गोरखपुर। पत्रकारिता, विज्ञान व इंजीनियरिंग के 60 से अधिक युवाओं ने तीन दिनों तक फिल्म बनाने का हुनर सीखा। विज्ञान पर आधारित कई फिल्में देखीं। फिल्म निर्माण, शोध, स्क्रिप्ट राइटिंग, एडिटिंग, वॉयस ओवर और अन्य तकनीकी पक्षों को करीब से जाना।
युवाओं ने दिल्ली, लखनऊ, पुणे के फिल्म निर्माण विशेषज्ञों के कुशल निर्देशन में तमाम सामाजिक मुद्दों पर मोबाइल से 31 लघु फिल्में भी बनाई। जिसे सभी ने मिलकर देखा और सराहा। युवाओं ने सवालात किए उसका जवाब भी किया गया। युवाओं ने अपने अनुभव भी साझा किए। आपसी संवाद के लिए व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाया गया।
दरअसल, दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग, विज्ञान प्रसार और हेरिटेज फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में तीन दिवसीय ‘विज्ञान फिल्म निर्माण’ कार्यशाला का समापन शुक्रवार को हुआ।
कार्यशाला में पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के युवा शामिल हुए। सभी प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट प्रदान किए गए। युवाओं को प्रख्यात पर्यावरणविद माइक हरिगोविंद पाण्डेय के वृत्तिचित्र की सीडी उपहार स्वरूप दी गई। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण भी वितरित किए गए।
युवाओं को कौशल निखारने का मिलेगा मौका
समापन अवसर पर हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल राय ने कहा कि संभवत: गोरखपुर के इतिहास में फिल्म निर्माण की यह पहली कार्यशाला है। यहां फिल्म फेस्टिवल तो बहुत हुए लेकिन फिल्म निर्माण का हुनर पहली बार बताया व सिखाया गया।
कार्यशाला पूर्वांचल के लिए अभूतपूर्व व ऐतिहासिक है। कार्यशाला युवाओं को अपने कौशल को निखारने का बेहतरीन जरिया बनी। ऐसी कार्यशालाएं युवाओं को और बेहतर और सक्षम बनाएंगी।
उन्होंने कहा कि फिल्म जैसा सशक्त माध्यम विषयों और विचारों को अभिव्यक्त करने और लोगों तक पहुंचाने का काम बहुत बेहतर तरीके से करता है।
कार्यशाला में युवाओं की सहभागिता व कार्य बता रहा है कि यहां रचनात्मक संवाद हुआ है।
युवा लक्ष्य को अर्जुन की तरह निगाहों में रखें
अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका एडवोकेट अनीता अग्रवाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। मुझे आशा है कि युवाओं ने जो सीखा है उसे आत्मविश्वास, सकारात्मतक सोच व बेतहरीन तरीके से अपने जीवन में उतारकर आगे बढ़ेंगे। युवा अर्जुन की तरह टारगेट को निगाहों में रखें। निगाह को भटकने न दें। चुनौतियों से घबराना नहीं है बल्कि उसका मुकाबला करना है।
रीबर बैंक स्टूडियो के वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर अनिल अग्रवाल ने कहा कि विज्ञान प्रसार की छवि ने कहा कि युवाओं को तकनीक और ज्ञान के उपयोग के बारे में जानकारी देने और पर्यावरण, वन्य जीव, स्वास्थ और समाज को कैमरे और विज्ञान की नज़र से देखने और उन्हे पर्दे पर सरलीकृत कर अधिकतम लोगों तक पहुंच बनाने के उद्देश्य से यह कार्यशाला अयोजित की गई। जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं ने हिस्सा लेकर यह बता दिया की उनमें सीखने की बहुत ललक है।
कार्यशाला में एफटीआईआई से जुड़े विषय विशेषज्ञ फिल्म निर्देशक रितेश तकाशंडे ने कहा कि पूर्वांचल के युवाओं के अंदर जिज्ञासा और लर्निंग का शौक व जज्बा है। सही दिशा निर्देशन मिले तो यह युवा फिल्म निर्माण में अपना बेहतर भविष्य व मुकाम हासिल कर सकते हैं। उन्होंने फिल्म निर्माण में सात डब्लू व एक एच की उपयोगिता के साथ फिल्म निर्माण की तमाम बारीक जानकारियां दी। वहीं 1 अप्रैल तक बेहतर लघु फिल्में बनाकर भेजने की पेशकश की।
विज्ञान और पर्यावरण विषय के फिल्मांकन का तरीका बताया
बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन विभाग के हेड एवं विज्ञान फिल्म विशेषज्ञ जेसी विक्रम ने तीसरे दिन भी फिल्मों के लिए विज्ञान पर आधारित विषयों के चुनाव, निर्माण और समझ बनाने के लिए जानकारियां दीं। युवाओं की लघु फिल्मों पर और भी बेहतर ढ़ंग से बनाने का तरीका बताया। उन्होंने विज्ञान और पर्यावरण विषय के फिल्मांकन का तरीका भी बताया।
समापन पर हेरिटेज फाउंडेशन के ट्रस्टी नरेंद्र मिश्र, ट्रस्टी अनिल कुमार त्रिपाठी, ट्रस्टी अनुपमा मिश्रा, रविन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. रजनीश कुमार चतुर्वेदी, डॉ. केदार नाथ, प्रो. शीतला प्रसाद सिंह, मनीष मिश्रा, अभिषेक त्रिपाठी, कार्तिक मिश्रा, डॉ. अभिषेक शुक्ला, सैयद फरहान अहमद, समेत अन्य माजूद रहे।
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