November 14, 2024
दुष्यंत चौटाला के लिए फिर 2018 जैसी स्थिति; आगे खाई, पीछे कुआं...क्या पार कर पाएंगे अग्निपरीक्षा?

दुष्यंत चौटाला के लिए फिर 2018 जैसी स्थिति; आगे खाई, पीछे कुआं…क्या पार कर पाएंगे अग्निपरीक्षा?​

Haryana Assembly Election 2024 : दुष्यंत चौटाला से हरियाणा के लोगों को बहुत उम्मीदें थीं. कुछ को अब भी हैं तो कुछ की टूट गईं. अब देखना ये है कि क्या वो एक बार फिर इन टूटे दिलों को जोड़ पाएंगे...पढ़ें ये रिपोर्ट...

Haryana Assembly Election 2024 : दुष्यंत चौटाला से हरियाणा के लोगों को बहुत उम्मीदें थीं. कुछ को अब भी हैं तो कुछ की टूट गईं. अब देखना ये है कि क्या वो एक बार फिर इन टूटे दिलों को जोड़ पाएंगे…पढ़ें ये रिपोर्ट…

Haryana Polls 2024 : दुष्यंत चौटाला को राजनीति विरासत में मिली है. परदादा देवीलाल तो देश के उपप्रधानमंत्री से लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री तक रहे. इसके बाद दादा ओमप्रकाश चौटाला भी हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे और खुद दुष्यंत हाल-फिलहाल तक हरियाणा के उपमुख्यमंत्री रहे. मगर दुष्यंत के लिए हरियाणा का उपमुख्यमंत्री न आसान रहा और न ही आगे की राजनीति आसान लग रही है. भाजपा से अलग होने के बाद से दुष्यंत चौटाला की पार्टी के छह विधायक पाला बदल चुके हैं. कुल 10 विधायकों वाली उनकी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जजपा) से छह विधायकों के चले जाने के बाद पार्टी के वजूद पर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे 2018 में हुए थे.

फर्श से अर्श पर पहुंचे थे

सात अक्टूबर 2018 को गोहाना में चौधरी देवी लाल के 105वें जयंती समारोह के इनेलो-बसपा की संयुक्त रैली के बाद ओम प्रकाश चौटाला ने अपने बेटे अजय चौटाला, पौत्र दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को इंडियन नेशनल लोकदल से निकाल दिया. तब लगा कि दुष्यंत चौटाला की राजनीति खत्म हो गई. उनके छोटे भाई दिग्विजय चौटाला तो खैर उनकी परछाई ही थे. अजय चौटाला शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोप में जेल में थे. तब दुष्यंत ने महज चंद दिनों में ही 9 दिसंबर 2018 में नई पार्टी जननायक जनता पार्टी खड़ी कर दी. फिर भी लोगों को लगा कि भाजपा, कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के रहते दुष्यंत के लिए अब बहुत कुछ करने को नहीं रह गया है. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों के दावों को धत्ता बताते हुए 2019 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत ने भाजपा, कांग्रेस और इनेलो की टिकट से वंचित नेताओं को अपनी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ाया और 10 सीटों पर जीत दर्ज कर ली. भाजपा भी बहुमत से थोड़ी दूर रही और गठबंधन में सरकार बनी. एक साल से भी कम समय में दुष्यंत फर्श से अर्श पर पहुंच गए.

लोकसभा चुनाव से बढ़ी मुश्किलें

हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 तक आते-आते फिर चुनौतियां दुष्यंत के दरवाजे को खटखटाने लगीं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा और जजपा का गठबंधन टूट गया. जजपा हिसार और भिवानी सीट भाजपा से लोकसभा चुनाव में मांग रही थी, लेकिन भाजपा सिर्फ रोहतक सीट दे रही थी. दुष्यंत ने गठबंधन तोड़ने का निर्णय लिया और पद छोड़ दिया. इसके बाद उनके छह विधायकों ने पाला बदल लिया. अब सिर्फ वो खुद, मां नैना चौटाला, अमरजीत सिंह ढांडा और रामकुमार गौतम ही विधायक के तौर पर बचे हैं. इनमें भी रामकुमार गौतम और अमरजीत ढांडा के बारे में दावे हैं कि वो कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं. ऐसे में सिर्फ मां-बेटा ही विधायक के तौर पर पार्टी में रह जाएंगे.

वोट प्रतिशत भी घट गया

इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां जजपा ने 14.9 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे महज 0.87 प्रतिशत मिले. इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटा है. मतों के इस गिरावट के पीछे सबसे बड़ा कारण किसान आंदोलन को बताया जा रहा है. भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में रहते हुए दुष्यंत चौटाला ने किसान आंदोलन के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया. साथ ही गठबंधन भी नहीं तोड़ा. ऐसे में भाजपा से नाराज वोटर दुष्यंत चौटाला से भी नाराज है. नाराजगी की खास वजह यह है कि इस आंदोलन में जाटों की भागीदारी ज्यादा थी और यही जजपा का वोट बैंक था. इसी ने इनेलो का साथ छोड़कर जजपा को वोट दिया था.

कैसे समझाएंगे वोटरों को?

अब दुष्यंत के सामने दिक्कत यह है कि वे किस तरह अपने वोटर्स को समझाएंगे? किसान आंदोलन के समय साथ न देने की क्या वजह बताएंगे? शायद यही कारण है कि जजपा ने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है. दुष्यंत चौटाला ने इसका ऐलान करते हुए कहा कि इस बार हरियाणा में हम संयुक्त रूप से 90 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. 70 सीट पर जेजेपी चुनाव लड़ने जा रही है और 20 सीटों पर आजाद समाज पार्टी चुनाव लड़ रही है. इसके जरिए दुष्यंत की कोशिश है कि जाट वोटर्स के साथ कुछ अन्य जातियों के वोट भी खींचे जाएं. साथ ही वो कांग्रेस और भाजपा में टिकट बंटवारे के बाद बगावत का भी इंतजार कर रहे हैं. इन बागियों को टिकट देकर दुष्यंत अपनी खोई जमीन हासिल करने की योजना बना रहे हैं. हालांकि, यह तो हरियाणा की जनता तय करेगी कि वो दुष्यंत के लिए क्या फैसला तय करती है…

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