इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़ित महिला और आरोपी पति प्रासंगिक समय पर पति और पत्नी के रूप में रह रहे थे. ये तथ्य दहेज हत्या का मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप मामले में दहेज हत्या के आरोपों को बरकरार रखा है. कोर्ट ने कहा कि पीड़ित महिला और आरोपी पति प्रासंगिक समय पर पति और पत्नी के रूप में रह रहे थे, ये तथ्य दहेज हत्या का मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त है. यह आदेश जस्टिस राजबीर सिंह ने आदर्श यादव द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 में दाखिल अर्जी को खारिज करते हुए दिया है.
क्या है पूरा मामला
मामले के अनुसार याची आदर्श यादव के खिलाफ प्रयागराज के कोतवाली थाने में 2022 में आईपीसी की धारा 498-ए, 304-बी और दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था. दहेज हत्या व दहेज उत्पीड़न के आरोप में याची के खिलाफ दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया कि शादी के लिए दहेज मांगने से तंग आकर पीड़िता ने खुदकुशी कर ली थी. पुलिस ने दहेज हत्या के आरोप में चार्जशीट दाखिल की.
ट्रायल कोर्ट ने याची की अपराध से उन्मुक्त करने की अर्जी निरस्त कर दी, जिसे याची ने सीआरपीसी की धारा 482 की अर्ज़ी के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. याची आदर्श यादव ने 30 अप्रैल 2024 को प्रयागराज के अपर जिला और सत्र न्यायाधीश की कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली. ट्रायल कोर्ट ने आवेदक द्वारा सीआरपीसी की धारा 227 के तहत उन्मोचन के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया था.
आवेदक की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई कि वह कानूनी तौर पर मृतिका का पति नहीं है. इसलिए उसपर दहेज हत्या व दहेज उत्पीड़न का केस नहीं चलाया जा सकता. वहीं, सरकारी वकील का कहना था कि मृतका की शादी कोर्ट के माध्यम से हुई थी. दहेज के लिए आवेदक मृतका को प्रताड़ित करता था. इसलिए पीड़िता ने खुदकुशी कर ली. विवाह की वैधता का परीक्षण ट्रायल में ही हो सकता है.
कोर्ट ने फैसले में कहा कि केवल पति ही नहीं, बल्कि उसके रिश्तेदार भी दहेज हत्या के लिए आरोपित हो सकते है. भले ही यह मान लिया जाए कि मृतका कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं थी. लेकिन साक्ष्य है कि वो पति और पत्नी की तरह एक साथ यानी लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे. इसलिए दहेज हत्या के प्रावधान इस मामले में लागू होंगे.
कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि डिस्चार्ज आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय को यह निर्धारित करने के लिए अपने न्यायिक दिमाग का प्रयोग करना है कि ट्रायल के लिए मामला बनाया गया है या नहीं. कोर्ट में रिकॉर्ड पर रखे गए तथ्य अभियुक्त के खिलाफ गंभीर संदेह प्रकट करती है, जिसे ठीक से स्पष्ट नहीं किया गया है. न्यायालय डिस्चार्ज के लिए आवेदन को खारिज करने में पूरी तरह से न्यायसंगत होगा. कोर्ट ने कहा कि अन्यथा यह प्रश्न कि मृतका आवेदक की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी थी या नहीं सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इन कार्यवाहियों में तय नहीं किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रीमा अग्रवाल बनाम अनुपम के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दहेज़ शब्द के पीछे कोई जादुई जादू नहीं लिखा है. यह तो वैवाहिक संबंधों में पैसे की मांग को दिया जाने वाला एक लेबल मात्र है. कोर्ट ने कहा कि आवेदक की ओर से उठाया गया तर्क कि आईपीसी की धारा 304-बी के प्रावधान लागू नहीं होते इसमें कोई बल नहीं रखता है. कोर्ट में पेश किए गए याची आदेश के रिकॉर्ड से पता चलता है कि ट्रायल कोर्ट ने मामले के सभी प्रासंगिक तथ्यों पर विचार किया है और आवेदक द्वारा डिस्चार्ज के लिए दायर आवेदन को एक तर्कसंगत आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया था.
याची आदेश में ऐसी कोई भौतिक अवैधता या विकृति नहीं दिखाई जा सकी, जिससे इस कोर्ट को धारा 482 सीआरपीसी के तहत असाधारण अधिकारिता का आह्वान करके किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता हो. कोर्ट ने कहा कि धारा 482 के तहत वर्तमान आवेदन में योग्यता का अभाव है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है.
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