Homage to Munawwar Rana: मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राना (Munawwar Rana) अब हमारे बीच नही हैं। रविवार को दिल का दौरा पड़ने से 71 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उन्होंने लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांसें लीं थीं। वह पिछले कई महीनों से लंबी बीमारी से जूझ रहे थे। साहित्य जगत मशहूर शायर के निधन से शोक में है। मंगलवार को मधुबन वाटिका बीएचयू में दिवंगत शायर मुनव्वर राना के लिए श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई।
मुनव्वर साहब नमन करने के लिए साझा संस्कृति मंच और मधुबन गोष्ठी के संयुक्त श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। सभा में मौजूद छात्रों, बुद्धिजीवियों और सिविल सोसाइटी के लोगों ने उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया।
सभा में उर्दू शोधकर्ता ने कहा कि रिवायती मुशायरों का बादशाह शायर हमारे बीच से चला गया । 26 नवम्बर 1952 को रायबरेली में पैदा हुए,तो सारी ज़िन्दगी रायबरेली का कलमा पढ़ते रहे । कलकत्ता में अब्बा के साथ ट्रक के पहियों संग ज़िन्दगी शुरू की और धीरे धीरे अपना ख़ुद का ट्रांसपोर्ट खड़ा कर दिया । एक शायर दिल इंसान एक कामयाब बिज़नेसमैन बन गया । ट्रक के पहिये जितना चलते,उससे ज़्यादा मुनव्वर साहब की किताबें चलती । बाज़ार में उनकी धूम थीं तो मुशायरों में उनका जलवा,ज़िन्दगी पूरी तरह मेहरबान थी इस मर्म छूकर शेर कहने वाले शख्स पर।
किसान आंदोलन पर खूब चली कलम
दरअसल, शायर मुनव्वर राणा की कलम हमेशा हुक्मरानों को परेशान करती, वह बेखौफ होकर लिखते और सुनाते। किसान आन्दोलन के समय शायर के अंदर बैठे सजग हिन्दोस्तानी ने लिखा, “संसद को गिराकर खेत बना दो, इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी। अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो। “
वक्ताओं ने कहा कि कई दफा लेखकों की कलम ने सत्ता की कमर तोड़ी है। मुंशी प्रेमचंद ,दिनकर, पाश धूमिल और भी बहुत बड़े लेखक हुए है जिनकी कलम से क्रांति की मशाल जली। इस शेर को इसी धारा के अंतर्गत देखा पढा जाना चाहिए। मुनव्वर भी कभी मायूस नही करते,जो दिल मे आया कह डाला,उसका असर जब होगा, तब होगा। मुनव्वर राना का उर्दू अदब में बड़ा भारी काम रहा। ‘ माँ ‘ पर लिखते समय उनकी कलम में माँ सरस्वती स्वयं बैठ जाती थीं शायद। मुशायरों के मंच पर घर, भाई, गांव और माँ पर जब वो शेर कहना शुरू करते थे उनमें किसी पीर फ़क़ीर की दीवानगी और बन्दगी दिखती थी।
मुनव्वर राणा की मशहूर शायरी
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता , मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है।
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है, तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना।
श्रद्धांजलि सभा में मौजूद रहे ये लोग
श्रद्धांजलि सभा में मुख्य रूप से रोशन, सोनाली, राणा रोहित, नीरज, धनंजय त्रिपाठी, विवेक, शाश्वत, इन्दु, जागृति राही, साक्षी, प्रज्ञा, वंदना, समर, शांतनु, आनंद, अभिनव,संगम, अर्पित समेत दर्जनों साहित्य प्रेमी मौजूद आदि मौजूद रहे।