September 20, 2024
Electoral Bonds data uploaded on Election Commission of India official website

जानिए क्या होती है आचार संहिता, चुनाव आयोग के पास हैं कौन-कौन सी शक्तियां?

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसके निर्वहन के लिए चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत शक्तियां प्रदान की गई हैं।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं। इन राज्यों पर चुनाव सम्पन्न होने व नई सरकार बनने तक आयोग का नियंत्रण होगा।
हाल ही में चुनाव आयोग (Election Commission) ने नंदीग्राम घटना पर एसपी, डीएम को मुख्यमंत्री की सुरक्षा में चूक के लिए सस्पेन्ड कर दिया है। इससे पहले चुनाव आयोग ने आचार संहिता (Election Code of Conduct) लागू होने के बाद वैक्सीन लगवाने के बाद मिलने वाली पर्ची पर लगी नरेंद्र मोदी की फोटो और पेट्रोल पंप पर लगे नरेंद्र मोदी के बैनर हटाने के आदेश दिए थे। अब इस घटना के बाद चुनाव आयोग एक बार फिर सुर्खियों में है।
आपके जेहन में यह सवाल जरूर आता होगा कि आचार संहिता (Model Code of conduct) क्या होती है? चुनाव आयोग (Election Commission of India) के पास क्या-क्या शक्तियां हैं? आज इन सारे सवालों के जवाब यहां ढूंढेंगे।

आचार संहिता क्या होती है?

चुनाव को निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से पूरा करने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम-शर्तें तय की हैं। इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते है। चुनाव की तारीखें घोषित होने के साथ आचार संहिता लागू हो जाती है, जो चुनाव परिणाम घोषित होने तक लागू रहती है। चुनाव में हिस्सा लेने वाले राजनैतिक दल, सरकार और प्रशासन समेत सभी आधिकारिक महकमों से जुड़े सभी लोगों को इन नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी होती है।

सबसे पहले आचार संहिता कब लागू हुई

आचार संहिता देश में पहली बार 1960 के केरल विधानसभा चुनाव में लागू की गई थी। चुनावी आचार संहिता किसी कानून का हिस्सा नहीं है बल्कि ये नियम पहली बार उम्मीदवारों और पार्टियों द्वारा तय किए गए थे।

उसके बाद 1962 और 1967 के आम चुनाव में भी आचार संहिता लागू की गई थी और तब से यह परिपाटी चली आ रही है।

चुनाव आयोग की शक्तियां

चुनाव आयोग के पास बहुत से अधिकार हैं। देश में आम चुनाव, राज्यसभा के चुनाव, विधानसभा और विधान परिषद के चुनावों की तारीखें घोषित करना समेत अन्य कई महत्वपूर्ण कार्य हैं। लेकिन आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसके निर्वहन के लिए चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत शक्तियां प्रदान की गई हैं। जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण शक्तियां इस प्रकार हैं...

•  केंद्र व राज्य सरकारों, प्रत्याशियों एवं प्रशासन द्वारा आचार संहिता का पालन सुनिश्चित कराना
•  चुनाव कार्यक्रम तय करना
•  चुनाव चिन्ह आवंटित करना 
•  जिन विषयों पर संसद में कानून नहीं बने हैं, उन पर आयोग के फैसले ही कानून होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एमएस गिल मामलें में स्पष्ट तौर पर कहा था
•  विवादित बयानों ,जो किसी धर्म ,जाति या क्षेत्र के प्रति वैमनस्यता या द्वेष फैलाते  हों, पर कार्रवाई का अधिकार
•  कोई भी गतिविधि जो चुनावी निष्पक्षता को प्रभावित करे, उस पर जरूरी कार्यवाही करना
•  चुनाव आयोग के कामों में सरकार या प्रशासन किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं कर सकता  
•  चुनावी मामले जो न्यायालय में चल रहे होते हैं, उसपर चुनाव आयोग की राय भी सुनी जाती है
•  चुनाव आयोग की राय राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए भी बाध्यकारी होती है
•  चुनाव आयोग ही मीडिया को मतदान केन्द्रों एवं गणना केन्द्रों में जाने की अनुमति देता है
•  नामांकन पत्र में प्रत्याशियों द्वारा जानकारी की सत्यता जाँचना अथवा गलत पाए जाने पर उचित कार्यवाही करना

भारतीय चुनाव आयोग का इतिहास

भारत चुनाव आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। संविधान के अनुसार चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। प्रारम्भ में, इस आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त होता था। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ दो अन्य निर्वाचन आयुक्त हैं। 16 अक्टूबर, 1989 को पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा प्रचलन में है, जिसमें निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है।

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एवं कार्यकाल

मुख्य चुनाव आयुक्त एवं चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। जिनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है। उनका दर्जा भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है तथा उन्हें उनके समान ही वेतन और अधिकार मिलते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही हटाया जा सकता है।

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