UP Police Chief: यूपी सरकार को एक अदद डीजीपी नहीं मिल रहा है। प्रदेश में भारी भरकम सीनियर आईपीएस अफसरों की फौज होने के बावजूद एक काबिल पुलिस अफसर नहीं मिल रहा जिसे खाकी धारियों के राज्य का मुखिया बनाया जाए। प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी के भरोसे काम चलाया जा रहा है। हालांकि, कार्यवाहक डीजीपी का मामला अब यूपी की योगी सरकार की गले की फांस बनता जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का केस
यूपी में पूर्णकालिक पुलिस महानिदेशक को क्यों नियुक्त नहीं किया जा रहा है, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट सोमवार 7 अगस्त को इस मामले की सुनवाई करेगा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं, मामले की सुनवाई करेगी। बुलंदशहर के रहने वाले याचिकाकर्ता कृष्णकुमार ने रिट दायर की है। यूपी के चीफ सेक्रेटरी दुर्गाशंकर मिश्रा और प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद को प्रतिवादी बनाया गया है। कृष्ण कुमार चंद्रास्वामी के निजी सचिव रह चुके हैं।
15 महीने से यूपी पुलिस को नहीं मिला पूर्णकालिक DGP
यूपी पुलिस को पूर्णकालिक मुखिया पिछले 15 महीनों से नहीं मिल सका है। करीब डेढ़ साल से कार्यवाहक डीजीपी से प्रदेश का काम चल रहा है। सीनियर आईपीएस मुकुल गोयल यूपी के पूर्णकालिक डीजीपी थे। गोयल को हटाए जाने के बाद प्रदेश में अभी तक कोई पूर्णकालिक पुलिस मुखिया नहीं मिल सका है। मुकुल गोयल को 11 मई 2022 को यूपी के डीजीपी पद से लापरवाही, शासकीय कार्यों की अवहेलना सहित कई आरोपों में हटाया गया था।
दो साल का कार्यकाल पूरा नहीं होने पर मुकुल गोयल मामले में सरकार और यूपीएससी में ठनी
मुकुल गोयल को हटाने के बाद यूपी सरकार ने नए पूर्णकालिक डीजीपी का प्रस्ताव यूपीएससी को भेजा था। लेकिन यूपीएससी ने मुकुल गोयल को हटाने का कारण पूछते हुए फाइल को बैरंग लौटा दिया था। संघ लोकसेवा आयोग ने प्रदेश सरकार से यह जानना चाहा कि मुकुल गोयल को डीजीपी के पद पर न्यूनतम 2 साल की कार्यावधि पूरा करने से पहले हटाने के लिए क्या सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन्स का पालन किया गया? दरअसल, 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह के मामले में एक दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए। अगर डीजीपी की कुर्सी पर बैठा अफसर रिटायर भी हो रहा हो तो उसे 2 वर्ष का कार्यकाल पूरा दिया जाएगा।
केवल इन वजहों से दो साल से पहले हटाया जा सकता
डीजीपी को दो साल से पहले आल इंडिया सर्विस रूल्स के उल्लंघन के तहत ही हटाया जा सकता है। जैसे आपराधिक मामले में सजा, भ्रष्टाचार का मामला साबित होने या डयूटी निभाने में अक्षमता के मामले में समय पूर्व ही उन्हें पद से हटाया जा सकता है। ऐसे में संघ लोक सेवा आयोग ने 13 सितंबर 2022 को यूपी सरकार को चिट्ठी भेजकर पूछा है कि अगर ऑल इंडिया सर्विस रूल्स का कोई उल्लंघन मुकुल गोयल ने किया है तो उस संबंधी दस्तावेज उपलब्ध कराई जाए। लेकिन बीते 15 महीने से राज्य सरकार यूपीएससी के सवालों का न जवाब दे पा रही है न ही इस वजह से नया प्रस्ताव भेज पा रही है।
राज्य में डीजीपी की नियुक्ति का नियम
डीजीपी की तैनाती के लिए राज्य सरकारें अपने IPS अफसरों का पैनल UPSC को भेजती हैं। पैनल में ऐसे अफसरों के नाम शामिल होतें हैं जिनकी 30 साल की नौकरी पूरी हो चुकी हो। अफसर का सर्विस का ट्रैक रिकार्ड अच्छा हो, किसी तरह का क्रिमिनल रिकार्ड या भ्रष्टाचार में संलिप्तता (साबित) ना हो। साथ ही डीजीपी पद पर नियुक्ति के समय उसके रिटायरमेंट में कम से कम छह महीने का वक्त बचा हो। UPSC उनमें से वरिष्ठता के आधार पर तीन नाम राज्य सरकारों को वापस भेज देती है। तीन नामों के पैनल में से किसी एक नाम पर राज्य सरकार मुहर लगाते हुए उसे डीजीपी बना देती है।
तीन-तीन कार्यवाहक प्रदेश के पुलिस मुखिया की कुर्सी पर बैठ चुके
मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद राज्य सरकार पूर्णकालिक डीजीपी नियुक्त नहीं कर सकती है। इस वजह से तीन कार्यवाहक अभी तक प्रदेश की कमान संभाल चुके हैं। गोयल के बाद 1988 बैच के आईपीएस देवेन्द्र सिंह चौहान 11 महीने कार्यवाहक डीजीपी की कुर्सी पर रहे। मार्च 2023 में रिटायर होने के बाद आर के विश्वकर्मा 31 मई तक कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक रहे। उनके बाद 1 जून से विजय कुमार प्रदेश के कार्यवाहक डीजीपी हैं। इनका रिटायरमेंट जनवरी 2024 में होना है। गृह मंत्रालय भी यूपी सरकार से पूर्णकालिक डीजीपी को नियुक्त करने के बारे में पत्राचार कर चुका है।
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