July 6, 2024
Vice chancellor

शिक्षा संस्थानों के कैंपस में प्रवेश की विसंगतियों को दूर कर क्या रोकी जा सकती है आराजकता

विश्वविद्यालयों के अराजक होते माहौल में कैंपस में इंट्री प्रॉसेस का क्या दोष है। इन विसंगतियों से कैसे छुटकारा पाया जाए इस पर प्रकाश डाल रहे हैं पूर्व कुलपति प्रो.अशोक कुमार। प्रो.अशोक कुमार, यूपी के कई राज्य विश्विविद्यालयों में कुलपति रह चुके हैं।

अशोक कुमार
एक अच्छे रंगमंच के कलाकार की पहचान उसके मंच पर प्रवेश और उसके अभिनय के बाद रंगमंच से उसकी वापसी होती है। जब कोई व्यक्ति कार को चलाना सीखता है तब उसको चलती हुई कार को किस समय और कैसे रोका जाए सीखने की सबसे बड़ी आवश्यकता होती है। हमारे शरीर में कोशिकाओं की वृद्धि और उसका विभाजन एक निश्चित व्यवस्था से होता है और जब भी एक अंग का निर्माण पूर्ण हो जाता है तब कोशिका का विभाजन सैद्धांतिक रूप से रुक जाता है। लेकिन यदि कोशिका का विभाजन न रुके तब कोशिका एक कैंसर का रूप ले सकती है। इसी प्रकार, किसी भी संस्थान की गुणवत्ता उस के प्रांगण में प्रवेश की प्रक्रिया पर निर्भर करती है।

ऊपर दिए हुए उदाहरण से दो संदर्भ निकलते हैं- पहला: संस्थान के प्रांगण में किस को प्रवेश दिया जाए, दूसरा: किस प्रकार से संस्थान में अवांछित तत्वों को रोका जाए।
आप सभी ने यह देखा होगा कि शिक्षा के संस्थानों में विशेष तौर से प्राइमरी पाठशाला, स्कूल, कॉलेज के प्रांगण में प्रवेश के लिए एक महत्वपूर्ण योजना होती है। इन संस्थानों में केवल विद्यार्थी, स्कूल कॉलेज का कर्मचारी या शिक्षक या अधिकारी को ही प्रवेश मिलता है। लेकिन ऐसा क्या हो जाता है जब भी यह विद्यार्थी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में प्रवेश करता है तब इन राज्य सरकार के महाविद्यालयों / विश्वविद्यालयों में जहां एक स्वतंत्र माहौल होता है और कोई भी व्यक्ति विश्वविद्यालय में या महाविद्यालयों में प्रवेश ले सकता है।

कई कैंपस ऐसे उदाहरण जहां बाहरी एंट्री है बैन

कभी आपने सोचा है क्या इस तरह से किसी शिक्षण संस्थान के प्रांगण में प्रवेश लेना चाहिए। मेरे अपने अनुभव के अनुसार वर्तमान में भी ऐसे बहुत से संस्थान हैं जिसमें प्रांगण में प्रवेश करना आसान नहीं होता। क्या यह प्रणाली विश्वविद्यालयों में लागू नहीं की जा सकती। मैं इसको इस बात को इस प्रकार से कहना चाहता हूं कि शिक्षा संस्थान मे केवल विद्यार्थी, कर्मचारी, शिक्षक और अधिकारी को ही प्रवेश मिलना चाहिए। यदि किसी अन्य व्यक्ति को विश्वविद्यालय में कोई कार्य है तो वह विश्वविद्यालय में अनुमति लेकर प्रवेश कर सकता है। इस प्रक्रिया के पीछे मेरी जो सोच है वह यह कि विश्वविद्यालय में शिक्षण संस्थानों में एक अच्छा स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण बनाया जाना चाहिए।

ऐसा देखा गया है कि इन शिक्षा संस्थानों में अवांछित व्यक्तियों के कारण विश्वविद्यालय में एक अशांति का एक असुरक्षित वातावरण बन जाता है ।
वर्तमान में हम शिक्षण संस्थानों में सुरक्षा के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक नहीं है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है जिस पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए। वर्तमान में अभिभावक एवं विशेष तौर से छात्राओं की सुरक्षा की दृष्टि से काफी संवेदनशील हैं। अभिभावक चाहते हैं कि अपने बच्चों को उन्हीं शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश कराएं जहां पर की सुरक्षा की व्यवस्था बहुत अच्छी हो।

एडी बिल्डिंग या अन्य ऑफिस कैंपस से बाहर हो तो बेहतर

इस प्रकार सुरक्षा की दृष्टि से यह आवश्यक है कि विश्वविद्यालय और महाविद्यालय से केवल संबंधित व्यक्ति को ही प्रवेश मिले। आप कह सकते हैं कि विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के अतिरिक्त बहुत से व्यक्तियों को विश्वविद्यालय से संबंधित कार्यों के कारण विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारियों से मिलने के लिए जाना पड़ता है इसलिए विश्वविद्यालय में प्रांगण प्रवेश की प्रक्रिया ऐसी बनानी चाहिए जो कि सुविधाजनक हो और किसी भी व्यक्ति को जिसको विश्वविद्यालय से कोई कार्य है कोई बाधा ना आए।

इस संबंध में मेरा एक सुझाव है कि विश्वविद्यालय में अकादमिक और प्रशासनिक भवन जहां तक संभव हो अलग प्रांगण में होनी चाहिए। इसलिए जिस किसी व्यक्ति को विश्वविद्यालय में कार्य है वह केवल प्रशासनिक भवन में जाकर अपना कार्य पूरा कर सकता है और इस प्रकार से उसे अकादमिक भवन में जाने की आवश्यकता नहीं होगी और विश्वविद्यालय में एक अच्छा शैक्षणिक वातावरण बनेगा ।

आखिर क्यों आते हैं कैंपस में अवांछित तत्व

प्रश्न यह उठता है कि विश्वविद्यालय में अवांछित तत्व क्यों आते हैं और किस लिए आते हैं ? मेरे अनुभव के अनुसार विश्वविद्यालय कैंपस में व्यक्तिगत, राजनीतिक, सामाजिक, आपराधिक या छेड़छाड़ के नियति से आते हैं। यदि हम इन सभी कारणों पर एक नियंत्रण रख लेंगे तो विश्वविद्यालय में शिक्षा का उच्चतम वातावरण मिलेगा।

प्रश्न ये उठता है कि विश्वविद्यालय को अवांछित तत्व विहीन प्रांगण कैसे बनाया जाए? मैं समझता हूं कि विश्वविद्यालय प्रशासन का जब तक विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी और विशेष तौर से विद्यार्थी नहीं देंगे तब तक ऐसा माहौल नहीं बनाया जा सकता। इसलिए मेरा अनुरोध उन सभी विश्वविद्यालय के छात्रों, कर्मचारियों , अधिकारियों और शिक्षकों से है कि वे आगे आएं और विश्वविद्यालय को एक स्वस्थ शैक्षिक वातावरण बनाएं।

सबके सहयोग से ही यह संभव

इस अभियान में सबसे महत्वपूर्ण योगदान विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र और छात्राओं का है। यदि वे मानस बना लें के उनके शिक्षा संस्थान में कोई भी बाहरी अवांछनीय व्यक्ति नहीं आएगा या नहीं आना चाहिए तब मेरा पूरा विश्वास है कि ऐसा संभव हो सकता है। इसमें जो सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कारण होगा वह होगा राजनीतिक दखल। हमें राजनीतिक दखल को रोकना है और यह केवल विद्यार्थियों के द्वारा ही संभव है।

प्रयास हो तो सुधरेगा माहौल

विशेष तौर से विश्वविद्यालय में छात्र संघ का चुनाव हो तभी अपेक्षा की जा सकती है कि विभिन्न बाहरी तत्वों का प्रवेश विश्वविद्यालय में अवश्य होगा। इस चुनौती को सबसे अच्छा सामना और समाधान विश्वविद्यालय के विद्यार्थी ही कर सकते है। मैंने एक प्रयास एक विश्वविद्यालय में किया था लेकिन इस प्रयास के प्रारंभ में ही कुछ राजनीतिक लोगों ने अवांछित तत्वों से मिलकर राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक शिकायत दर्ज की। मैं भी अपने निश्चय पर दृढ़ था और फिर विश्वविद्यालय के छात्र– छात्रों, कर्मचारियों, अधिकारियों और शिक्षकों के सहयोग से मैं इस प्रयास में काफी सफल रहा और विश्वविद्यालय में एक शांतिपूर्ण शैक्षणिक वातावरण बना। लगभग 10 वर्षों बाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव का शांतिपूर्वक भी हुआ।

वर्तमान में अभी भी कुछ व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों में जैसे की आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं कई निजी संस्थानों के प्रांगण में प्रवेश की एक व्यवस्था है। मुझे आशा और विश्वास है यदि इस प्रकार की व्यवस्था सभी शैक्षणिक संस्थानों में लागू हो जाए, तो मैं समझता हूं की शैक्षणिक संस्थानों में विशेष तौर से निजी और राज्य महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में एक अच्छा शैक्षणिक वातावरण बनेगा जिसके फलस्वरूप हम अपने विद्यार्थियों को एक कुशल, ज्ञानी, विषय में पारंगत और एक अच्छा राष्ट्रभक्त मानव बनाएंगे।

नोट: ये लेख, पूर्व कुलपति प्रो.अशोक कुमार के हैं। प्रो.कुमार, यूपी के कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के साथ साथ राजस्थान के भी कई विवि के कुलपति रह चुके हैं।

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