले डेटा का विश्लेषण कर फ़ाइनल डॉकिंग की तैयारी की गई जो गुरुवार की सुबह कामयाब हो गई. चेज़र यान SDX01 ने टारगेट यान SDX02 को कामयाबी के साथ पकड़ लिया. इसके बाद इसरो के वैज्ञानिक एके 47 राइफल की गोली से दस गुना तेज़ी से अंतरिक्ष में उड़ रहे दो यानों की relative velocity यानी सापेक्ष वेग को शून्य तक लाए और इस तरह दोनों एक दूसरे से जुड़ पाए और एक अंतरिक्ष यान बन गए. अब दोनों एक ही सिग्नल पर एक अंतरिक्ष यान की तरह बर्ताव कर रहे हैं.

अभी कई अलग-अलग परीक्षण बाकी

लेकिन अभी ये प्रयोग पूरा होना बाकी है. इसरो के मुताबिक इसके बाद दोनों यानों या कहें उपग्रहों के बीच बिजली ट्रांसफ़र की जाएगी. ऐसा करने के बाद भविष्य में एक यान अंतरिक्ष में दूसरे यान को ऊर्जा दे सकेगा या बिजली सप्लाई कर सकेगा.

इसके बाद दोनों को एक दूसरे से अलग किया जाएगा यानी undocking और वो भी कामयाब होनी उतनी ही ज़रूरी है जितनी docking. तकनीक में ये महारत भविष्य के कई महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए काफ़ी ज़रूरी है.

दोनों उपग्रह अलग होने के बाद अगले दो साल तक कई अलग अलग परीक्षण और प्रयोग करेंगे.

SpaDeX मिशन का कामयाब होना भविष्य के कई मिशनों की बुनियाद बन जाएगा.

सालों से देख रहे थे यह सपना: नंबी नारायण

केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भारत की इस कामयाबी पर कहा कि अब हम दुनिया के उन 3-4 देशों में से हैं जो इस विशिष्ट लीग में शामिल हैं. वहीं इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण ने कहा कि यह कुछ ऐसा है, जिसका सालों में से हम सपना देख रहे थे. यह कुछ ऐसा है जिसे सिर्फ तीन देशों अमेरिका, रूस और चीन ने हासिल किया है और अब हम ऐसा करने वाले चौथे देश हैं. यह इसरो के भविष्य के मिशनों खासकर चंद्रयान 4 और गगनयान मिशनों से पहले एक आवश्यकता थी.

भविष्य के महत्वाकांक्षी मिशनों के लिए इसरो को ऐसी कई नई टेक्‍नोलॉजी पर महारत हासिल करनी है.

इसी दिशा में 2023 में चंद्रयान 3 मिशन के तहत भारत चांद पर अपना विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर पहले ही उतार चुका है. इसी मिशन के तहत एक हॉप एक्सपेरिमेंट किया गया था, जिसमें विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर एक जगह से उड़ाकर कुछ दूरी पर दूसरी जगह उतारा गया था.

ये प्रयोग 2027 तक भारत के अगले मिशन चंद्रयान 4 के लिए अहम साबित होगा. इस मिशन के तहत चांद पर लैंडर को उतारने, वहां से सैंपल जमा कर वापस धरती पर लाने की तैयारी है. इस मिशन के नतीजे चांद पर किसी भारतीय को उतारने में अहम साबित होंगे. इस मिशन के तहत दो अलग-अलग लॉन्च से पांच मॉड्यूल अंतरिक्ष में भेज जाएंगे. मॉड्यूल्स की डॉकिंग और अनडॉकिंग में महारत इस मिशन को कामयाब बनाएगी.

इसी की अगली कड़ी में भारत की योजना 2040 तक चांद पर किसी भारतीय को उतारने की है. चांद पर किसी अंतरिक्ष यात्री को उतारने और फिर पृथ्वी पर वापस लाने के लिए भी अलग अलग यानों को आपस में जोड़ने, अलग करने और वापस धरती पर लौटने से जुड़ी टेक्‍नोलॉजी पर महारत हासिल करनी ज़रूरी है. डॉकिंग और अनडॉकिंग में महारत के बिना ये मिशन पूरे नहीं हो सकते.

भारतीय अंतरिक्ष स्‍टेशन बनाने में भी आएगा काम

भारत 2035 तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की तरह अपना भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहा है. इसके तहत आठ लॉन्च किए जाएंगे जिनसे भेजे गए अलग अलग मॉड्यूल्स को अंतरिक्ष में जोड़कर अंतरिक्ष स्टेशन तैयार किया जाएगा. डॉकिंग- अनडॉकिंग का अनुभव उसमें भी काम आएगा. इन रोबोटिक मॉड्यूल्स का पहला हिस्सा 2028 तक लॉन्च करने की योजना है.

हालांकि इस सबसे पहले इसरो की निगाह अपने गगनयान मिशन को कामयाब बनाने की है. इसके तहत 2025 और 2026 में बिना अंतरिक्ष यात्री के मिशन भेजे जाएंगे जो अंतरिक्ष में किसी भारतीय को भेजने के पहले मिशन की बुनियाद रखेंगे. 2026 के अंत तक किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में पहुंचाने और सुरक्षित वापस लाने का लक्ष्य है. इसके लिए क्रू इस्केप सिस्टम से लेकर कई तरह की टेक्‍नोलॉजी को परखा जाएगा.

सबसे पहले अमेरिका ने हासिल की थी सफलता

इनके अलावा भी इसरो के कई और मिशन कतार में हैं. भारत ने जिस डॉकिंग मिशन में कामयाबी हासिल की है, उस पर अभी तक दुनिया के तीन देश ही महारत हासिल कर पाए थे. अमेरिका, रूस और चीन. ये काम दरअसल है ही इतना जटिल. चांद पर इंसान को भेजने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले अमेरिका ने डॉकिंग का कामयाब प्रयोग किया.

16 मार्च 1966 को लॉन्च हुआ Gemini 8 अंतरिक्ष यान पहला यान बना जिसे Agena target यान के साथ जोड़ा गया. ख़ास बात ये है कि ये crewed mission था जो धरती का चक्कर लगा रहा था. इस मिशन में एक अंतरिक्ष यात्री थे नील आर्मस्ट्रांग वही अंतरिक्ष यात्री जिन्होंने 1969 में चांद पर सबसे पहली बार कदम रखे. उनके साथ दूसरे अंतरिक्ष यात्री थे डेविड स्‍कॉट. डॉकिंग के इस पहले परीक्षण की कामयाबी ने इतिहास रच दिया. जुड़े हुए दोनों यानों ने इसके बाद पृथ्वी के दो चक्कर लगाए लेकिन इसके बाद अचानक कुछ पल ऐसे आए जब सबके होश उड़ गए. Gemini 8 के फ़्लाइट कंट्रोल सिस्टम के थ्रस्टर में कुछ गड़बड़ी आने से अंतरिक्ष यान काबू से बाहर होने लगा. कमांड पायलट नील आर्मस्ट्रांग ने धरती पर नासा के वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी दी. अंतरिक्ष यान बेकाबू होकर घूमता जा रहा था, लेकिन नील आर्मस्ट्रांग ने हौसला नहीं खोया और सूझबूझ दिखाते हुए स्पेस क्राफ्ट के री एंट्री सिस्टम तक पहुंच गए और उसे चालू कर दिया. इससे स्पेसक्राफ्ट स्थिर होकर काबू में आ गया लेकिन री एंट्री सिस्टम एक्टिवेट हो चुका था. ऐसे में नासा को अपने मिशन को सुरक्षा कारणों से बीच में ही ख़त्म करना पड़ा. धरती पर लौटने का समय आ चुका था और फिर कुछ ही देर बाद दोनों अंतरिक्ष यात्री प्रशांत महासागर की लहरों के बीच सुरक्षित उतर आए. तीन दिन के इस मिशन में अंतरिक्ष यात्री डेविड स्कॉट को दो घंटे की स्पेस वॉक भी करनी थी, लेकिन वो थ्रस्‍टर की गड़बड़ी के कारण वो सब छोड़ना पड़ा और मिशन दस घंटे में ही ख़त्म हो गया. हालांकि चंद्रमा से जुड़े मिशनों के लिहाज से Gemini 8 को एक बेहद कामयाब मिशन माना गया. उसकी वजह ये है कि अंतरिक्ष में इंसान ने डॉकिंग, अनडॉकिंग में महारत हासिल कर ली थी.

इसके बाद 20 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखने वाला पहला यात्री बनकर इतिहास रच दिया, तब नील आर्मस्ट्रांग ने चांद से संदेश दिया था कि यह मानव का एक छोटा कदम है, मानवता के लिये एक विशाल छलांग. धरती पर करोड़ों लोगों ने वो संदेश सुना तो उस पल का रोमांच सबको महसूस हुआ. यही नहीं कुछ प्रयोगों के बाद नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथी अंतरिक्ष यात्री एडविन एल्ड्रिन ने चांद पर एक Plaque यानी एक लिखित पट्टी भी छोड़ी जिस पर लिखा था जुलाई 1969 में यहां धरती गृह से आए आदमी ने चांद पर पहली बार कदम रखा.

कॉस्‍मोस 86 और कॉस्‍मोस 188 डॉकिंग

उस दौर में अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष में होड़ इतनी तेज़ थी कि अमेरिका के कामयाब डॉकिंग प्रयोग के अगले ही साल 1967 में सोवियत संघ ने बिना अंतरिक्ष यात्रियों के अपने दो अंतरिक्ष यानों Kosmos 186 और Kosmos 188 की डॉकिंग में कामयाबी हासिल कर ली.

इसके क़रीब साढ़े चार दशक बाद जाकर 2011 में चीन डॉकिंग में कामयाबी हासिल कर पाया, तब चीन का बिना अंतरिक्ष यात्री के गया Shenzhou 8 स्‍पेसक्राफ्ट की चीन की Tiangong 1 space laboratory के साथ कामयाब डॉकिंग हुई. इसके अगले ही साल चीन ने अंतरिक्ष यात्रियों के साथ इसी स्पेस लैबोरेटरी में Shenzhou 9 spacecraft की डॉकिंग को कामयाब कर दिया. चीन भी अंतरिक्ष में तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है.

अंतरिक्ष की दौड़, टॉप-4 देशों में भारत भी

हालांकि भारत भी अब इस दौड़ में बहुत पीछे नहीं है. अगला एक से डेढ़ दशक अंतरिक्ष में भारत की महारत का होने जा रहा है. Spadex मिशन की कामयाबी के बाद अब ये तय हो चुका है कि अंतरिक्ष की दौड़ में दुनिया में जो चार देश सबसे आगे हैं, उनमें अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत का स्थान है. अप्रैल 1975 में अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट के लॉन्च के बाद से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO अभी तक 129 अलग अलग मिशनों के तहत सैकड़ों उपग्रह और अंतरिक्ष यान भेज चुका है. भारत के अंतरिक्ष मिशनों की दो बड़ी ख़ास बात हैं. एक तो इसका अधिकांश हिस्सा स्वदेशी टेक्‍नोलॉजी पर आधारित है. समय के साथ-साथ नई प्रौद्योगिकी में महारत हासिल की जाती रही है.

दूसरी ख़ास बात ये है कि भारत का अंतरिक्ष मिशन लागत के हिसाब से बहुत किफ़ायती रहा है. जैसे SpaDeX मिशन की लागत सिर्फ़ 370 करोड़ रुपए ही आई है और दुनिया भर ने इतनी कम क़ीमत पर भारत की इतनी बड़ी कामयाबी का लोहा माना है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने ये बात खासतौर पर रेखांकित की कि ये मिशन कितना किफ़ायती रहा है. उन्‍होंने कहा कि मिशन की लागत 400 करोड़ से भी कम थी और यह विदेशों में ऐसे मिशनों की तुलना में कुछ भी नहीं है. इसके बाद हमारा मिशन भविष्य के मिशनों के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का है.

दुनिया के मुकाबले बहुत कम लागत

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के तमाम मिशनों को देखें तो दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले वो बहुत ही कम लागत पर तैयार और कामयाब हुए हैं.

SpaDeX मिशन की लागत 370 करोड़ रुपये ही रहीचंद्रयान 1 मिशन की लागत 386 करोड़ रुपये रहीचंद्रयान 2 मिशन की लागत 978 करोड़ रुपये थीचंद्रयान 3 मिशन की लागत 613 करोड़ रुपये रही

कुल मिलाकर 2000 करोड़ रुपए से भी कम में तीनों चंद्रयान मिशन पूरे हो गए. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह के मुताबिक चंद्रयान मिशन का कुल मिलाकर जो खर्च रहा उससे आठ गुना ज़्यादा खर्च रूस ने अपने एक ही मून मिशन पर किया. उस पर 16,000 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन वो मिशन नाकाम रहा. रूस ने 47 साल बाद चांद का रुख किया था और अगस्त 2023 में भारत के चंद्रयान 3 मिशन से चार दिन पहले 19 अगस्त को रूस का लूना 25 मिशन नाकाम रहा था. वो भी इतनी भारी लागत के बाद.

अगर 2014 में भारत के मंगलयान मिशन की बात करें तो उस पर कुल लागत 450 करोड़ रुपए आई. इसके मुक़ाबले मंगल ग्रह से जुड़ी हॉलीवुड की फिल्म The Martian film की लागत 933 करोड़ रुपए थी.

बॉलीवुड फिल्‍मों की लागत इसरो के मिशन से ज्‍यादा

अब भारत के अंतरिक्ष मिशनों को बॉलीवुड के मुकाबले देखें तो कई फिल्में इसरो के बड़े बड़े मिशनों से ज़्यादा लागत वाली रही हैं.

कल्कि 2898 AD की लागत 600 करोड़ रुपये रही है.रजनीकांत की रोबोट का सीक्वल 2.0 की लागत 570 करोड़ रुपये है.एसएस राजामौली की RRR की लागत 550 करोड़ रुपये आई है.अभिनेता प्रभास की फिल्म आदिपुरुष की लागत 500 करोड़ रुपये रही है.

हॉलीवु़ड की तो बात ही क्या करें.वहां तो हमें कम से कम 62 ऐसी फिल्में मिलीं जिनमें सबसे कम लागत वाली फिल्म 204 मिलियन डॉलर में बनी. भारतीय रूपयों में ये 1766 करोड़ रुपए ठहरता है यानी हॉलीवुड की 62 फिल्मों में सबसे छोटी फिल्म की लागत हमारे चंद्रयान मिशन के पहले तीन मिशनों से बस कुछ कम रही. सबसे महंगी फिल्म Star Wars: The Force Awakens का बजट तो 3,871 करोड़ रुपए से ज़्यादा था.

NDTV India – Latest

Copyright © asianownews.com | Newsever by AF themes.