प्रयागराज. उत्तराखंड में सात साल बाद फिर से आये जल प्रलय पर गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने सरकार को सुझाव दिया है कि प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए प्रकृति का दोहन तत्काल बंद करा देना चाहिये। उन्होंने कहा है कि पहाड़ों पर स्थित सभी बांधों को खोलकर गंगा को अब अविलंब अवमुक्त कर देना ही मानव कल्याण के लिये हितकर है।
जगद्गुरु शंकराचार्य ने सोमवार को यहां कहा कि वर्ष 2013 में पवित्र केदारनाथ में जो जल प्रलय आया था, वह प्रकृति की बड़ी चेतावनी थी। उस जल प्रलय में हजारों लोग मारे गये, तमाम लापता हो गये और आद्य शंकराचार्य भगवान की समाधि भी जल प्रवाह में बह गयी थी, फिर भी हम सजग नहीं हुये। विकास के नाम पर प्रकृति के दोहन में अभी भी बेरहमी से लगे हैं, वृक्षों का काटना जारी है और नदियों के प्रवाह को रोककर बड़े-बड़े बांधों के निर्माण में अनवरत लगे हुए हैं।
शंकराचार्य देवतीर्थ का सुझाव है कि विकास के लिए हमें अन्य रास्ता तलाशना होगा। सरकारों को इसके लिये तत्काल ठोस कार्य योजना तैयार करनी चाहिये। अन्यथा टेहरी जैसे बड़े डैम यदि इन आपदाओं से प्रभावित हुए तो स्थिति बड़ी ही भयावह हो सकती है।
देवतीर्थ ने कहा कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हिमालय खंड के एक-एक क्षेत्र में देवों का वास है। इन्हें नष्ट करके विकास की प्रक्रिया जारी रही तो विनाश सुनिश्चित है। ऐसे में हमें प्रकृति द्वारा दी जा रही बार-बार की चेतावनी को गंभीरता से लेना चाहिये और अभी तक किये गये प्रकृति के दोहन पर प्रायश्चित भी करना चाहिये।
गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ से पहाड़ी क्षेत्र में बड़ी तबाही हुई है। इस आपदा में तमाम जानें चली गयीं। करीब दो सौ लोग लापता हो हैं। कई बड़ी परियोजनायें नष्ट हो गई हैं।
जगद्गुरु शंकराचार्य देवतीर्थ इस समय प्रयागराज के माघ मेले में संगम तट पर प्रवास कर रहे हैं। प्रकृति के कोप से वह बहुत ही व्यथित हैं। इससे निजात पाने के लिए माघ मेला स्थित अपने शिविर में उन्होंने कल शाम से 24 घंटे का विशेष अनुष्ठान भी किया। कोरोना महामारी को भी वह प्रकृति का ही प्रकोप मानते हैं। इसके लिये भी उन्होंने मथुरा के गोवर्धन स्थित शंकराचार्य आश्रम में पिछले कई महीनों से वैदिक अनुष्ठान और यज्ञ का लगातार आयोजन करवा रहे हैं।