लोकसभा चुनाव 2024: क्या देश में सजेगी मोहब्बत की दुकान? भारत जोड़ो न्याय यात्रा कितना कर सकी न्याय

  • शुरूआती झटकों से उबर मजबूत हुआ भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन
  • हिंदी पट्टी में सपा,आप, झामुमो, राजद से गठबंधन पक्का
  • राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को हिंदी पट्टी के यूपी, बिहार, झारखंड में मिला जोरदार समर्थन
  • यूपी में पुलिस भर्ती परीक्षा पेपर लीक ने राहुल को दी एनर्जी
  • पेपर लीक मामले में प्रतिभागी युवाओं संग राहुल को मिली जीत

डॉ.अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी
: पहले भारत जोड़ो यात्रा फिर भारत जोड़ो न्याय यात्रा के मार्फत कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरीक से सड़क पर उतर कर आमजन और खास तौर से युवाओं, महिलाओं से रू-ब-रू हो रहे हैं, संवाद स्थापित कर रहे हैं उससे एक बात तो तय हो कर सामने आ रही है कि इस बार एनडीए और इंडिया (भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन) के बीच मुकाबला कड़ा हो सकता है।

बात सिर्फ कांग्रेस की नहीं बल्कि इंडिया (INDIA) के घटक दलों के नेता भी अपनी-अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। यही चाहे वो बिहार में तेजस्वी यादव हों, यूपी में अखिलेश यादव, झारखंड में हेमंत सोरेन व चंपई सोरेन अथवा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सभी एक तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पूरी ताकत लगा चुके हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार और जयंत चौधरी के पाला बदलने या ममता बनर्जी के एकला चलो के शुरूआती नारे के बाद से INDIA ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वो दिन-ब-दिन मजबूत होते जा रहे हैं। ये भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के लिए चिंता का विषय हो सकता है।

दक्षिण में INDIA के घटक दल मजबूत और मुस्तैद

उधर, दक्षिण भारत में भी INDIA के घटक दल पूरी मजबूती और मुस्तैदी से जुटे हैं। चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले ही जिस तरह से इंडिया के घटक दलों का तेवर दिखने लगा है उससे यही प्रतीत हो रहा है कि इस बार भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन ‘एनडीए’ के लिए ये चुनाव पिछले दो लोकसभा चुनाव की तरह आसान नहीं होगा।

राहुल की न्याय यात्रा को मिलता समर्थन

लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष की तैयारियों पर नजर डाली जाए तो एक बात तो स्पष्ट है कि विपक्ष के युवा ब्रिगेड ने जिस आक्रामक अंदाज में पारी को बुनना शुरू किया है, ये उनके सकारात्मक अपरोच को दर्शाता है। यहां बात करें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की तो उन्होंने पिछले साल कन्या कुमारी से जम्मू कश्मीर तक की चार हजार किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा की जिसमें उन्हें जबरदस्त समर्थन मिला।

जैसे-जैसे भारत जोड़ो यात्रा का कांरवा आगे बढ़ता गया, लोग जुड़ते गए और अंत में जम्मू कश्मीर पहुंचते-पहुंचते विपक्ष के उस उपनाम ‘पप्पू’ को कहां झटक कर फेंक दिया, पता ही नहीं चला। उन्होंने देश के बड़े वर्ग के बीच अपनी नई पहचान बनाई जिसके मार्फत उन्होंने बुद्धिजीवियों के बीच अपनी पैठ भी बना ली है। इतना ही नहीं इसके जरिए उन्होंने वर्तमान सत्ताधारी दल व गठबंधन के अंदर के लोगों को भी बेचैन सा कर दिया।

फिर इस साल 14 जनवरी 2024 को देश के सबसे अशांत क्षेत्र मणिपुर से भारत जोड़ो न्याय यात्रा आरंभ की तो मणिपुर से असोम पहुंचते-पहुंचते ही इस यात्रा को भी जबरदस्त समर्थन मिलने लगा। यह दीगर है कि इस में असोम के मुख्यमंत्री की भूमिका भी प्रमुख रही। असोम के साथ ही मणिपुर, नागालैंड में भी राहुल को लोगों ने हाथों हाथ लिया। वहीं, यात्रा के बिहार पहुंचने से ठीक पहले इंडिया के सूत्रधार व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए हों, पर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार का बड़े तबके का भी भरपूर समर्थन मिला। ऐसे में बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने से विपक्ष पर कुछ खास असर पड़ा हो ऐसा नहीं कहा जा सकता।

ओडिशा के मुख्यमंत्री अभी तक तटस्थ

उधर, सत्ताधारी दल की सारी कवायद झारखंड में धरी की धरी रह गई। ये दीगर है कि सत्ताधारी दल की एजेंसी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हिमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया, चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने में वक्त लगा। लेकिन परिणाम इंडिया के पक्ष में सकारात्मक ही रहा। अगर ये कहें कि हिमंत सोरेन व चंपई सोरेन ने अपनी बहादुरी दिखाते हुए यह दर्शा दिया कि आदिवासी को कमजोर न समझा जाए। कमोबेश यही हाल ओडिशा में देखने को मिला। हालांकि, वहां के मुख्यमंत्री अभी तक खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश में हैं पर क्या ये तटस्थता अंत तक कायम रहेगी ये कहना अभी जल्दबाजी होगी।

यूपी में राहुल का युवाओं संग जुड़ाव

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने उत्तर प्रदेश में अपना झंडा तो गाड़ ही दिया है। कहा जा सकता है कि इसमें यूपी की परीक्षाओं ने उन्हें पैर जमाने का मौका दे दिया। यूपी पुलिस परीक्षा का पेपर लीक मामला हो या प्रयागराज में लोकसेवा आयोग का मामला हो। यूपी पुलिस परीक्षा पेपर लीक मामले को राहुल ने जिस अंदाज में प्रतिभागी छात्रों के साथ मिल कर उठाया, उनके अनुभवों को सुना और सुनाया। जिस तरह से गरजे, परिणाम रहा कि शुरूआत में उस पेपर लीक मामले से दूर रहने वाली भाजपा को भी उसे स्वीकार करना पड़ा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परीक्षा को न केवल निरस्त किया बल्कि यहां तक कहा कि छह महीने के भीतर दोबारा परीक्षा होगी। इससे आगे बढ़ कर उन्होंने कहा कि पेपर लीक करने वाले बख्शे नहीं जाएंगे। वे न घर के रहेंगे न घाट के। ये कम नहीं।

परीक्षा निरस्त होने की घोषणा के बाद प्रतिभागी छात्रों ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। ये यूपी में युवाओं की, छात्रों की और राहुल की जीत कही जा सकती है।

राहुल का जातीय जनगणना का मुद्दा जगा सकता है 73 प्रतिशत आबादी को

वैसे यूपी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की शुरूआत भले ही बहुत अच्छी नहीं रही, पर फरवरी को जब वो वाराणसी पहुंचे तो यहां उसी यूपी पुलिस भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थियों ने वाराणसी के हृदय स्थल गोदौलिया पर जम कर स्वागत किया। ये परीक्षा का पहला दिन और पहली पारी थी। लेकिन इससे एक दिन पहले जब वो चंदौली और वाराणसी की सीमा पर थे, तब उन्हें हालात दिखे, वो नागवार गुजरा। इसे उन्होंने आक्रामक अंदाज में लिया। लेकिन मणिपुर से लेकर काशी तक वो जो जातीय जनगणना का मुद्दा उछालते रहे, वो कहीं न कहीं पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के दिलों को छूता तो दिखा।

अगर ये पिछड़े, दलित और आदिवासी अगर कहीं मन बनाते हैं तो इंडिया के लिए ये तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। दूसरे अल्पसंख्यक भी अब इंडिया ही नहीं कांग्रेस के पाले में आते नजर आने लगे हैं। यूपी में राहुल की यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ी तो प्रयागराज और प्रतापगढ़ में इस यात्रा का अंदाज बिल्कुल अलग दिखा। राहुल की आक्रामकता बढ़ी और अमेठी पहुंचते पहुंचते तो वो गदर काटने की स्थिति में पहुंच गए।

फार्मूला भी तय

इस बीच यूपी में कांग्रेस-सपा के बीच सीटों के बंटवारे के फार्मूला भी तय हो गया। हालांकि इसमें भी उत्तर प्रदेश पुलिस परीक्षा के पेपर लीक मामले का बड़ा हाथ रहा। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ सीटों के बंटवारे पर अंतिम मुहर लगने के बाद सात साल बाद फिर से राहुल-अखिलेश की दोस्ती परवान चढ़ी। यूपी से यात्रा के राजस्थान के लिए कूच करने से ठीक पहले अखिलेश, राहुल की न्याय यात्रा के सहभागी हो गए। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया कि 2024 में इंडिया ही जीतेगा।

अभी एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र है बाकी

यूपी में भारत जोड़ो न्याय यात्रा पूरी होने के बाद चार दिन का विश्राम फिर मध्य प्रदेश से शुरू होनी है यात्रा। यात्रा को अभी राजस्थान, एमपी से होते मुंबई तक जाना है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यूपी, बिहार, झारखंड के बाद अब एमपी, राजस्थान और महाराष्ट में भी राहुल की न्याय यात्रा को भरपूर समर्थन मिलने वाला है।

उधर, छत्तीसगढ में भी कांग्रेस की स्थिति बेहतर नजर आ रही है। यानी पिछले साल जिन तीन राज्यों एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा था, वहां भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव की दृष्टि से बेहतर दिखाई दे रही है। बात अगर महाराष्ट्र की की जाय तो वहां बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में भले ही टूटन हुई हो। पार्टी सिंबल छिन गया हो पर महाराष्ट्र में असल व नकल शिवसेना का खेल तो चुनाव के वक्त ही दिखेगा। वो वक्त ही बताएगा कि बाला साहेब ठाकरे का असल उत्तराधिकारी कौन है। दूसरी ओर भतीजे के भाजपा से गठजोड़ करने के बाद भी शरद पवार पर खास असर दिख नहीं रहा। अगर बीजेपी के पास अमित शाह जैसे चाणक्य है तो शरद पवार को उनसे कमतर नहीं आंका जा सकता।

आप-कांग्रेस का मिलन, बदल सकता है समीकरण

इधर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भी दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, गोवा के लिए सीटों का तालमेल बिठा कर उन सभी अटकलों को विराम दे दिया है कि आप भी जदयू और रालोद की तरह गठबंधन से अलग हो जाएगी। हालांकि आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पर अभी विभिन्न एजेंसियों का दबाव गहरा रहा है। लेकिन उन्होंने साफ कर दिया है कि वो झामुमो नेता हिमंत सोरेन की तरह डरने वाले नहीं हैं। ऐसे में हिंदी पट्टी में गठबंधन के घटक दलों के साथ आने से इंडिया अपनी ताकत तो अर्जित करने में कामयाब होती दिखने लगी है। जहां तक रालोद के जयंत चौधरी का सवाल है तो वो बेचारे एनडीए से जुड़कर यूपी में ठीक वैसे ही नजर आते दिख रहे जैसे बिहार में जदयू नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।

चुनाव से पहले चौंका सकती हैं मायावती

बसपा सुप्रीमों मायवती ने फिलहाल भले ही अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी हो, लेकिन राजनीतक विश्लेषकों को अब भी भरोसा है कि चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद वो इंडिया से जुड़ सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो कम से कम उत्तर प्रदेश में तो इंडिया को ज्यादा मजबूती मिल सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर मायावती और उनका थिंक टैंक भली भांति ये भी समझ रहा है कि अकेले दम पर चुनाव लड़ना इस बार समझदारी नहीं होगी।

यहां बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी, जिसका परिणाम रहा कि उसे 10 सीटें मिल गईं। ये भी जान लें कि 2014 के चुनाव में बसपा के खाते में शिफर ही रहा था। ऐसे में मायावती के अपने राजनीतिक भविष्य के लिए इंडिया से जुड़ना अपरिहार्य हो सकता है। वैसे भी वो खुद भी ऐसे संकेत पहले ही दे चुकी हैं।


ममता देख रहीं तेल व तेल की धार

उधर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के पश्चिम बंगाल पहुंचने से ठीक पहले राज्य में कांग्रेस-वामदल गठबंधन के साथ सीट शेयर करने से साफ इंकार कर चुकी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भी चुनाव से ऐन पहले साझा विपक्ष के साथ हो लेने के कयास भी लगाए जाने लगे हैं। कहा जा रहा है कि न्याय यात्रा पूरी होने के बाद सोनिया और राहुल गांधी तथा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, ममता बनर्जी को साथ मिल कर चुनाव लड़ने पर राजी कर लेगें। कहा ये भी जा रहा है कि यूपी की तरह बंगाल में भी कांग्रेस बड़ी पार्टी का बड़ा दिल दिखा सकती है। और ये बहुत कुछ निर्भर करेगा खड़गे-राहुल की रणनीति पर।

वर्तमान में विभिन्न राज्यों की राजनीतिक स्थिति

उत्तर प्रदेश

लोकसभा में सर्वाधिक 80 सीटें हैं। इनमें से फिलहाल भाजपा के 64 सांसद हैं। वहीं अमरोहा के सांसद दानिष अली के पार्टी से अलग होने के बाद बसपा के नौ, समाजवादी पार्टी के पांच, अपना दल (एस) के दो और एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। लोकसभा में विभिन्न दलों के सांसदों की स्थिति से फिलहाल भाजपा का अंकगणित बेहतर है। लेकिन आने वाले दिनों में अखिलेश, राहुल, प्रियंका माहौल बदल भी सकते हैं। राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा आम हो चली है कि वरुण गांधी कोई पार्टी भले न ज्वाइन करें पर भाजपा से अलग हो कर निर्दलीय ही चुनाव लड़ें। वैसे भी राहुल गांधी चचेरे भाई वरुण के लिए अमेठी सीट छोड़ने को तैयार हैं। साथ ही अखिलेश से भी वरुण के रिश्ते अच्छे हैं। हालांकि अभी इस मुद्दे पर कुछ कहना जल्दबाजी है। लेकिन ऐसा होने पर भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

महाराष्ट्र

लोकसभा सीटों के हिसाब से उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र हैं जहां 48 सीटें हैं। यहां पिछली बार भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। तब भाजपा को 23 व शिवसेना को 18 सीट मिली थी। यूपीए गठबंधन का हिस्सा रही एनसीपी को चार औप कांग्रेस को एक सीट मिली थी। इसके अलाव एआईएमआईएम को भी एक सीट मिली थी। वर्तमान में यहां एनसीपी और शिवसेना दोनों में फूट पड़ चुकी है। दोनों ही पार्टियों से निकले धड़े अभी भाजपा के साथ हैं लेकिन उद्धव ठाकरे और शरद पवार को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में 2019 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 22 जबकि बीजेपी को 18 सीटें मिली थीं। यहां तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और सीपीएम इंडिया के साथ हैं। हालांकि खुद को इंडिया का हिस्सा बने रहने के दावे के साथ कांग्रेस व सीपीएम से सीटों का बंटवारा न करने का ऐलान कर चुकी हैं ममता बनर्जी। वैसे संदेशखाली घटना के बाद से ममता भी चिंतित हैं, ऐसे में वो एकला चलो के ऐलान पर पुनर्विचार कर कांग्रेस, सीपीएम से गठबंधन कर सीट शेयरिंग पर राजी हो जाती हैं तो इंडिया वहां ज्यादा मजबूत होगी।

बिहार

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। पिछली बार एनडीए के हिस्से 39 सीटें आई थीं। जेडीयू उस वक्त भी एनडीए का हिस्सा था। एनडीए की इन 39 सीटों में 17 पर भाजपा काबिज है। वहीं जेडीयू के 16 और लोजपा के छह तथा कांग्रेस के पास एक सीट है। आरजेडी का खाता भी नहीं खुला था। अबकी राजद, कांग्रेस और सीपीआई का गठबंधन है। पटना के गांधी मैदान में तीन मार्च को होने वाली राजद की रैली जिसमें राहुल भी होंगे पर सभी राजनीतिक विश्लेषकों की नजर है। वो रैली बिहार का भविष्य तय करने वाली साबित हो सकती है। वहीं, भाजपा ने भी सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर छोटे-छोटे दलों को जोड़ा है। लेकिन इंडिया सीट बंटवारे के बाबक सही फॉर्मूला तैयार कर ले तो भाजपा नीत गठबंधन को कड़ी चुनौती का सामना कर पड़ सकता है।

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