17 साल के मोहित के परिजनों को उनके एक रिश्तेदार ने एम्स जाने की सलाह दी. जब वह पहुंचे, तो तुरंत भर्ती कर लिया गया . इस दौरान एम्स के सामान्य सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन और एनेस्थेसियोलॉजिस्ट सहित अन्य विशेषज्ञों की एक टीम ने हेल्थ के कई चेकअप किए.
दिल्ली एम्स के डाक्टरों ने फिर एक इतिहास लिख दिया. एक ऐसे जटिल आपरेशन को अंजाम दिया जिससे मेडिकल के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जा रहा है. एम्स के सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ असुरी कृष्णा समेत डॉ वी के बंसल, डॉ सुशांत सोरेन, डॉ बृजेश सिंह, डॉ अभिनव, डॉ मनीष सिंघल, डॉ शशांक चौहान, डॉ गंगा प्रसाद, डॉ राकेश ने इस आपरेशन को अंजाम दिया. डॉक्टरों की ये टीम सर्जरी के अलावा अलग अलग विभागों से भी थे.
17 साल के बच्चे के थे 4 पैर
बच्चे की उम्र 17 साल है.सर्जरी से पहले उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था..बच्चों शारीरिक तौर पर ही नहीं लोग उसकी हँसी भी उड़ाते थे जिसके चलते मानसिक तौर पर भी परेशान था..बच्चा 8वीं क्लास में गया तो उसे मजबूरी में पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.
दुनिया में ऐसे सिर्फ 42 केस
एम्स के सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ असुरी कृष्णा ने बताया कि इस तरह का केस एक करोड़ की आबादी में एक हो सकता है.जानकारी के मुताबिक दुनियाभर में अभी तक ऐसे 42 केस रिपोर्ट हुए हैं.
चार पैर देख दंग रह गए एम्स के डॉक्टर्स
एम्स के सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ असुरी कृष्णा ने बताया कि 28 जनवरी को 17 साल का बच्चा एम्स के ओपीडी में लाया गया. डॉ असुरी कृष्णा के मुताबिक जब ये बच्चा opd में पहुंचा उसके पेट को कपड़े से ढका गया था पेट के पास कपड़ों के अंदर से दो पैर लटक रहे थे. आम बोलचाल की भाषा में इसे चार पैर वाला बच्चा कहेंगे जबकि मेडिकल टर्म में इसे incomplete parasitic twin कहेंगे.
ऑपरेशन क्यों जरुरी था?
सर्जरी को अंजाम देने वाली डॉक्टरों की टीम के मुताबिक पेट के अंदर से निकले दो पैरों की वजह से बच्चे के शरीर का ग्रोथ नहीं हो पा रहा था.उन अतिरिक्त दो पैरों की वजह से शरीर के दूसरे अंगों को नुकसान हो सकता था.डॉक्टरों के मुताबिक इस तरह की स्थिति तब बनती है जब जुड़वां बच्चों में एक का शरीर डेवलप नहीं हो पाता और उसके अंग दूसरे बच्चे के शरीर के साथ अटैच हो जाते हैं.
17 साल तक इलाज क्यों नहीं हुआ?
डॉक्टरों के मुताबिक गर्भ के दौरान इस तरह के केस की जानकारी मिल सकती है लेकिन इस बच्चे के पैरेंट आर्थिक तौर पर कमजोर होने की वजह से जांच नहीं करवा सके.निजी अस्पताल में इलाज करवा पाना आसान नहीं था.वहां पर इलाज का खर्च काफी महंगा था.केस जटिल था तो किसी छोटे मोटे अस्पताल में सर्जरी होना आसान नहीं था.बच्चे को दिल्ली के एम्स लाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे एक नया जीवन दिया.
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