Manipur Violence horror: मणिपुर हिंसा में न जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो गईं। घर खाक हो गए तो लाखों सपनें हकीकत बनने के पहले ही आतताइयों की भेंट चढ़ गए। पगलाई भीड़ ने न बेटी पहचाना, न बहू, न बुजुर्गों को मान दिया न ही विरासतों को समझा। निरंकुश शासन की वजह से मणिपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की बुजुर्ग पत्नी भी सुरक्षित न रह सकी। जिनके पति ने गोरों के खिलाफ आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, उनको ही आजाद भारत की एक भीड़ ने जिंदा ही जला दिया।
सेरोउ गांव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चुराचंद सिंह का परिवार रहता
मणिपुर के काकचिंग जिले के सेरोउ गांव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चुराचंद सिंह का परिवार रहता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय चुराचंद सिंह को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सम्मानित कर चुके हैं। उनकी बुजुर्ग पत्नी घर पर परिवार के साथ रहती थी। राजधानी इंफाल से करीब 45 किलोमीटर दूर सेरोउ गांव है। 3 मई से जब मणिपुर जलना शुरू हुआ तो हिंसा की आग सेरोउ गांव तक पहुंची। 28 मई को लोगों की भीड़ गांव में पहुंची। गोलीबारी और हिंसा के बीच लोग घरों को छोड़कर भागने लगे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की बुजुर्ग पत्नी इबेटोम्बी बहुत कम चलती फिरती थीं। उन्होंने परिवार के अन्य सदस्यों को गांव छोड़कर किसी सुरक्षित जगह पर जाने के लिए दबाव बनाया। परिजन से कहा कि पहले खुद को सुरक्षित करो।
…फिर चारो तरफ से आग लगा दी
परिजन बताते हैं कि हर ओर आगजनी हो रही थी, गोलीबारी की जा रही थी। बुजुर्ग इबेटोम्बी के 22 साल के पोते प्रेमकांत ने बताया कि वह लोग एक विधायक के घर पर शरण लिए। सबने सोचा घर में रहने वाले बुजुर्गों पर तो हिंसा करने वाले रहम करेंगे लेकिन वह लोग गलत थे। भीड़ ने उनकी दादी को घर में बंद कर बाहर से लॉक कर दिया, फिर चारो तरफ से आग लगा दी। जबतक कोई बचाने आता तबतक कुछ भी नहीं बचा। दादी जलकर खाक हो चुकी थीं। प्रेमकांत बताते हैं कि दादी को बचाने के लिए जब वह जा रहे थे तो फायरिंग में उनकी बांह और जांघ को गोलियां छूकर निकल गई।
अब हर ओर केवल राख और जली हुई चीजें
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार प्रेमकांत दो महीना बाद गांव लौटे हैं। कभी जहां उनका घर हुआ करता था अब वहां केवल राख, जली हुई लकड़ियां और लोहे की संरचना दिख रही। मलबे में उनकी पारिवारिक संपत्ति खाक हो चुकी है। जले हुए घर के ढांचे के नीचे जली हुई उनकी दादी की हड्डियां बिखरी हैं। प्रेमकांत बताते हैं कि वहीं उनकी दादी का बिस्तर था। यादों के रूप में उनके पास अब सिर्फ एक तस्वीर है जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चुराचांद सिंह को सम्मानित कर रहे हैं।
गांव का बाजार भी भूतहा हो चुका
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो गांव से थोड़ी दूरी पर सेरोउ बाजार किसी भुतहा शहर जैसा दिख रहा है। यहां कारोबार करने वाले और रहने वाले सभी भाग चुके हैं। जो बाजार दो महीना पहले गुलजार रहता था, आज वहां सिर्फ सन्नाटा है। अभी भी इस क्षेत्र में दोनों समुदायों के बीच तनाव है। सुरक्षा बल हाईअलर्ट पर हैं। यहां आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित है। शाम के वक्त गांव में बाहरी लोगों को दूर रहने की सलाह दी जा रही। जिन परिवारों ने इस जातीय संघर्ष में अपने प्रियजनों को खो दिया है, उनकी आंखों के सामने घटी घटनाओं का दर्द और आघात अभी भी उनके मन में जीवित है। पीड़ितों के लिए घर लौटना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। अधिकतर उस दर्द में जी रहे और लौटना नहीं चाह रहे।
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