कोर्ट ने पाया कि सिविल कोर्ट के फैसले में न तो वादी के दावे और न ही प्रतिवादों को ठीक से संबोधित किया गया जिससे निष्कर्ष निरर्थक प्रतीत होते है. कोर्ट ने कहा कि फैसले के अनुसार प्रस्तुत तर्कों पर उचित विचार किए बिना प्रतिवादी के मुकदमे को खारिज कर दिया गया. (दीपक गंभीर की रिपोर्ट)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नीचे की अदालतों के कामकाज को लेकर दो जजों को नसीहत देते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे लिखे फ़ैसले सिर्फ़ औपचारिकता निभाने के लिए किए गये हैं. नाराज़ हाईकोर्ट ने जजों को ट्रेनिंग लेने तक की सलाह दे डाली. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मैनपुरी से जुड़े एक मामले में जूनियर डिवीजन एडिशनल सिविल जज और फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज द्वारा दिए गए फैसलों पर हैरानी जताई है.
कोर्ट ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि न तो वाद का मामला और न ही प्रति-दावे में निहित मामले का खुलासा ट्रायल कोर्ट के फैसले में किया गया है. निकाला गया निष्कर्ष भी कोई मतलब नहीं देता है. फैसले के ऑपरेटिव हिस्से के संबंध में भी यही स्थिति है जिसमें लिखा है कि “प्रतिवादी का मुकदमा खारिज किया जाता है. फाइल को रिकॉर्ड रूम में ले जाया जाए.” यह टिप्पणी जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र ने शैलेंद्र उर्फ शंकर वर्मा व अन्य द्वारा विवादित संपत्ति मामले के संबंध में हाईकोर्ट में दाखिल सेकंड अपील पर सुनवाई के दौरान की है.
हाईकोर्ट ने सेकंड अपील के सिविल मुकदमे में शामिल मैनपुरी सिविल कोर्ट के फैसलों की समीक्षा की. हाईकोर्ट ने जूनियर डिवीजन एडिशनल सिविल जज द्वारा केस में दाखिल प्रतिवादों को ठीक ढंग से समझने के तरीके के बारे में स्पष्ट रूप से समझ की कमी देखी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह हैरान करने वाला है कि बचाव पक्ष ने दो गवाह पेश किए जिनकी गवाही पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया गया जो परीक्षण प्रक्रियाओं में संभावित चूक का संकेत देता है.
कोर्ट ने कहा कि हैरानी की बात है कि एडिशनल जिला जज, फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट, मैनपुरी भी कार्यवाही को समझने में विफल रहे है. उनके फैसले के पैराग्राफ नंबर 4 में उल्लेख किया गया है कि प्रतिवादियों के प्रति-दावे को ट्रायल कोर्ट द्वारा स्थापित किया गया है जबकि इसे खारिज कर दिया गया था. कोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों अदालतें जिसमें सिविल कोर्ट और फर्स्ट अपीलीय कोर्ट अपने दायित्व का निर्वहन करने में पूरी तरह विफल रही है और लिखे फैसले को महज औपचारिकता के रूप में माना है. कोर्ट ने कहा कि यह कोर्ट अत्यंत कष्ट के साथ इस बात पर असंतोष व्यक्त करती है कि जिस प्रकार वाद की कार्यवाही के साथ-साथ प्रतिदावे का निपटारा किया गया है तथा जिस प्रकार सिविल अपील का फैसला किया गया है.
कोर्ट ने पाया कि सिविल कोर्ट के फैसले में न तो वादी के दावे और न ही प्रतिवादों को ठीक से संबोधित किया गया जिससे निष्कर्ष निरर्थक प्रतीत होते है. कोर्ट ने कहा कि फैसले के अनुसार प्रस्तुत तर्कों पर उचित विचार किए बिना प्रतिवादी के मुकदमे को खारिज कर दिया गया.
हाईकोर्ट ने कहा कि मैनपुरी कोर्ट के कमरा नंबर दो के जिला जज का प्रदर्शन भी उतना ही आश्चर्यजनक था जो कार्यवाही को सही ढंग से समझने में विफल रहे. हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसा लगता है कि दोनों अदालतें सिविल कोर्ट के रूप में अपने कर्तव्यों को संपादित करने में विफल रही है. बिना उचित कारण केवल निर्णय लिखने की औपचारिकताएं पूरी कर रही है. कोर्ट ने कहा कि यद्यपि यह एक सही मामला है जहां कुछ अवलोकन किया जा सकता है जिसके कारण उपरोक्त दोनों न्यायिक अधिकारियों को ज्यूडिशियल ट्रेनिंग के लिए भेजा जा सकता है लेकिन इस स्तर पर संयम बरता जा रहा है लेकिन मैनपुरी के जिला जज को सूचित किया जा रहा है ताकि वह इस बात पर गौर कर सकें कि उनके प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले न्यायालय किस प्रकार वादियों के नागरिक अधिकारों से संबंधित मुकदमों से निपट रहे हैं.
हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए आगे की सुनवाई के लिए दूसरी अपील स्वीकार कर ली है और विरोधियों को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने रजिस्ट्रार अनुपालन को निर्देश दिया कि इस आदेश की एक प्रति, विवादित निर्णयों की फोटोस्टेट प्रतियों के साथ आवश्यक सूचना एवं अनुपालन हेतु जिला जज मैनपुरी को भेजें. कोर्ट ने इस मामले को दिसंबर, 2024 में सूचीबद्ध करने का आदेश भी दिया है.
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