एनडीटीवी वर्ल्ड समिट (NDTV World Summit) में दिग्गज सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान (Ustad Amjad Ali Khan), उनके बेटे अयान अली खान बंगश और अमान अली खान बंगश ने शानदार प्रस्तुतियां दीं. उनके साथ उस्ताद के पोते अबीर और जोहान ने भी मंच साझा किया. यानी सरोद के उस्ताद की तीन पीढ़ियों ने एक साथ संगीत की इस महफिल में रस वर्षा की. इस मौके पर एनडीटीवी ने इस संगीत को समर्पित परिवार से गुफ्तगू भी की.
एनडीटीवी वर्ल्ड समिट (NDTV World Summit) में दिग्गज सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान (Ustad Amjad Ali Khan), उनके बेटे अयान अली खान बंगश और अमान अली खान बंगश ने शानदार प्रस्तुतियां दीं. उनके साथ उस्ताद के पोते अबीर और जोहान ने भी मंच साझा किया. यानी सरोद के उस्ताद की तीन पीढ़ियों ने एक साथ संगीत की इस महफिल में रस वर्षा की. इस मौके पर एनडीटीवी ने इस संगीत को समर्पित परिवार से गुफ्तगू भी की. उन्होंने कहा कि, संगीत दूरियां मिटाता है और करुणा लाता है. उस्ताद ने कहा कि संगीत की कोई सीमा नहीं है और कोई धर्म नहीं है. ऐसे समय में जहां दुनिया संघर्ष में फंसी हुई है, संगीत एक राहत लाता है.
उस्ताद अमजद अली खान ने कहा कि, हम ईश्वर के बहुत आभारी हैं कि उसने हमारे परिवार को संगीत का अनमोल उपहार दिया है. उन्होंने कहा कि, आप देखें, शास्त्रीय संगीत पूरी दुनिया में है. सबसे प्राचीन संगीत पश्चिमी दुनिया में है. वे अभी भी बीथोवेन, मोजार्ट, रूस के महान संगीतकार चाइकोवस्की को सुनते हैं. इसलिए शास्त्रीय संगीत हमेशा तब तक रहेगा जब तक हमारे पास सूर्य और चंद्रमा है. दुनिया में संगीत के सात नोट (सुर) हैं, सा रे ग म प ध नी… और पश्चिमी जगत में वे इसे कहते हैं, डो रे मी फा सो ला सी… इन सुरों ने पूरी दुनिया को जोड़ा है. संगीत ने दुनिया को जोड़ा है. दुर्भाग्य से भाषा बाधाएं पैदा करती हैं.
संगीत एक अनमोल उपहार
विश्व विख्यात सरोद वादक ने कहा कि, संगीत किसी धर्म से नहीं जुड़ा है, जैसे हवा, फूल, पानी, आग, खुशबू… इसलिए यह एक अनमोल उपहार है और दुनिया के आस्वाद और समस्याओं को देखते हुए मैंने फूलों की भूमिका, संगीत की भूमिका से बहुत कुछ सीखा है. मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं दुनिया के हर धर्म से जुड़ा हूं. मैं भारत के हर धर्म से जुड़ा हूं.
दुनिया में चल रहे युद्धों को लेकर उस्ताद अमजद अली खान ने कहा कि, ”हम अभी भी लड़ रहे हैं. हम अभी भी 2000 साल पहले की तरह एक दूसरे को मारने की कोशिश कर रहे हैं. तो शिक्षा का क्या योगदान है? दुर्भाग्य से शिक्षा मनुष्य में करुणा और दया पैदा नहीं कर सकी. हम एक-दूसरे को मारने के बारे में कैसे सोच सकते हैं? इसलिए मैं बहुत, बहुत, बहुत दुखी हूं और हर समय भगवान से प्रार्थना करता हूं कि रूस, यूक्रेन और इजरायल, फिलिस्तीन के बीच शांति हो. हम बहुत दुखी हैं, हम उन लोगों के लिए बहुत दुखी हैं जो इन युद्धों में मारे गए हैं.”
”महान उस्तादों का अनुसरण करने की कोशिश”
खान परिवार की सरोद वादन की शैली के बारे में पूछे जाने पर उस्ताद अमजद अली खान के बड़े बेटे अमान अली बंगश ने कहा कि, ”मुझे लगता है कि आप जानते हैं, किसी को अपनी शैली के बारे में पता नहीं होना चाहिए. ईमानदारी से कहूं तो, मैं और मेरा भाई ऐसे ही हैं. हम अपने गुरु, शिक्षक और अन्य सभी महान उस्तादों का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं जो इस दुनिया में हमेशा से हमारे साथ रहे हैं. हमारी पीढ़ी में स्कूल और कॉलेज के हमारे बहुत सारे दोस्त थे. मुझे कभी नहीं जानते थे, इसलिए हम क्लासिकल प्लेयर्स के अलावा पूरे इलेक्ट्रॉनिक स्पेस में जाना चाहते थे. इसलिए कहीं न कहीं, मुझे लगता है, हमने इसका केवल 10 प्रतिशत ही हासिल किया है. हम बहुत सारा कॉर्पोरेट संगीत कर रहे हैं. हम बहुत सारे एलबम बना रहे हैं. हमें बहुत सारा काम करना है.”
उस्ताद अमजद अली के छोटे बेटे अयान अली बंगश ने कहा कि, ”खासकर जब आप संगीत के बारे में बात करते हैं, तो आप एक छात्र हैं. इस प्लानेट के अंतिम वर्ष में आप लगातार सीख रहे हैं. यह जीवन यात्रा आपको विकसित कर रही है. यह आपकी रचनात्मकता और आपके संगीत के लिए भी कुछ कर रही है. हम सभी एक सच्चे अर्थ में जुड़े हुए हैं. और आज आप जानते हैं हीलिंग का उपयोग कई तरह की बीमारियों या आध्यात्मिकता के लिए किया जाता है, जो हमेशा हमारे संगीत का एक हिस्सा होती है. तो आप जानते हैं, यह सब वाइब्रेशन की भाषा के बारे में है. हम वाइब्स के बारे में बात करते हैं. मैं सोचता हूं कि यही बड़ा संदेश और बड़ी तस्वीर है.”
उस्ताद अमजद अली ने 12 साल की उम्र में दी थी पहली प्रस्तुति
नौ अक्टूबर 1945 को ग्वालियर में जन्में उस्ताद अमजद अली संगीत के माहौल में पले बढ़े. उनका नाता ग्वालियर के ‘सेनिया बंगश’ घराने से है. उनके पिता उस्ताद हाफिज अली खान ग्वालियर राज दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे. जब उनकी उम्र 12 साल थी, तो उन्होंने पहली बार एकल वादक के रूप में पहली प्रस्तुति दी थी. एक छोटे से बच्चे की सरोद को लेकर समझ देखकर कार्यक्रम में मौजूद सभी लोग हैरान रह गए थे.
अमजद अली खान की उम्र जब 18 साल हुई तो उन्होंने पहली बार अमेरिका की यात्रा की थी. इस दौरान उन्होंने सरोद-वादन किया. इस कार्यक्रम में कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज ने भी परफॉर्म किया था. यहीं नहीं, उन्होंने कई रागों को भी तैयार किया. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे दूसरी जगह की धुनों को भी अपने संगीत में बहुत खूबसूरती के साथ मिला लेते हैं. अमजद अली खान ने ‘हरिप्रिया’, ‘सुहाग भैरव’, ‘विभावकारी चंद्रध्वनि’, ‘मंदसमीर’ समेत कई नए राग ईजाद किए.
दुनिया भर में किए शो, कई पुरस्कारों से नवाजे गए
उस्ताद ने दुनियाभर की फेमस जगहों पर शो किए, जिनमें रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंस, फ्रैंकफर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस शामिल है.
उस्ताद अमजद अली खान को शास्त्रीय संगीत में योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया. उन्हें साल 1975 में पद्म श्री, 1991 में पद्म भूषण और 2001 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया. इसके अलावा उन्हें यूनेस्को पुरस्कार, कला रत्न पुरस्कार से भी नवाजा गया.
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