Women Reservation Bill: देश की हर तीसरी सीट पर मिलेगा आधी आबादी को प्रतिनिधित्व, जानिए कब से प्रभावी होगा कानून?

Women Reservation Bill: 27 साल से प्रस्तावित महिला आरक्षण विधेयक तमाम गतिरोध के बाद अब कानून बनने की कगार में है। नई संसद भवन में देश की आधी आबादी को जनप्रतिनिधित्व में आरक्षण मिलने जा रहा है। संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत कोटा आवंटित होगा। हालांकि, अगले साल होने वाले लोकसभा आम चुनाव में महिलाओं का यह कोटा नहीं लागू होगा। माना जा रहा है कि 2029 से सीटों का आरक्षण लागू हो जाएगा। महिला आरक्षण कानून बनने के बाद सीटों के निर्धारण के लिए सर्वे होगा।

कानून बनने के बाद होगा परिसीमन

बिल के कानून बनने के बाद पहले परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के बाद ही कोटा लागू किया जाएगा। दरअसल, अगली जनगणना के बाद ही निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया जाना है। जनगणना 2027 में प्रस्तावित है। जनगणना 2021 में होना था लेकिन कोरोना की वजह से इसे टाल दिया गया था।

महिला आरक्षण बिल 15 साल तक रहेगा

यह बिल कानून बनने के बाद 15 साल तक लागू रहेगा लेकिन इसकी अवधि बढ़ाई जा सकती है। हर चुनाव के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को प्रत्येक बार रोटेट किया जाएगा।

राज्यसभा और विधान परिषदों में लागू नहीं

छह पन्नों के विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी और सीधे चुनाव से भरी जाएंगी। साथ ही, कोटा राज्यसभा या राज्य विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। कोटा के भीतर एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए होंगी।

ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं

विधेयक में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए आरक्षण शामिल नहीं है। मोदी कैबिनेट द्वारा मंजूर विधायिका के लिए ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं है। दरअसल, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल सहित कई पार्टियों ने महिला कोटा बिल का विरोध सिर्फ इसलिए किया था क्योंकि महिलाओं को आरक्षण में ओबीसी आरक्षण का प्रावधान नहीं था। यह विधेयक 2010 में तैयार किए गए महिला आरक्षण विधेयक के समान है, जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। नए संस्करण में एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए कोटा लाने के लिए केवल दो संशोधन हटा दिए गए हैं।

वर्तमान में, भारत में संसद और विधानमंडलों में महिलाओं की संख्या केवल 14 प्रतिशत है, जो विश्व औसत से बहुत कम है।

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