Justice BV Nagarathna: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने राज्यपालों के अतिरेक और नोटबंदी जैसे मुद्दों पर खुलकर बात की है। NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में आयोजित कोर्ट्स एंड कंस्टीट्यूशन कांफ्रेंस में पंजाब और महाराष्ट्र के मामलों का जिक्र करते हुए राज्यपालों जैसे संवैधानिक पदों को लेकर चिंता जताई।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पंजाब के राज्यपाल का जिक्र करते हुए देश में राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों की गरिमा को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि निर्वाचित विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपालों द्वारा अनिश्चितकाल तक के लिए रोके रखने की घटनाएं एक गंभीर मसला है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में भी फ्लोर टेस्ट का आदेश देकर राज्यपाल ने संवैधानिक ढांचे के साथ छेड़छाड़ की क्योंकि उनके पास फ्लोर टेस्ट का आदेश देने के लिए पर्याप्त कारण नहीं थे। उन्होंने इस मामले को महाराष्ट्र राज्यपाल का अतिरेक करार दिया।
जस्टिस नागरत्ना शनिवार को NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ कैंपस आयोजित न्यायालयों और संविधान सम्मेलन के पांचवें संस्करण के उद्घाटन सत्र में मौजूद थी। इस सम्मेलन में देश के विभिन्न न्यायालयों के न्यायाधीश, मुख्य न्यायाधीश सहित पड़ोसी देशों के न्यायालयों के भी कई न्यायाधीश मौजूद रहे।
राज्यपाल को कोई काम करने या न करने के लिए कहना शर्मनाक
महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के खिलाफ फ्लोर टेस्ट पर राज्यपाल के अतिरेक की बात कहते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को संवैधानिक अदालतों के समक्ष विचार के लिए लाना संविधान के तहत एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है। मुझे लगता है कि मुझे अपील करनी चाहिए कि राज्यपाल का पद एक गंभीर संवैधानिक पद है। राज्यपालों को संविधान के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन संविधान के अनुसार करना चाहिए ताकि इस तरह की मुकदमेबाजी से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि राज्यपालों को कोई काम करने या न करने के लिए कहा जाना काफी शर्मनाक है। इसलिए अब समय आ गया है जब उन्हें संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा जाएगा।
दरअसल, जस्टिस नागरत्ना की यह टिप्पणी भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच द्वारा तमिलनाडु मामले के बाद आई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के आचरण को लेकर गंभीर चिंता जताते हुए उनके कार्य प्रणाली पर सवाल उठाए थे। राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य सरकार के डीएमके नेता के.पोनमुडी को मंत्रिमंडल में शामिल करने के अनुरोध को अवैध रूप से खारिज कर दिया था।
नोटबंदी को लेकर भी तीखी आलोचना
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी मामले में भी अपनी असहमति पर बातचीत की। उन्होंने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ असहमत होना पड़ा क्योंकि 2016 में जब निर्णय की घोषणा की गई थी तो पांच सौ और एक हजार के नोट प्रचलन में कुल करेंसी का 86 प्रतिशत था। लेकिन उनमें से प्रतिबंध लगने के बाद 98 प्रतिशत वापस आ गए।
उन्होंने कहा कि यह नोटबंदी पैसे को सफेद धन में बदलने का एक तरीका था क्योंकि सबसे पहले 86 प्रतिशत करेंसी को डिमोनेटाइज किया गया और 98 प्रतिशत करेंसी वापस आ गई। यानी काला सफेद हो गया। सभी बेहिसाब धन बैंक में वापस चले गए। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि इसलिए मैंने सोचा कि यह तो बेहिसाब कैश का हिसाब-किताब करने का एक अच्छा तरीका है। काला धन या अवैध धन, खाता-बही में आ गया, उधर आम आदमी परेशान हुआ। इसलिए मुझे इसको लेकर असहमति जतानी पड़ी।
अक्टूबर 2016 में भारत सरकार ने कथित तौर पर काले धन के खिलाफ एक झटका देते हुए 500 रुपये और 1,000 रुपये के बैंक नोटों को डिमोनेटाइज कर दिया था। पीएम मोदी ने इस नोटबंदी का ऐलान कर देश को चौका दिया था।
कौन-कौन रहे इस सम्मेलन में?
सम्मेलन में नेपाल और पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, जस्टिस सपना प्रधान मल्ला और जस्टिस सैयद मंसूर अली शाह ने भी अपने विचार रखे। इसके अलावा तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराध और एनएएलएसएआर के चांसलर न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने भी सम्मेलन में बात किया।
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