PM मोदी का ब्रुनेई-सिंगापुर दौरा कितना अहम? एक्ट ईस्ट पॉलिसी से भारत को क्या-क्या मिलेगा​

 भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी अलग-अलग लेवल पर विशाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक राजनयिक नजरिया है. ये पॉलिसी नवंबर 2014 में 12वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में शुरू की गई थी. अभी म्यांमार में एक्ट ईस्ट पॉलिसी, लुक ईस्ट पॉलिसी का एक्सटेंशन है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) मंगलवार दोपहर 2 दिन के दौरे पर ब्रुनेई पहुंचे. ब्रुनेई के शहज़ादे (क्राउन प्रिंस) हाजी अल मुहतदी बिल्लाह ने उसका स्वागत किया. पीएम मोदी का ब्रुनेई दौरा कई मामलों में ऐतिहासिक है. ये किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला ब्रुनेई दौरा है. मोदी ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसन अल-बोल्कैया के इंविटेशन पर यहां आए हैं. दोनों देशों के बीच 2024 में राजनयिक संबधों के 40 साल पूरे हुए हैं. ऐसे में PM मोदी के दौरे को भारत-ब्रुनेई के बीच रणनीतिक संबंधों को और गहराई देने वाला माना जा रहा है. वहीं, पीएम मोदी के ब्रुनेई दौरे को पूरब मिशन से भी जोड़कर देखा जा रहा है.

आइए समझते हैं कि Act East Policy क्या है? इसके लिए पीएम मोदी का ब्रुनेई दौरा इतना अहम क्यों माना जा रहा है? इस दौरे के एजेंडे में क्या-क्या है? भारत और ब्रुनेई के बीच मौजूदा रिश्ते किस तरह के हैं:-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे को Act East Policy का एक्सटेंशन माना जा रहा है. विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि ब्रुनेई भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और एशिया-प्रशांत के लिए विजन के लिए एक अहम भागीदार है. विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, “हम इस साल अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के एक दशक पूरे कर रहे हैं. इसलिए पीएम मोदी का यह दौरा अधिक महत्व रखता है. ब्रुनेई 2012 से 2015 तक आसियान में हमारा देश समन्वयक रहा है. आसियान के साथ हमारे आगे के जुड़ाव में एक अहम भूमिका निभाई है और आज भी ऐसा करना जारी रखता है.”

एक्ट ईस्ट पॉलिसी को समझिए
भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी अलग-अलग लेवल पर विशाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक राजनयिक नजरिया है. ये पॉलिसी नवंबर 2014 में 12वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में शुरू की गई थी. अभी म्यांमार में एक्ट ईस्ट पॉलिसी, लुक ईस्ट पॉलिसी का एक्सटेंशन है. लुक ईस्ट पॉलिसी को 1992 में अधिनियमित किया गया था. लुक ईस्ट के विपरीत भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का मकसद एशिया-प्रशांत में पड़ोसियों के साथ आपसी रणनीतिक, आर्थिक सहयोग और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना है.

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भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में कौन-कौन से देश शामिल?
इस पॉलिसी के तहत भारत ने चीन के हिंद महासागर में बढ़ती समुद्री क्षमता का मुकाबला करने के लिए दक्षिण चीन सागर (South China Sea) और हिंद महासागर में रणनीतिक साझेदारी का निर्माण किया है. संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फ़िलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम) इसमें शामिल हैं.

दक्षिण-पूर्व एशिया में जनसंख्या के हिसाब से सबसे छोटा देश ब्रुनेई
ब्रुनेई, दुनिया के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया में स्थित एक छोटा मुस्लिम देश है, जो तेल समृद्ध भी है.  यह दक्षिण-पूर्व एशिया में जनसंख्या के हिसाब से सबसे छोटा देश भी है. इसकी आबादी करीब 4.5 लाख है. यानी भारत के एक छोटे से क़स्बे से भी कम यहां की आबादी है. इस देश का कुल क्षेत्रफल 5750 वर्ग किलोमीटर के आसपास है. दिल्ली-NCR का क्षेत्रफल इससे कहीं ज्यादा निकलेगा. ब्रुनेई एक दौर में अपने तेल कुओं की बदौलत दुनिया के सबसे संपन्न देशों में शामिल रहा है. इसकी प्रति व्यक्ति आय 35,813 डॉलर सालाना है. यहां की 82% आबादी मुस्लिम है. ईसाई, बौद्ध और अन्य अल्पसंख्यक में आते हैं.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिए ब्रुनेई इतना अहम क्यों?
ब्रुनेई की भौगोलिक स्थिति भी काफी अहम है. यह दक्षिण-पूर्वी एशिया, बोर्नियो द्वीप के उत्तरी तट के साथ, दक्षिण चीन सागर और मलेशिया की सीमा पर स्थित है. दक्षिण चीन सागर के जरिए हिंद और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों के करीब है. लिहाजा भारत के लिए ब्रुनेई अहम हो जाता है. 

दूसरी ओर, ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसनअल बोल्किया भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों के सबसे मजबूत समर्थकों में शामिल रहे हैं. ब्रुनेई सरकार हमेशा से भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ और ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ को सपोर्ट करती रही है. 

इस दौरे के एजेंडे में क्या-क्या है?
ब्रुनेई की अर्थव्यवस्था तेल और गैस के कारोबार पर आधारित है. भारत ब्रुनेई से कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है. हर साल लगभग 500-600 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कच्चा तेल आयात करता रहा है. ऐसे में पीएम मोदी की यात्रा में दोनों देशों के बीच व्यापार और रक्षा सहयोग को मजबूत करने पर विशेष जोर दिया जा सकता है. दोनों देश रक्षा क्षेत्र में सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए एक ज्वॉइंट वर्किंग ग्रुप बना सकते हैं. पीएम मोदी की इस यात्रा में ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग का विस्तार करने पर जोर दिए जाने की उम्मीद है. 

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भारत और ब्रुनेई के बीच कैसे हैं रिश्ते?
विदेश मंत्रालय के ऑफिशियल पेज पर दी गई जानकारी के मुताबिक, भारत और ब्रुनेई के बीच राजनयिक संबंध मई 1984 में स्थापित किए गए थे. मई 1993 में ब्रुनेई दारुस्सलाम में भारतीय मिशन स्थापित किया गया था. ब्रुनेई दारुस्सलम का उच्चायोग भारत में अगस्त 1992 में स्थापित किया गया था. दोनों देश संयुक्त राष्ट्र, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, राष्ट्रमंडल, आसियान जैसे अहम अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के सदस्य हैं. ब्रुनेई में करीब 14 हजार 500 भारतीय रहते हैं. आधे से ज्यादा भारतीय प्रवासी अर्ध या अकुशल श्रमिक हैं.

सिंगापुर के साथ भारत के 60 साल के कूटनीतिक रिश्ते
ब्रुनेई दौरा पूरा करने के बाद प्रधानमंत्री मंत्री मोदी 4 और 5 सितंबर को सिंगापुर का दौरा करेंगे. सिंगापुर के साथ भारत के 60 साल के कूटनीतिक रिश्ते हैं. सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग के निमंत्रण पर मोदी वहां जा रहे हैं. इस दौरान वे सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे. करीब 6 साल बाद मोदी का सिंगापुर दौरा हो रहा है. हमारी इकोनॉमी में सिंगापुर का अच्छा-खासा निवेश है. ऐसे में यहां आर्थिक मसलों को लेकर डील हो सकती है. खास तौर पर सेमीकंडक्टर को लेकर कोई अहम समझौता किया जा सकता है. सिंगापुर में बिजनेस लीडर्स से पीएम मोदी की बैठक होगी.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
पीएम मोदी के ब्रुनेई और सिंगापुर दौरे को लेकर डेप्लोमेटिक एक्सपर्ट ब्रह्म चेलानी कहते हैं, “साउथ एशिया में पहले से ही काफी राजनीतिक अस्थिरता और राजनीतिक उथल-पुथल है. भारत के आसपास बांग्लादेश में काफी उथल-पुथल मची है. पाकिस्तान की हालत से काफी समय से खराब है. म्यांमार में तो लंबे समय से लड़ाई चल रही है. श्रीलंका की बात करें, तो वहां राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता का माहौल है. नेपाल में भी अस्थिरता देखी गई है. इस समय लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर काम करना भारत के लिए बहुत जरूरी है.”

ब्रह्म चेलानी कहते हैं, “क्योंकि एशियाई देशों में हो रही अस्थिरता के बीच भारत को उसके पार जाकर सोचने की दरकार है. इसका मतलब उन देशों के साथ रिश्तों को मजबूत बनाना है, जिनके साथ भारत के पहले से रिश्ते अच्छे रहे हैं. ये सारे देश भारत के पूरब में हैं. म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया और ब्रुनेई. ब्रुनेई की बात करें, तो ये एक छोटा देश है, लेकिन ये तेल संपन्न है.”

चेलानी आगे बताते हैं, “सिंगापुर एक सिटी स्टेट है. भारत की अर्थव्यवस्था में सिंगापुर एक बहुत बड़ा इंवेस्टर है. भारत के स्टॉक मार्केट में जो फाइनेंशियल इक्विटी फ्लो है, वो सिंगापुर और मॉरीशस के जरिए ज्यादा आता है.”

डेप्लोमेटिक एक्सपर्ट ब्रह्म चेलानी बताते हैं, “ऐसे में अगर भारत को एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर काम करना है, तो पूरब में जितने भी देश हैं, उन सभी के साथ भारत को रिश्ते मजबूत करने होंगे.”

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