- बौद्ध संस्कृति के साथ झलकता है सनातन संस्कृति का अनूठा संगम
- सनातन संस्कृति व सभ्यता को समेटे हुए हैं थाई मंदिर
राकेश कुमार गौड़
Lord Budhha worshipped with Tridev: भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर बौद्ध समुदाय के लोगों सहित हर किसी के लिए अहम स्थल है। यह स्थल सिर्फ बौद्ध संस्कृति व सभ्यता के लिए ही नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की पहचान के लिए भी ख्याति प्राप्त है। यहां सिर्फ बौद्ध मंदिर के साथ-साथ शिव व श्रीराम जानकी मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है। लेकिन इनमें थाई मंदिर सनातन संस्कृति व सभ्यता को समेटे हुए हैं। वहीं थाई वास्तुकला व नक्काशीदारी का अद्भुत व विलक्षण नमूना भी है। यहां तथागत बुद्ध के साथ त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) पूजे जाते हैं। अनीश्वरवादी बुद्ध के साथ सनातन धर्म के त्रिदेव की पूजा कहीं और नहीं होती है। यहां दो संस्कृतियों के मेल का अनूठा संगम पिछले कई वर्षों से झलकता है।
बौद्ध और सनातन संस्कृति के मिलाप के इस अनूठे संगम में वाट थाई मंदिर परिसर में तथागत भगवान बुद्ध के साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा मंदिर में शिव-पार्वती,भगवान गणेश,कार्तिकेय व त्रिशूल के अलावा हाथ में चक्र लिए भगवान विष्णु, लक्ष्मी, ब्रह्म व मां सरस्वती के भित्ति चित्र आकर्षण के केंद्र हैं। वहीं गरुड़ पक्षी को भी मंदिर में प्रमुख स्थान दिया गया है।
1994 में आरंभ हुआ निर्माण कार्य
1994 में वाट थाई कुशीनारा छर्लमराज मंदिर का निर्माण बौद्धिस्टों के दिन से आरंभ हुआ था। यह बौद्ध विहार वाट थाई बोधगया और रॉयल थाई दूतावास ,नई दिल्ली के संरक्षण में है। 2000 में बुद्ध मंदिर यानी उपोस्थ बनकर तैयार हो गया। जिसमें बौद्ध अनुयायियों ने पूजा अर्चना शुरू कर दिया।
थाईलैंड की प्रिंसेज महाचक्री सिरिंधोर्न ने रखी थी चैत्य की आधारशिला
थाईलैंड की प्रिंसेज महाचक्री सिरिंधोर्न ने भगवान बुद्ध की अस्थियों को सुरक्षित रखने के लिए वर्ष 2001 में कुशीनगर पहुंचकर आधारशिला रखीं थीं। फिर पांच वर्ष बाद जब चैत्य का निर्माण कार्य पूरा हो गया,तो 2005 में राजपरिवार के प्रतिनिधि के तौर पर लोकार्पण किया था। उन्हें 2004 में इंदिर गांधी शांति पुरस्कार से पुरस्कृत किया जा चुका है।
हर रोज होती है विशेष-पूजा अर्चना
मंदिर में भगवान बुद्ध के साथ त्रिदेव की प्रतिदिन विशेष-पूर्जा अर्चना की जाती है। यह परंपरा 20 साल से चली आ रही है। बौद्ध अनुयायी व भिक्षु दीपक,अगरबत्ती व कैडिल जलाकर विश्व शांति की कामना व कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। पूजा के दौरान धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि व बुद्धं शरणं गच्छामि गुंजायमान होता है। यहां नंदी, गणेश समेत अन्य देवों की भी पूजा होती है।
पिपरहवा में खुदाई से मिली बुद्ध की अस्थि रखी है सुरक्षित
वाट थाई मंदिर के स्वर्ण आभायुक्त बने भव्य व विशाल चैत्य में भगवान बुद्ध की पवित्र अस्थियां व राख सुरक्षित रखी गई हैं। यह कपिलवस्तु पिपरहवा में 1898 में खुदाई से मिली थीं। जिन्हें थाई राजघराने ने अंग्रेजों से अनुरोध कर प्राप्त किया था,उसे थाईलैैंड में रखा था। लेकिन यहां मंदिर व चैत्य निर्माण होने के बाद इसे बुलेटप्रूफ कांच के दरवाजों के बीच स्वर्ण कलश में रखा गया है। जो आज आकर्षण का केंद्र है।
थाई क्लिनिक को देश के पूर्व राष्ट्रपति ने किया था लोकार्पित
2 मई 2007 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कुशीनगर में नवनर्मित थाई क्लिकि का लोकार्पण किया था। क्लिनिक में गरीबों के बीच नि:शुल्क जांच व दवाए दी जाती हैं। निरंतर क्लिनिक में तैनात चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मी आने वाले प्रत्येक मरीजों की देखभाल व उचित सलाह दी जाती है। समय-समय पर क्षेत्र के चिह्नित स्थलों पर शिविर लगाकर भी इलाज किया जाता है। यही नहीं, प्रत्येक साल 30 विद्यालयों में पढ़ाई का सामान,शौचालय व पेयजल के लिए हैंडपंप लगाया जाता है।
बौद्ध सर्किट में कुशीनगर का महत्व
भगवान बुद्ध के आखिरी दिनों का वर्णन समेटे महापरिनिर्वाण सुत्त में लिखा है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों को चार जगहों पर जरूर जाना चाहिए। पहला लुंबिनी नेपाल, जहां बुद्ध का जन्म हुआ। दूसरा बिहार में बोधगया, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। तीसरा सारनाथ, जहां उन्होंने पहला उपदेश दिया और चौथा व अंतिम कुशीनगर जहां भगवान बुद्ध महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। यह स्थल सिर्फ बौद्ध अनुयायियों को ही नही, बल्कि विभिन्न धर्म, संप्रदाय व जाति के लोगों के लिए पूजनीय व दर्शनीय सैकड़ों सालों से बना हुआ है।
ये भारतीय अतिविशिष्ट लोग कर चुके हैं दौरा
कुशीनगर थाई मंदिर में देश के अतिविशिष्ट लोगों का भी दौरा हो चुका है। उनमें पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ,पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, यूपी के प्रमुख सचिव राजीव कुमार के अलावा विशिष्ट लोगों का निरंतर आगमन होता रहता है। उनमें सांसद, विधायक, नौकरशाह, सामाजिक कार्यकर्ता सहित अन्य क्षेत्रों से जुड़े आगंतुक आते रहे हैं।
चैत्य के दीवारों पर बनारसी साड़ी के हैं मॉडल
वाट थाई मंदिर के जनसंपर्क अधिकारी अंबिकेश त्रिपाठी ने बताया कि स्वर्ण आभायुक्त चैत्य में बनारसी साड़ी की डिजाइन उकेरित किए गए हैं। इसके माध्यम से भारत-थाईलैंड की परंपरा,रीति-रिवाज व संस्कृति को जोड़ने का अनोखा तरीका अपनाया गया है।
सिहोर सहित तमाम प्रजाति के पेड़, फूल, झाड़ी बढ़ा रहे सुंदरता
थाई मंदिर को हरित रखने के लिए जंगली,मेडिसनल, विभिन्न प्रजातियों के फूल, झाड़ियां तैयार की गई हैं। गेंदा, चमेली, गुलाब, कन्नेर के अलावा पाकड़, पीपल, बरगद, सिहोर, जलेबी आदि प्रजाति के पेड़ पौधे रोपित कर हरियाली फैलाईं गई है। पूरा परिसर हरा-भरा है। प्रवेश करने पर हर किसी को मंदिर मन मोह लेता है।
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