चंद्रचूड़ ने बताया कि उनके पिता ने उन्हें हमेशा अपना करियर खुद चुनने की स्वतंत्रता दी और अपने परिवार के लिए समय निकालते हुए कभी भी अपने विचार उन पर थोपे नहीं.
भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ के लिए कानून पहला विकल्प नहीं था. उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर की डिग्री अर्थशास्त्र में हासिल करने का निर्णय लिया था. हालांकि, समय के साथ उनकी दिशा बदली और वह न्यायिक क्षेत्र में आए. एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपनी यात्रा के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात की. उन्होंने बताया कि कैसे एक वकील और बाद में एक न्यायाधीश के रूप में उन्हें सफलता मिली. उनके जीवन पर उनके पिता, भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश वाईवी चंद्रचूड़ का प्रभाव किस प्रकार था.
उन्होंने कहा कि सच कहूं तो, लॉ मेरे करियर की पहली पसंद नहीं था. मेरी अकादमिक पृष्ठभूमि अर्थशास्त्र में है. मैंने स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की है. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मेरी प्रबल इच्छा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने की थी. हालांकि, जैसा कि अक्सर कहा जाता है कि जो भाग्य में लिखा होता है, वही होता है. मैंने कानून की पढ़ाई करने का निर्णय लिया और लॉ फैकल्टी में प्रवेश लिया. एक बार जब मैंने कानून की दुनिया में कदम रखा, तो फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.’
चंद्रचूड़ ने बताया कि उनके पिता ने उन्हें हमेशा अपना करियर खुद चुनने की स्वतंत्रता दी और अपने परिवार के लिए समय निकालते हुए कभी भी अपने विचार उन पर थोपे नहीं. वह एक आदर्श स्थापित करते हुए हमेशा समर्थन में खड़े रहे. चंद्रचूड़ ने बताया कि मेरे पिता मेरे लिए केवल एक अभिभावक नहीं, बल्कि एक दोस्त भी थे.
उन्होंने कहा कि जब उच्च न्यायिक पद पर नियुक्ति का प्रस्ताव आया और मुझे 38 वर्ष की आयु में न्यायाधीश बनने के लिए कहा गया. लेकिन मेरी नियुक्ति दो वर्षों तक नहीं हो सकी, तो मैंने सोचा कि शायद अब समय आ गया है कि मैं कानून की पढ़ाई करूंगा और अपना शेष जीवन वकील के रूप में बिताऊं. जब मैंने इस बारे में अपने पिता से सलाह ली, तो उन्होंने कहा, ‘आप जो भी करना चाहें, मैं हमेशा आपका समर्थन करूंगा.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने यह भी बताया कि उन्हें कुछ महान व्यक्तियों के साथ काम करने का अवसर मिला, जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा. उन्होंने फली नरीमन, सोली सोराबजी और के परासरन का उल्लेख करते हुए कहा कि इन महान व्यक्तियों से काम करने का अनुभव उनके लिए अनमोल रहा. इसके अलावा, उन्होंने पूर्व सॉलिसिटर जनरल केके वेणुगोपाल की भी सराहना की.
डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं, ‘सर्वोच्च न्यायालय अंतिम इसलिए नहीं है क्योंकि वह सदैव सही होता है, बल्कि इसलिए है क्योंकि वह अंतिम होता है. इसी सिद्धांत के आधार पर हमने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अतीत में दिए गए कुछ निर्णयों की समीक्षा की है. 2024 में और उससे पहले भी हमने 1970, 1980 और 1990 के दशकों में हमारे पूर्ववर्ती न्यायाधीशों द्वारा दिए गए कई निर्णयों को पलटा है. इन निर्णयों को पलटने का कारण यह नहीं था कि वे अपने समय में पूरी तरह से गलत थे. संभवत उन निर्णयों का उस समय के समाज पर कुछ प्रभाव रहा होगा और वे उस विशिष्ट सामाजिक संदर्भ में प्रासंगिक रहे होंगे. हालांकि, समय के साथ समाज में बदलाव आया है और उन पुराने निर्णयों का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है. वे आज के समय में अप्रासंगिक हो गए है. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. उदाहरण के तौर पर मैंने स्वयं अपने पिता द्वारा दिए गए कुछ निर्णयों को पलटा है. यह न्यायिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है, जिसमें समय और समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार पुराने निर्णयों की समीक्षा और संशोधन किया जाता है.’
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