Operation Sindoor से आगे भारत के कदम और चुनौतियां

प्रो. राजेंद्र प्रसाद
आतंकवाद से रक्तरंजित भारत इस समय राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों के समक्ष डटकर खड़ा हुआ है। आज सामाजिक-धार्मिक सौमनस्य और आंतरिक एकजुटता भारत जैसे किसी भी राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा की धुरी है। पाक-प्रायोजित आतंकवाद के लगभग तीन दशकों के संघात से रक्तरंजित होने के बाद, अब भारत द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ा और दंडात्मक रवैया अनिवार्य है। 22 अप्रैल 2025 पहलगाम आतंकी हमले के बाद “ऑपरेशन सिंदूर“ (6/7 मई से 10 मई 2025 तक) की सटीक सैन्य कार्यवाही में 9 आतंकी ढांचों और 15 पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को ध्वस्त करने और घातक हानि पहुँचाने के साथ, असैन्य और गैर-परंपरागत उपायों का प्रयोग अवश्यंभावी है जिसमें सिंधु जल संधि (1960) को स्थगित करके पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था पर करारा संघात करना भारत के लिए समय का तकाजा है। “जल बम” का प्रयोग परमाणु बम से भी अधिक घातक, कारगर और शक्तिशाली होगा।

ऑपरेशन सिंदूर के अगले चरण में भारत अंदर और बाहर आतंकवाद की जड़ों को नष्ट करने के लिए निषेधात्मक और प्रतिक्रियात्मक व दबावपूर्ण कार्यवाही करने के लिए प्रयत्नशील है क्योंकि पहलगाम के आतंकी अभी भी पकड़ या मौत के मुँह में जाने से बचे हुए हैं । इतिहास इस बात का साक्षी है कि आतंकवाद के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही एक दीर्घकालीन संघर्ष का रूप ले लेती है, उदाहरण के तौर पर अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर 9/11 की आतंकी घटना के बाद अमेरिका का आतंकवादविरोधी युद्ध लम्बा चला और 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारा गया किंतु अल क़ायदा की जड़ें अभी भी खत्म नही हो पायी हैं।

दूसरी ओर भारत द्वारा पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध सटीक और सफल ऑपरेशन सिंदूर के उपरांत इस कार्यवाही के औचित्य और वैश्विक समर्थन के लिए, आतंकवादी संगठनों जैसे लश्करे तैयबा, जैस- ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और इन सबके सहयोगी आनुषंगिक संगठनों को प्रायोजित करने वाली पाक सेना और उनकी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आई एस आई) को अपनी हरकतों से बाज आने के लिए सबक सिखाना जरूरी है। 30 साल से ऊपर लगातार आतंकी दंश झेलते हुए आखिर कब तक भारत पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से रक्तरंजित होता रहेगा?

मीडिया का संयम और प्रबंधन की चुनौती

इस बीच, लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर प्रेस, इलेक्ट्रॉनिक मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया को खुली छूट से कभी-कभी राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं। ऐसी दशा में, राष्ट्र हित में संवेदनशील सुरक्षा सूचनाओं को गोपनीय रखने के लिए सूचना और खुफिया एजेंसियों को संयम और मीडिया प्रबंधन भी करना पड़ता है क्योंकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि किसी गोपनीय सूचना के लीक होने का फायदा आतंकवादी संगठन और उनके आकाओं को न मिले। यह भी जरूरी है कि किसी आतंकी कार्यवाही के कारण दहशत के माहौल में आतंकवादियों को अत्यधिक प्रचार न मिल सके क्योंकि कभी कभी अकेली आतंकी घटना से पैदा हुई दहशत सैकड़ों टन उच्च विस्फोटक से ज्यादा मनोवैज्ञानिक संघात करती है। मिसाल के तौर पर पहलगाम के आतंकी हमले को विश्वव्यापी प्रचार- प्रसार मिला जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। ऐसी दशा में प्रारम्भ से भारत सरकार और सैन्य बलों पर प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही का भारी दबाव बन गया था।

आंतरिक एकजुटता और वैश्विक समर्थन

जनरल जिया-उल हक के कार्यकाल से निरंतर पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद भारतविरोधी रणनीति का हिस्सा रहा है। वर्तमान में, भारत द्वारा जारी आतंकवादविरोधी संघर्ष में आतंक के संघ ( league of terror) को नेस्तनाबूद करने के लिए एक ओर भारत में राजनीतिक दलों में व्यापक समझ और आंतरिक एकजुटता तो चाहिए ही, दूसरी ओर आतंकियों और उनके आकाओं के विरुद्ध व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाए रखना जरूरी है।

इस पर हमें ध्यान रखना होगा कि आतंकवाद के विरुद्ध व्यापक संघर्ष में भारत में सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों द्वारा आतंकवादविरोधी राजनीतिक जनसमर्थन की निरंतरता में कमी पूरे अभियान को कमजोर बना सकती है, इसलिए ऑपरेशन सिंदूर की शुरुवात में एकजुटता का जो त्वरण था, उसे राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के रक्षण एवं संवर्द्धन हेतु कायम रखना चाहिए ।

वोट की राजनीति की आड़ में किसी भी पार्टी, प्रेक्षक या समर्थक मीडिया को अनर्गल राजनीतिक बयानबाजी और प्रसारण से बचना चाहिए क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। सत्ताधारी पक्ष को भी उक्त सैन्य कार्यवाही का अनुचित फायदा उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह सांविधानिक मूल्यों एवं गरिमा का उल्लंघन होगा।

इस अवसर पर हमें प्रथम विश्वयुद्धकालीन फ्रांसीसी राजनीतिज्ञ एवं चिंतक जार्ज क्लाइमेंसौ के कथन को ध्यान में रख कर यह आगाह करना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा चैतन्यता ऐसे गम्भीर मामले हैं जो न तो अकेले नीति-निर्धारक राजनेता अपने ऊपर ले सकते हैं, न ही सैन्य अधिकारियों पर ही छोड़ा जा सकता है। इसके लिए खतरों और चुनौतियों का आंकलन करके राष्ट्रीय शक्ति संचय, तैयारी और परिस्थितियों के अनुसार विकल्पों को खुला रखना पड़ता है । सैन्य शक्ति का प्रयोग या युद्ध तो अंतिम विकल्प होता है।एक बड़ी आर्थिक एवं सैन्य शक्ति वाला भारत भी इसका अपवाद नहीं हो सकता ।

वर्तमान परिवेश में आतंकवाद विरोधी संघर्ष की प्राथमिकताओं में भारत वैश्विक समर्थन जुटाकर पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय प्रांगण में निरीह और अलग- थलग कर सकता है । इसके लिए वह वैदेशिक परम्परागत राजनय के साथ-साथ, बहुदलीय सांसदों की टीमें भेजकर ऑपरेशन सिंदूर के औचित्य को पूरक राजनय (supplemental diplomacy) की मदद से प्रमाणित करते हुए, व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन को सुनिश्चित करना चाहता है ।इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, क्षेत्रीय सुरक्षा एवं आर्थिक सहयोग संगठनों और द्विपक्षीय सामरिक भागीदारियों आदि के स्तर पर पाकिस्तान की आतंकवाद समर्थक मनोदशा और उसके सहयोगियों की पोल खोलने की आवश्यकता है ।

अंतत: व्यापक स्वदेशीय और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के सुदृढ़ धरातल पर खड़ा भारत पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध सफलता अर्जित कर सकता है। इसके लिए उसे एक ओर पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध निरोधात्मक उपायों के साथ- साथ प्रतिक्रियात्मक और दमनात्मक उपायों को प्रभावी बना सकता है। इस क्रम में आतंकवाद उन्मूलन के साथ जब तक , पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) जैसे किसी बड़े लक्ष्य के लिए सैन्य उपाय या युद्ध के विकल्प को अंतिम रूप नहीं दिया जाता , तब तक असैन्य और गैर-परंपरागत उपायों से पाकिस्तानी अर्थ व्यवस्था को पंगु बनाया जा सकता है। इस सन्दर्भ में एक सर्वग्राह्य कथन है कि—हम दुश्मन को सैन्य उपायों से क्यों हतोत्साहित करें, जब हम असैन्य और गैर-परंपरागत उपायों से अपेक्षाकृत बेहतर कर सकते हैं। इसके अंतर्गत पाकिस्तान के विरुद्ध सिंधु जल संधि को स्थगित करने के साथ साथ अनेक गुप्त संक्रियाएँ (covert operations) संचालित कर उसे घुटने टेकने के लिए बाध्य कर सकते हैं।

(प्रो. राजेंद्र प्रसाद, एक जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ हैं। प्रो.प्रसाद गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा एवं सामरिक अध्ययन विभाग के हेड रहने के अलावा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय प्रयागराज; एम यू बोधगया के पूर्व कुलपति हैं।)