मुंबई की सड़कों में अपने गांव की गलियां बहुत याद आती हैं। मैं बहुत छोटी सी जगह से बहुत बड़ी दुनिया में गया हूं। मुजफ्फरनगर से मुम्बई पहुंचने का सफर आसान नहीं था। 2012 में रिलीज हुई फिल्म चक्रव्यूह का गाना लिखा तो टाटा-अंबानी ने केस दर्ज करवा दिया। ये कहना है बाजीराव मस्तानी, पद्मावत जैसी सुपर हिट फिल्मों के लिरिक्स राइटर एएम तुराज का…। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले एएम तुराज 19 साल की उम्र में ही मुंबई गए। घर वाले जमींदार थे। उनका कहना था- पढ़ लिख कर खेती करो। तुराज दुनिया से इतर कुछ अलग करना चाहते थे। अपने एरिया का क्राइम देख काफी परेशान होते थे। तुराज को बचपन से पढ़ने-लिखने और शेरो-शायरी का शौक था। पिता के साथ मुशायरे में जाते। पिता उर्दू के बहुत अच्छे जानकार हैं। हालांकि वे नहीं चाहते थे कि बेटा आगे चलकर इसे अपना प्रोफेशन बना ले। ए.एम. तुराज़ के घर पर टीवी देखना क्राइम माना जाता था। वे चुपके से दूसरों के घर में जाकर टीवी देखते थे। जब पिता को यह बात पता चलती तो वे डांट भी लगाते। समय के साथ उन्हें समझ आ गया कि बेटे को ज्यादा दिन रोकना सही नहीं होगा। उन्होंने तब कहा- तुम्हें जो करना है करो, हम तुम्हारा सपोर्ट करेंगे। पिता की सहमति के साथ तुराज़ मुंबई गए। एक डेढ़ साल तक उन्हें पिता की तरफ से खर्चे भी मिलते रहे। लखनऊ में दैनिक भास्कर के साथ ए.एम. तुराज़ ने अपने सफर को साझा किया। इस दौरान उन्होंने देश की टॉप बिजनेस फैमिलीज का भी जिक्र किया। पढ़िए पूरी बातचीत सवाल: लखनऊ अदब और साहित्य का गढ़ है। आप इस शहर को कैसे देखते है.?
जवाब: लखनऊ मुझे हमेशा से पसंद रहा। ये खूबसूरत और नजाकत वाला शहर है। इस शहर ने बड़े-बड़े साहित्यकार और शायर दिए हैं। सवाल: फिल्मी दुनिया में लंबे समय से आप काम कर रहे हैं, अब तक सफर कैसा रहा?
जवाब : 20 साल हो गए हैं, ये सफर मसालेदार फिल्म की तरह रहा। ऊपर वाले ने बहुत कुछ दिया। बहुत सारे लोगों ने हमारे साथ सफर शुरू किया, मगर मंजिल तक नहीं पहुंचे। सवाल: आपने फिल्मों में हिट गाने दिए, क्या फॉर्मूला है?
जवाब: फिल्म बड़ी होता है गाना छोटा सा पार्ट। गाना हिट होने में फिल्म और सिंगर का हाथ होता है। अकेले कुछ सम्भव नहीं। सवाल: बॉलीवुड में दो दशक से आप काम कर रहे हैं, क्या बदलाव महसूस किए?
जवाब: वक्त के साथ बदलाव आया। इंडस्ट्री वालों से यही कहूंगा कि किसी की कॉपी फिल्म ना बनाएं। राइटर और फिल्म मेकर को अपनी शैली पर काम करना चाहिए। एक फिल्म अगर चल गई तो सब लोग वैसे ही फिल्म बनाना चाहते हैं। हर एक्टर वैसे ही काम करना चाहता है। ये ठीक नहीं। सवाल: संजय लीला भंसाली आप के पसंदीदा हैं, क्या कारण है?
जवाब : संजय जी काफी अलग हैं। वह चीजों को समझते हैं। अलग करना चाहते हैं। वो म्यूजिक को जीते हैं। वो सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश कर रहे हैं। हीरामंडी को पूरे विश्व में पसंद किया गया। सबसे अधिक देखी जाने वाली वेब सीरीज थी। ये उनकी दूरदर्शिता और समझ का परिणाम है। सवाल: बॉलीवुड के गानों में रैप का दौर आ गया है, अश्लीलता भी परोसी जा रही, इसे कैसे देखते हैं?
जवाब : ये हमारे समाज के लिए अच्छा नहीं है, सब कुछ दायरे में ठीक लगता है। आइटम नम्बर्स फिल्म की जरूरत है, लेकिन दायरे में होना जरूरी। सिनेमाघरों में हर तरह के लोग आते हैं, इसलिए अच्छी चीजें परोसना चाहिए। सवाल: आपकी शायरी में युवाओं की बात होती है, उनके संघर्ष को बताते हैं।
जवाब : मेरा सफर संघर्ष भरा रहा। उसी को महसूस करके लिखता हूं। मुजफ्फरनगर से निकल कर दिल्ली फिर मुंबई गया। ऐसे वक्त में अगर कोई हाल पूछ ले, सहारा दे दे तो बड़ी बात है। सवाल: जब आपने टाटा-अंबानी पर गाना लिखा आपके ऊपर मुकदमा हो गया, क्या वो मुश्किल दौर था?
जवाब : उस गाने में जिनकी बात हुई वो ब्रांड हैं। इनके सरनेम उदाहरण हैं। हमने गाना किसी को हर्ट करने के लिए नहीं, फिल्म की सिचुएशन पर लिखा था। अगर किसी को तकलीफ हुई तो आज भी माफी मांगते हैं। यह खबर भी पढ़ें… डॉक्टरी की ताकि फिल्मों में आ सकें:डेडबॉडी तक का रोल किया; कार बेचकर साइकिल पर आए; अब छावा के कवि कलश बन छाए विनीत विनीत कुमार सिंह एक ऐसा नाम जिसने सही मायनों में संघर्ष का मतलब बताया। आज-कल की दुनिया में हम एक-दो साल स्ट्रगल करके थक जाते हैं और खुद को दुखिया साबित कर देते हैं। विनीत कुमार 2000 के आस-पास मुंबई आए थे। 25 साल हो गए। इस दौरान काफी फिल्मों में भी दिखे, लेकिन असल पहचान अब जाकर मिली है। भारत जैसे देश में डॉक्टरी की पढ़ाई करना अपने आप में एक युद्ध से कम नहीं होता। विनीत ने डॉक्टरी की पढ़ाई सिर्फ इसलिए की, ताकि रात में मरीज देख सकें और दिन में फिल्मों के लिए ऑडिशन दे सकें। जो लोग सिनेमा के शौकीन होंगे, उन्होंने इन्हें गैंग्स ऑफ वासेपुर और मुक्काबाज जैसी फिल्मों में देखा होगा। इन दोनों फिल्मों में इनके काम को जरूर सराहा गया, लेकिन कोई खास पहचान नहीं मिली। 14 फरवरी को रिलीज हुई फिल्म छावा ने शायद विनीत को वो पहचान दिला दी है, जिसके वे हमेशा से हकदार थे। इस फिल्म में उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के दोस्त कवि कलश का किरदार निभाया है।आज सक्सेस स्टोरी में पढ़िए कहानी एक्टर विनीत कुमार की..बॉलीवुड | दैनिक भास्कर
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