वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है. संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है.
केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में ही ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी एक देश एक चुनाव विधेयक पेश करने जा रही है. इस बिल को लोकसभा में सोमवार (16 दिसंबर) को पेश किया जाएगा. वहीं, दिल्ली, जम्मू कश्मीर और पुडुचेरी के लिए अलग से बिल पेश होगा. इस बिल की कॉपी सांसदों को सर्कुलेट कर दी गई है. विपक्ष लगातार एक देश एक चुनाव का विरोध करती आई है. ऐसे में साफ समझा जा सकता है कि लोकसभा में सोमवार को कार्यवाही हंगामेदार रहने वाली है.
दरअसल, सरकार इस बिल को पेश करने के बाद ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी यानी JPC को भी भेजना चाहती है. अगर JPC ने क्लियरेंस दे दी और संसद के दोनों सदनों से ये बिल पास हो गया, तो इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. राष्ट्रपति के साइन करते ही ये बिल कानून बन जाएगा. अगर ऐसा हो गया तो देशभर में 2029 तक एक साथ चुनाव होंगे.
आइए जानते हैं वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने के बाद देश में चुनाव की प्रक्रिया कितनी बदल जाएगी:-
वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों.
सरकार क्यों चाहती है एक साथ चुनाव?
नवंबर 2020 में PM नरेंद्र मोदी ने कई मंचों पर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर बात की है. उन्होंने कहा है, “एक देश एक चुनाव सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, बल्कि भारत की जरूरत है. हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं. इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है. पूरे देश की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी.
देश में 19 अप्रैल से 1 जून 2024 तक लोकसभा के चुनाव हुए थे.
इस बिल के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर विपक्ष कई तरह के तर्क दे रहा है. कांग्रेस का तर्क है कि एक साथ चुनाव हुए, तो वोटर्स के फैसले पर असर पड़ने की संभावना है. चुनाव 5 साल में एक बार होंगे, तो जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी.
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए बनी थी कौन सी कमेटी?
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमेटी बनाई गई थी. कोविंद की कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त(CVC) संजय कोठारी समेत 8 मेंबर हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं. कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसे 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी.
कोविंद कमेटी ने वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या दिया सुझाव?
-कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए.
-पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.
-हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.
-इलेक्शन कमीशन लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार कर सकता है.
-कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए डिवाइसों, मैन पावर और सिक्योरिटी फोर्स की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश भी की है.
रामनाथ कोविंद कमेटी ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
वन नेशन वन इलेक्शन पर सरकार ने क्या कहा?
-सरकार ने कहा, “कोविंद कमेटी की ये सिफारिशें 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद लागू होंगी. 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति एक नियत तारीख तय करेंगे, जिससे राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे. इसके लिए कम से कम 5 से 6 संवैधानिक संशोधन की जरूरत पड़ेगी.”
-केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी के सुझावों पर विचार करने के लिए JPC के पास बिल को भेजा जाएगा. देशभर में भी चर्चा करेगी. इसके बाद ही अगला कदम उठाया जाएगा.
कैसे तैयार हुई रिपोर्ट?
कमेटी ने इसके लिए 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया. इनमें से 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया. वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया था. जबकि 15 ऐसी पार्टियां भी थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. 191 दिन की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी. कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पेज की है.
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कोविंद कमेटी किन देशों से लिया कौन सा रेफरेंस?
-वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कई देशों के संविधान का एनालिसिस किया गया. कमेटी ने स्वीडन, जापान, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, बेल्जियम, फिलीपिंस, इंडोनेशिया के इलेक्शन प्रोसेस की स्टडी की.
-दक्षिण अफ्रीका में अगले साल मई में लोकसभाओं और विधानसभाओं के इलेक्शन होंगे. जबकि स्वीडन इलेक्शन प्रोसेस के लिए आनुपातिक चुनावी प्रणाली यानी Proportional Electoral System अपनाता है.
-जर्मनी और जापान की बात करें, तो यहां पहले पीएम का सिलेक्शन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं.
-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव साथ में होते हैं.
वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कौन सी पार्टियां तैयार?
वन नेशन वन इलेक्शन का BJP, नीतीश कुमार की JDU, तेलुगू देशम पार्टी (TDP), चिराग पासवान की LJP ने समर्थन किया है. इसके साथ ही असम गण परिषद, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और शिवसेना (शिंदे) गुट ने भी वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है.
कांग्रेस ने वन नेशन वन इलेक्शन का पुरजोर विरोध किया है.
किन पार्टियों ने विरोध किया?
वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीएम (CPM) समेत 15 दल इसके खिलाफ थे. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समेत 15 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया.
वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया क्या होगी?
विधि आयोग के मुताबिक, वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है. संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है.
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क्या देश में एक साथ चुनाव कराना संभव है?
वन नेशन वन इलेक्शन को संसद में पास कराने के लिए दो-तिहाई राज्यों की रजामंदी की जरूरत होगी. अगर बाकी राज्यों से सहमति लेने की जरूरत हुई, तो ज्यादातर नॉन BJP सरकारें इसका विरोध करेंगी. विपक्ष के कई दलों ने इसके संकेत पहले ही दे दिए हैं. वहीं, अगर सिर्फ संसद से पारित कराकर कानून बनाना संभव हुआ, तब भी कानूनी तौर पर कई दिक्कतें आ सकती हैं. जिन राज्यों में हाल में सरकार चुनी गई है, वो इसका विरोध करेंगे. टेन्योर को लेकर वो सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं. BJP और नॉन BJP राज्य सरकारों में मतभेद इतना ज्यादा है कि वन नेशन वन इलेक्शन पर आम सहमति बनाएंगे, ऐसा मुमकिन नहीं लगता.
PM मोदी ने वन नेशन वन इलेक्शन को देश की जरूरत बताया है.
वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो किन विधानसभाओं का कम हो सकता है कार्यकाल?
वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब व उत्तराखंड का मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा.
गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा का कार्यकाल भी 13 से 17 माह घटेगा. असम, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी मौजूदा कार्यकाल कम होगा.
क्या इससे पहले भारत में एक साथ चुनाव हुए?
हां ऐसा हुआ है. भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे. हालांकि, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म कर दिया गया. 1970 में इंदिरा गांधी ने पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही लोकसभा को भंग करने का सुझाव दिया. इससे उन्होंने भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा को भी तोड़ दिया. जबकि मूल रूप से 1972 में लोकसभा के चुनाव होने थे. अब मोदी सरकार फिर से इसे लागू करने की कोशिश में है.
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अगर समय से पहले लोकसभा भंग हो गई तो?
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर एक सवाल उठता है कि अगर लोकसभा 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई तो क्या होगा? तब क्या दोबारा से चुनाव होगा. क्या लोकसभा चुनाव के साथ ही फिर से राज्यों के चुनाव कराए जाएंगे? अभी तक लोकसभा 6 बार 5 साल से पहले ही भंग कर दी गई. एक बार इसका कार्यकाल 10 महीने के लिए बढ़ाया गया था.
अगर राज्यों की सरकारें गिर गई, तो क्या मिड इलेक्शन होंगे?
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर ये भी सवाल है कि अगर किसी राज्य की सरकार गिर जाती है, तो क्या होगा? बीच कार्यकाल जो सरकारें गिर जाएंगी, उन राज्यों में मध्यावधि चुनाव होंगे या नहीं? नहीं होंगे तो क्या वहां शेष अवधि में राष्ट्रपति शासन क़ायम रहेगा? ऐसे केस में वन नेशन वन इलेक्शन की प्रक्रिया क्या होगी? इन सवालों का जवाब मिलना बाकी है. इसलिए सरकार इस बिल को जेपीसी के पास भेजना चाहती है.
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