Shani Pradosh Vrat 2024: शनि प्रदोष व्रत पर शाम को इस विधि से करें भोलेनाथ की पूजा, पूरी होगी मनोकामना​

 Shiv ji puja vidhi : आपको बता दें कि प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय की जाती है. यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं शनि प्रदोष मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र.

Shani pradosh vrat 2024 : आज शनि प्रदोष व्रत है. शनिवार पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं. शनि प्रदोष व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है जिसमें भगवान शिव और शनिदेव दोनों की पूजा अर्चना की जाती है. इस बार प्रदोष व्रत की पूजा परिघ योग में बन रही है. आपको बता दें कि प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय की जाती है. यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं शनि प्रदोष मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र.

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शनि प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त : Shani Pradosh Vrat Puja Time

भाद्रपद माह की इस तिथि का शुभारंभ 31 अगस्त को रात 2 बजकर 25 मिनट से होगा, जो अगले दिन 1 सितंबर की रात 3 बजकर 40 मिनट पर समाप्त होगा. 

पूजन का समय: Pujan ka samay

पूजन के लिए भक्तों को शाम 6 बजकर 43 मिनट से लेकर रात के 08 बजकर 59 मिनट तक का समय मिलेगा.

शनि प्रदोष व्रत का पारण: Shani Pradosh fast

1 सितंबर को सुबह 05:59 बजे के बाद

शनि प्रदोष व्रत विधि: Shani Pradosh Vrat Vidhi

शनि प्रदोष व्रत के दिन सुबह निवृत्त होकर व्रत और शिव पूजा का संकल्प करिए. फिर आप पूरा दिन फलाहार पर रहें.इसके बाद आप मंदिर में या घर पर पूजा करें.पूजा की शुरूआत गंगाजल अभिषेक से करें.इसके बाद शिवलिंग पर अक्षत, बेलपत्र, चंदन, फूल, भांग, धतूरा, नैवेद्य, शहद, धूप और दीप अर्पित करें. साथ ही ओम नम: शिवाय का उच्चारण भी करें.आप शिव चालीसा का भी पाठ करें और शनि प्रदोष व्रत कथा भी सुनें.समापन आप कपूर या फिर घी के दीपक से शिव जी की आरती करिए.अंत में शिव जी से संतान प्राप्ति के लिए आशीर्वाद लीजिए.

भगवान शिव की आरती

जय शिव ओंकारा, स्वामी ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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