November 21, 2024
Supreme Court

Supreme Court on Manipur Violence: सरकार को कड़ी फटकार, मांगे 6 सवालों के जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्भया जैसा सिर्फ एक मामला नहीं है। यह एक अलहदा तरह की घटना है। यह एक सिस्टमेटिक हिंसा है।

Supreme Court on Manipur Violence: मणिपुर हिंसा में महिलाओं पर हुए अत्याचार के मामले में सरकार को सुप्रीम कोर्ट के कड़े सवालों का सामना करना पड़ा। दो महिलाओं को न्यूड परेड कराए जाने और उनके साथ अमानवीय तरीके से यौन शोषण करने के वायरल वीडियो पर स्वत: संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा। सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाने के साथ मंगलवार को कोर्ट में छह सवालों के जवाब मांगा।

मणिपुर की घटना को दूसरी जगह से तुलना कर उचित नहीं ठहराया जा सकता

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से तर्क दे रहीं वकील बांसुरी स्वराज ने मणिपुर में महिलाओं के न्यूड परेड और यौन अत्याचार की तुलना करते हुए बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के बारे में बताया। इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मणिपुर में जो हुआ उसे यह कहकर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि यह और कहीं और हुआ।

इस तथ्य में कोई दो राय नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध सभी हिस्सों में हो रहे हैं। लेकिन इस तरह उत्तर देकर हम मणिपुर की घटना को इग्नोर नहीं कर सकते। मणिपुर जैसे मामले देश के एक हिस्से में जो हो रहा है, उसे आप इस आधार पर माफ नहीं कर सकते कि इसी तरह के अपराध वहां भी हो रहे हैं। सवाल यह है कि हम मणिपुर से कैसे निपटें? इसका उल्लेख करें…क्या आप कह रहे हैं कि भारत की सभी बेटियों की रक्षा करें या किसी की भी रक्षा न करें?

पीड़िताओं के वकील ने कहा-सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में कराए जांच

दोनों महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच का अनुरोध करते हुए कहा कि सरकार के पास यह बताने के लिए डेटा नहीं है कि ऐसे कितने मामले दर्ज किए गए हैं। यह मामलों की स्थिति को दर्शाता है। इस केंद्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा करता है तो उनको कोई आपत्ति नहीं है।

केंद्र और राज्य सरकार से पूछे 6 सवाल, 24 घंटे में दें जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से दर्ज की गई लगभग 6,000 एफआईआर में से कितनी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए थीं। केंद्र ने कहा कि उसके पास ऐसे मामलों का ब्योरा नहीं है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और मणिपुर सरकार को छह बिंदुओं पर जानकारी के साथ कल लौटने का निर्देश दिया।

  1. दर्ज किए गए केसों का अलग-अलग पूर्ण विवरण
  2. कितनी जीरो एफआईआर दर्ज किए गए?
  3. जीरो एफआईआर को अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस थाने में कितने ट्रांसफर किए गए?
  4. अब तक कितने गिरफ्तार?
  5. गिरफ्तार अभियुक्तों को कानूनी सहायता की स्थिति?
  6. अब तक कितने धारा 164 के बयान (या निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने बयान) दर्ज किए गए?

केवल मणिपुर पुलिस के हवाले नहीं छोड़ सकते

मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए अपराधों को सुप्रीम कोर्ट ने भयानक बताते हुए कहा कि अब इन मामलों को केवल मणिपुर पुलिस के हवाले या उसे संभालने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। अब समय इसका समाप्त हो चुका है। राज्य को उपचार की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्भया जैसा सिर्फ एक मामला नहीं है। यह एक अलहदा तरह की घटना है। यह एक सिस्टमेटिक हिंसा है। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि पुलिस हिंसा को अंजाम देने वाले दोषियों के साथ सहयोग कर रही थी। महिलाओं ने पुलिस से सुरक्षा मांगी थी लेकिन पुलिस उनको भीड़ में लेकर गई।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा-14 दिनों तक क्या कर रही थी सरकार

महिलाओं के न्यूड परेड कराए जाने वाला वीडियो 4 मई का है। एफआईआर 18 मई को दर्ज किया गया था। एफआईआर दर्ज होने के दो महीने बाद 19 जुलाई को वीडियो वायरल होने पर पूरा देश आक्रोशित हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को स्वत: संज्ञान में लिया और सरकार को 28 जुलाई तक कार्रवाई की मोहलत दी। सोमवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि वे 14 दिनों से क्या कर रहे हैं। जांच से लोगों के बीच में आत्मविश्वास होना चाहिए।

महिला जजों और सिविल सोसाइटी की महिलाओं की कमेटी गठित होगी

उधर, इस मामले में दोनों पीड़ित महिलाओं ने केस को सीबीआई को ट्रांसफर किए जाने पर आपत्ति जताई। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सिविल सोसाइटी के महिलाओं की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की मांग करते हुए कहा कि बचे हुए लोग सदमे में हैं और आतंकित हैं। हमें यकीन नहीं है कि बचे हुए लोग सीबीआई टीम को सच बताएंगे या नहीं। उन्हें सच बताने का आत्मविश्वास होना चाहिए। कमेटी को बनाया जाए ताकि ये बचे लोग आगे आ सकें और सच्चाई साझा कर सकें।

इस पर कोर्ट ने कहा कि सिर्फ सीबीआई या एसआईटी को सौंपना पर्याप्त नहीं होगा। हमें ऐसी स्थिति की कल्पना कर सकते हैं जहां एक 19 वर्षीय महिला जिसने अपना परिवार खो दिया है, एक राहत शिविर में है। हम उसे मजिस्ट्रेट के पास नहीं भेज सकते। हमें यह सुनिश्चित करना होगा न्याय की प्रक्रिया उनके दरवाजे तक जाती है। हम महिला न्यायाधीशों और नागरिक समाज के सदस्यों की एक समिति गठित करेंगे। यह लोग पीड़ितों तक पहुंचेंगे। उनको न्याय दिलाने में सहायता करेंगे।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कई तरह की जटिलताएं थीं…सीबीआई जांच होनी चाहिए

अटॉर्नी-जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि राजनीतिक और गैर-राजनीतिक दोनों तरह से बहुत सारी जटिलताएं थीं। उन्होंने सीबीआई जाँच का प्रस्ताव रखा। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि वीडियो एकमात्र घटना नहीं है। उन्होंने कहा कि इन तीन महिलाओं के साथ जो हुआ वह कोई अलग घटना नहीं है। पूर्वोत्तर राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए एक व्यापक तंत्र की आवश्यकता है।

दोनों महिलाओं ने केंद्र और मणिपुर सरकार के खिलाफ याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने और निष्पक्ष जांच की गुहार लगाई है। पीड़ितों ने अनुरोध किया है कि उनकी पहचान सुरक्षित रखी जाए। अदालती दस्तावेजों में दोनों महिलाओं को “एक्स” और “वाई” कहा गया है। उन्होंने एक महानिरीक्षक-रैंक के पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेष जांच दल (एसआईटी) के नेतृत्व में जांच और मुकदमे को राज्य के बाहर स्थानांतरित करने की मांग की है। महिलाओं ने कहा कि उन्हें राज्य पुलिस पर कोई भरोसा नहीं है। महिलाओं ने सुरक्षा और निकटतम क्षेत्र मजिस्ट्रेट द्वारा अपना बयान दर्ज करने में सक्षम बनाने के आदेश भी मांगे हैं। यह ऐसे समय में आया है जब केंद्र पहले ही मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर चुका है।

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