लोगों ने जेवर गिरवी रखे, दोस्तों ने उधार लिए, बैंक से लोन लेकर फ्लैट तो खरीद लिया, लेकिन वो अभी तक उन्हें नहीं मिला. होमबायर्स का यह दर्द हर मेट्रो शहर में हैं. बिल्डरों में धोखे में फंसे लोग पढ़े-लिखे हैं, लेकिन उसके बाद भी उन्हें अभी तक इंसाफ नहीं मिला.
Home Buyers: रोजी-रोटी और बेहतर भविष्य के अधिकांश लोगों को अपने घर से दूर किसी दूसरे शहर में रहना होता है. इन नए शहर में लोग हजारों सपनों लिए आते हैं. इन सपनों को जीते हैं, कई सपने सच भी होते हैं, लेकिन सपने ऐसे टूटते हैं जिसका दर्द जीवन भर सालता रहता है. ऐसा ही एक दर्द फ्लैट खरीदारों का है. दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे सहित देश के सहित मेट्रो शहर के फ्लैट खरीदारों का दर्द कमोवेश एक ही है.
लोगों ने जेवर गिरवी रखे, दोस्तों ने उधार लिए, बैंक से लोन लेकर फ्लैट तो खरीद लिया, लेकिन वो अभी तक उन्हें नहीं मिला. NDTV पर रविवार 30 मार्च को प्रसारित खास मुहिम में आपने कई शहरों के फ्लैट खरीदारों का दर्द देखा. बेंगलुरु में फ्लैट खरीदने के मामले में धोखे के शिकार हुए लोगों ने क्या कुछ कहा, आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में.
बेंगलुरु में एक ही फ्लैट को 4 बार बेचा गया, बैंकों ने भी दिए लोन
बेंगलुरु की ये कहानी आपको हिला कर रख देगी. एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई बार बेचा गया एक ही फ्लैट! अलग-अलग बैंकों ने उसी फ्लैट पर अलग-अलग लोगों को लोन दे दिया. बिल्डर ने पैसे समेटे, प्रोजेक्ट बंद किया और देश छोड़कर फरार हो गया. पीछे छूट गए वो आम लोग. जो आज भी, हर महीने, उस घर के लिए किस्तें भर रहे हैं जो उन्हें कभी मिल ही नहीं सकता. लोगों के सपनों का आशियाना बन गया है कानूनी जंग का मैदान!

बेंगलुरु के IT सेक्टर में फ्लैट खरीदने वाले एचआर प्रोफेशनल सुधीर नागराज की आंखें भर आईं जब उन्होंने उस फ्लैट को देखा जिसे वो अपने सपनों का घर मान बैठे थे. फ्लैट नंबर B-306 —3 BHK. सुधीर ने ज़ेवर गिरवी रखे, दोस्तों से उधार लिया, और बैंक से 22 लाख का लोन लेकर यह फ्लैट खरीदा. लेकिन रजिस्ट्रेशन के बाद सच्चाई सामने आई — ये फ्लैट पहले ही 3 बार बेचा जा चुका था. सुधीर, इस घर के चौथे ‘कागज़ी’ मालिक निकले.
बिल्डर ने एक ही प्रॉपर्टी कई बार बेची, बैंक और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों ने आंख मूंद कर लोन दिए. अब प्रोजेक्ट ठप है… और बिल्डर गायब. जो लोग लोन चुका पा रहे हैं, वो टूट चुके हैं. और जो नहीं चुका पा रहे — उनके सिर पर अब गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है.
सुधीर नागराज ने बताया कि रजिस्ट्रेशन होने के बाद मुझे पता चला कि मैं इस संपत्ति का चौथा मालिक हूँ. पहले मालिक इस संपत्ति के ज़मीन मालिक (लैंडलॉर्ड) थे, दूसरे मालिक खरीदार रघुवेन्द्र थे, तीसरे मालिक एक और खरीदार मदन थे, और चौथा मालिक मैं खुद हूँ.

इसमें बैंक एजेंट्स और सब-रजिस्ट्रार ऑफिस के लोग भी शामिल हैं. अगर बैंक ठीक से जांच करता, तो उसे पता चल जाता कि प्रॉपर्टी नंबर B-306 पहले ही बेची जा चुकी है — तो फिर बैंक उसी प्रॉपर्टी पर किसी और खरीदार को लोन कैसे दे सकता है?
सुधीर जैसे सैकड़ों लोग अब सरकारी दफ्तरों और बैंक की शाखाओं के चक्कर काट रहे हैं. उस घर के लिए किस्तें भर रहे हैं — जो कभी उनका नहीं था. न घर, न पैसा… सिर्फ दर्द.
बेंगलुरु के IT प्रोफेशनल शैलेश चराटी ने भी अपना दर्द बयां किया. शैलेश ने बताया, “कर्नाटक में एक बड़ी खामी है. जब सेल डीड तैयार होता है, तो लैंड और फ्लैट — दोनों की मिल्कियत स्पष्ट होनी चाहिए.
लेकिन ऐसा नहीं होता. जब अगली बार फ्लैट बेचा जाता है, तो बैंक ठीक से जांच नहीं करते — और लोन दे देते हैं. ये गलत है.”
बिल्डर्स की संस्था CREDAI कहती है — सोच-समझकर निवेश करें. जाने-माने बिल्डर्स से ही फ्लैट खरीदें, ताकि ठगी का शिकार न हों. लेकिन सवाल तो अब भी वही है — एक ही फ्लैट पर बैंक कैसे दे देता है बार-बार लोन?
इस सवाल के जवाब पर चार्टर्ड हाउसिंग के चेयरमैन बालाकृष्णन हेगड़े ने कहा, “बैंक बहुत सी चीज़ें जाँचते हैं. लेकिन सबसे ज़रूरी है इंकम्बेंसी सर्टिफिकेट — ये देखना कि उस संपत्ति पर पहले से कोई हकदार तो नहीं.
सेल डीड रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर्ड होता है — और बैंक की ज़िम्मेदारी है कि वो इसे ध्यान से चेक करें.
अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो ये उनकी सीधी लापरवाही है.”
सवाल उठता है — जब बैंक, रजिस्ट्रार और बिल्डर — तीनों ने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई, तो क्यों भुगते आम आदमी? सपनों का घर कब हक़ीक़त बनेगा, कोई नहीं जानता…
इस शहर में कई ऐसे प्लॉट्स है जो कई बार बेचे गए यानी एक ही प्लॉट पर मालिकाना दावा करने वाले कई लोग है, जाहिर है कि बगैर बैंक और बिल्डर के मिली भगत के यह संभव नहीं हो सकता. ऐसे में जरूरत है कि इन मामलों की विस्तृत और व्यापक जांच हो.
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