लोकसभा प्रत्याशी कितने रुपये चुनाव में कर सकता है खर्च, क्या पार्टियों की भी है कोई खर्च करने की सीमा?

Lok Sabha Candidate expense: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को कहा कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। उन्हें भाजपा ने चुनाव मैदान में उतरने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि वित्त मंत्री ने इसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा था, “मेरे पास चुनाव लड़ने के लिए इतना पैसा नहीं है। मैं आभारी हूं कि मेरी दलील स्वीकार कर ली गई। मैं चुनाव नहीं लड़ रही हूं।”

जब पूछा गया कि आप वित्त मंत्री है। इसके बाद भी आपके पास लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पैसे की कमी है। इसपर सीतारमण ने कहा, “देश का पैसा मेरा नहीं है। मेरा वेतन, मेरी कमाई, मेरी बचत, ये मेरी हैं।” सीतारमण के बयान के बाद सवाल उठता है कि आखिर चुनाव लड़ने के लिए एक प्रत्याशी को कितने पैसे खर्च करने की जरूरत होती है।

LS सीट के लिए एक प्रत्याशी 95 लाख रुपए से अधिक खर्च नहीं

लोकसभा सीट के लिए एक प्रत्याशी 95 लाख रुपए से अधिक खर्च नहीं कर सकता। अगर लोकसभा सीट का क्षेत्र आकार में छोटा है तो यह सीमा 75 लाख रुपए है। चुनाव के दौरान किए जा रहे खर्च पर चुनाव आयोग द्वारा नजर रखी जाती है। हालांकि किसी पार्टी द्वारा किसी विशेष सीट पर चुनाव के दौरान कुल मिलाकर कितनी राशि खर्च की जा सकती है, इसकी कोई सीमा नहीं है।

अगर किसी सीट पर स्टार प्रचारक द्वारा रैली या कोई और कार्यक्रम किया जाता है तो उसके खर्च को पार्टी के खर्च में जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करते हैं तो उनकी रैली आयोजित करने में होने वाले खर्च को उस लोकसभा सीट के प्रत्याशी के खर्च की सीमा में नहीं जोड़ा जाता है। पार्टियों द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने में मदद की जाती है। इसके लिए पैसे भी दिए जाते हैं।

आम चुनाव 2019 में खर्च हुए 50-60 हजार करोड़ रुपए

2019 में हुए लोकसभा चुनाव को दुनिया का सबसे महंगा चुनाव कहा गया था। CMS (Centre For Media Studies) की स्टडी के अनुसार इसमें पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा कुल मिलाकर 50-60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। 2014 में आम चुनाव में इससे आधी राशि खर्च हुई थी।

2019 के आम चुनाव में खर्च का औसत देखें तो यह एक लोकसभा सीट के लिए 100 करोड़ रुपए से अधिक था। प्रति वोटर देखें तो यह करीब 700 रुपए था। इसमें से सिर्फ 10-12 हजार करोड़ रुपए चुनाव प्रचार के दौरान औपचारिक रूप से खर्च किया गया। यह कुल खर्च का करीब 15-20%। इसका मलतब है कि 80-85% राशि कैश में खर्च किए गए, जिसका कोई हिसाब नहीं है।

मतदाताओं पर 12-15 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए। ये पैसे कैश या अन्य गिफ्ट के रूप में बांटे गए। रिपोर्ट के अनुसार 10-12% मतदाताओं ने स्वीकार किया कि उन्हें कैश मिले हैं। 66% लोगों ने कहा कि उनके आसपास के लोगों को वोट के बदले पैसे मिले हैं। चुनाव के दौरान करीब 30-35% राशि प्रचार पर, 8-10% लॉजिस्टिक्स पर और 5-10% अन्य जरूरत के लिए खर्च किए गए।

CMS की रिपोर्ट के अनुसार देश में 75-85 सीटें ऐसी हैं जहां उम्मीदवारों ने 40 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए। ADR (Association for Democratic Reforms) की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 56 सांसदों ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए स्वीकृत सीमा से 50% से कम चुनाव खर्च घोषित किया है। केवल दो सांसदों ने सीमा लांघी। लोकसभा 2019 के 538 सांसदों की चुनाव व्यय घोषणाओं के आधार पर चुनाव में उनके द्वारा खर्च की गई औसत राशि 50.84 लाख रुपए है। यह तय सीमा का 73% है।