Supreme Court hearing on Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 खत्म किए और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हुए तीन साल से अधिक समय हो गया। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को लेकर कई याचिकाएं डालकर चुनौती दी गई थी। तीन साल बाद अब सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर सुनवाई करना शुरू करेगा। पांच जजों की संविधान पीठ मंगलवार से प्रारंभिक कार्यवाही शुरू करेगी। पहले दिन की कार्यवाही में दस्तावेज दाखिल करने और लिखित प्रेजेंटेशन के बारे में बेंच निर्देश देगा।
संविधान पीठ मंगलवार को ही तय करेगा कि इस मामले में सुनवाई कब से शुरू की जाएगी। इस बेंच में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल होंगे।
Supreme court की संविधान पीठ इन पर करेगी गौर
संविधान पीठ इस बात की वैधानिकता जांचेगी कि क्या संसद जम्मू-कश्मीर के लोगों की सहमति के बिना अनुच्छेद 370 को खत्म कर सकती थी। क्या इसका दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन संवैधानिक था।
केंद्र सरकार ने बताया-370 खत्म करने के बाद अभूतपूर्व शांति
उधर, सोमवार को केंद्र ने एक एफिडेविट दायर कर बताया कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में अभूतपूर्व शांति आई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि जम्मू-कश्मीर पिछले तीन दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा था। इस पर अंकुश लगाने के लिए धारा 370 को हटाना ही एकमात्र रास्ता था। आज घाटी में स्कूल, कॉलेज, उद्योग सहित सभी आवश्यक संस्थान सामान्य रूप से चल रहे हैं। औद्योगिक विकास हो रहा है और जो लोग डर में रहते थे वे शांति से रह रहे हैं।
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 किया गया था खत्म
संसद ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने का प्रस्ताव पास किया था। साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। संसद ने राज्य को विभाजित करने के लिए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पारित किया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका में क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट में 370 खत्म किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं में यह बताया गया कि राज्य के स्पेशल स्टेटस को खत्म करने की प्रक्रिया राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के बाद शुरू की गई। यह प्रक्रिया उस वक्त शुरू की गई जब राज्य की विधानसभा काम नहीं कर रही थी।
याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राष्ट्रपति की उद्घोषणा के माध्यम से अनुच्छेद 370 को खत्म करना जम्मू-कश्मीर के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है। जून 2018 में भाजपा ने महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ दिया और सरकार अल्पमत में आ गई। बीजेपी के सरकार से निकलने के बाद जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को लागू कर दिया गया। इसके बाद से यहां विधानसभा चुनाव भी नहीं हुए हैं।
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