प्रो.राजेंद्र प्रसाद
मेरी दृष्टि में , पहलगाम के बैसरन घाटी में आतंकी हिंसा से निर्दोष नागरिकों के हताहत होने के बाद उत्पन्न परिस्थितियों में , भारत को अपनी आंतरिक सामाजिक व राजनीतिक एकजुटता के साथ- साथ बाहरी वैश्विक जनमत का सम्यक राजनीतिक एवं कूटनीतिक समर्थन सुनिश्चित करते हुए, आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान और आतंवादियों के विरुद्ध सधी हुई निरोधात्मक और कठोर सैन्य विकल्प/ कार्यवाही करने की स्वतंत्रता कायम रखने की आवश्यकता है । स्पष्टत: भारत इस मामले में सक्षम और प्रयत्नशील है।
साइबर सुरक्षा पर भी ध्यान देने की आवश्यकता
निश्चित तौर पर, भारत द्वारा उठाए गए आक्रामक आर्थिक और कूटनीतिक उपायों से पाकिस्तान को सदमा पहुँचा है, आगे और कठोर निरोधात्मक परोक्ष या गुप्त और प्रत्यक्ष कार्रवाई( covert and overt operations) समय का तकाजा है। मेरा यह भी सुझाव है कि आतंकवादी घटना को पब्लिसिटी न मिले और भारत की जवाबी कार्य योजना का कार्यवाही से पहले बेजा खुलासा या वाहवाही से बचने के लिए सरकार मीडिया मैनेजमेंट, विशेष रूप से समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया पर संयम के लिए समुचित दिशा-निर्देश जारी करे। साथ ही, सरकार ऐसे उपाय करे जिससे पाकिस्तानी और उनके सहयोगी हैकर्स भारत के सुरक्षा और आर्थिक ठिकानों, प्रतिष्ठानों और संवेदनशील सेवाओं के विरुद्ध साइबर हमले न कर सकें। वर्तमान परिवेश में सूचना और साइबर सुरक्षा अनिवार्य है।
कार्रवाई अवश्यंभावी
भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पुलिस, एन आई ए, सभी सुरक्षा एजेंसियाँ , सुरक्षा बल और तीनों सेनाएं कटिबद्ध हैं। काबिलेगौर है कि भारत के शीर्ष राजनीतिक और सुरक्षा नेतृत्व के निर्णय के अनुरूप, सर्वोच्च सैन्य कमांडरों के पास कार्यवाही को लेकर सैन्य उद्देश्य, लक्ष्य, स्थान, क्षेत्र और समय आदि को तय करने की स्पष्ट स्वतंत्रता है। ऐसे में पाक प्रायोजित आतंकवादी गुटों, समर्थक पाक सेना और उनकी खुफिया एजेंसी आई एस आई को कठोर दंड देने की सटीक निर्णायक पहल अवश्यंभावी है ।
पाकिस्तान कहीं से भी भारत के सामने टिकने की स्थिति में नहीं
दूसरी ओर पहलगाम की बैसरन घाटी में निर्दोष भारतीय नागरिकों के विरुद्ध नृशंस आतंकी हिंसा के बाद , सरहद पर पाकिस्तानी सैन्य-प्रहरी नियंत्रण रेखा (एल ओ सी) पर भारतीय सैनिकों को उकसाने की हरकतें करने में लगे हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर कतिपय पाकिस्तानी राजनेताओं और सैन्य अधिकारियों की बंदरघुड़की और दुष्प्रचार के विपरीत, नाभिकीय भयादोहन (nuclear deterrence) को भंग करने का दुस्साहस करने वाला बड़बोलापन पाक के अस्तित्व (survival) के लिए अकल्पनीय और असह्य जोखिम होगा। इसके पहले ही, भारत के त्रिदिशात्मक ( नभ,थल, जल) परंपरागत सैन्य कार्यवाही से पाकिस्तान की अकल्पनीय तबाही निश्चित है, क्योंकि सैन्य संतुलन और सक्षमता की दृष्टि से पाकिस्तान कहीं नहीं टिकता।
पाकिस्तान के नापाक हरकत पर निगरानी जरूरी
इस बीच, पाक द्वारा रणक्षेत्रीय नाभिकीय हथियारों ( theatre/ tactical nuclear weapons) को भारत के विरुद्ध प्रयोग करने की धमकी पर नजर रखने की आवश्यकता है क्योंकि पाक अपनी नाभिकीय शक्ति संपन्नता और धौंस को भुनाने की कोशिश अवश्य करेगा। ऐसा संकल्प वह वह पहले से ही कर रहा है। दुनिया के कई सामरिक विशेषज्ञों ने इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। ऐसी दशा में, भारत को अपने नाभिकीय विकल्प की पहल और दुश्मन के विरुद्ध अकल्पनीय विनाशक क्षमता का पूरा भान है।
पाकिस्तान आंतरिक तौर पर कई मोर्चे पर लड़ रहा
वर्तमान में, पाकिस्तान आंतरिक राजनीतिक उठापटक, धनाभाव, भय, भूख, टीटीपी चुनौती, पख्तून और बलूच आंदोलन जैसे आंतरिक संकट आदि के चलते बेहद कमजोर स्थिति में है। वह भारत के त्रिदिशात्मक हमले के सामने प्रत्यक्ष रूप से बिना बाहरी सहयोग के एक हफ्ते भी नहीं टिक सकता है। एल ओ सी के पार 42 आतंकवादी अड्डे और पाक-अधिकृत काश्मीर (पीओके) को लेकर भारत की यौद्धिक कार्रवाई पूरी तरह से सटीक और कारगर हो। इस दौर में, चीन और भारत की रणनीतिक समझदारी के लिए कूटनीतिक स्तर ऐसी पहल अवश्य होनी चाहिए जिससे पाक को चीन की तथाकथित हिमालय जैसी दोस्ती का अनुचित लाभ न मिले क्योंकि उइगुर इस्लामी कट्टरवाद से चीन को पहले से ही सबक मिल चुका है।
आतंकवाद सबका दुश्मन
इस स्तर पर, चीन को लेकर रूस का कूटनीतिक सहयोग भारत के लिए विशेष रूप से सकारात्मक और महत्वपूर्ण हो सकता है। साथ ही साथ, लंबे अरसे से आतंकवाद के चिह्नित गढ़ बने पाकिस्तान को अलग थलग करने के लिए, अमेरिका सहित वैश्विक जनमत को अपने पक्ष में रखना भारत के लिए अनिवार्य है। संयोग से, वैश्विक स्तर संयुक्त राष्ट्र और सभ्य समाज सभी आतंकवाद , उसके वित्त पोषण पर रोक और उन्मूलन के पक्षधर हैं, क्योंकि आतंकवाद सबका दुश्मन है। ऐसी दशा में, यदि शांति चाहिए तो आतंकवाद के सबसे बड़े पोषक और संरक्षक पाकिस्तान को दंड मिलना ही चाहिए।
(लेखक रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर, रज्जू भैया स्टेट यूनिवर्सिटी प्रयागराज सहित कई विश्वविद्यालयों के कुलपति रह चुके हैं।)