1 वर्ष के गहन अध्ययन के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ की उस संस्थान ने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किए। उस संस्थान में प्रशासन, शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी और विद्यार्थियों के बीच एक बहुत ही सौहार्दपूर्ण, प्रेम का वातावरण रहा। किसी भी शिक्षक ने प्रशासन के विरुद्ध कोई भी प्रदर्शन नहीं किया, सत्याग्रह ने किया और प्रशासन के कमियों को प्रशासन के अनुचित कार्यशैली का कभी भी कोई विरोध नहीं किया। प्रशासन की अनुचित कार्रवाई को केवल उच्च स्तर पर जागरूक किया लेकिन उच्च स्तर का प्रशासन ने भी बहुत ही संयम से काम लिया और शांति बनाए रखा।
संस्थान में प्रशासन, अधिकारीगण, शिक्षक गण और कर्मचारी गण सभी प्रातः 10:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक कार्यरत रहते थे प्रशासन ने सभी के लिए प्रवेश द्वार खुला रखा था। प्रशासन ने अपने लिए कोई भी व्यक्तिगत प्रवेश द्वार नहीं बनाया था। प्रशासन हमेशा सभी की समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर रहता था। किसी को भी प्रशासन से अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्रतीक्षा नहीं करना पड़ती थी। प्रशासन उन सभी के समस्याओं के प्रति बहुत जागरूक था और हमेशा उनको आश्वासन देता रहता था।
यह भी जानिए आप…
छात्रों ने भी अपनी मांगों को प्रशासन के सामने जब भी रखा, प्रशासन ने उन्हें हमेशा आश्वासन दिया। आज भी छात्र प्रशासन के आश्वासन से बहुत ही प्रभावित है। छात्रों ने कभी भी संस्थान के मुखिया के निवास पर रात्रि में कपड़े उतार कर कोई प्रदर्शन नहीं किया। छात्रों ने छात्र संघ चुनाव की मांग रखी। प्रशासन ने पहले उनकी धैर्य की परीक्षा ली जब वह धैर्य की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए तब प्रशासन ने उनको उचित आश्वासन दिया। वह आश्वासन आज भी छात्रों के बीच है।
शोध कार्य में प्रशासन ने विशेष रुचि दिखाई। शोध के लिए प्रवेश परीक्षा एवं अन्य परीक्षाएं बिल्कुल निर्धारित समय पर हुई। यदि कभी शोध छात्रों ने अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन किया तब प्रशासन ने उनके विरुद्ध कोई भी FIR नहीं दर्ज करी। प्रशासन ने सभी छात्रों से संपर्क बनाए रखा। उन सभी का एक E mail आईडी भी बनाया, उसका एक पासवर्ड भी बनाया लेकिन विद्यार्थियों के हित का ध्यान रखते हुए प्रशासन ने उसके पासवर्ड को विद्यार्थियों को नहीं बताया ताकि विद्यार्थियों का समय नष्ट ना हो और उनका ध्यान केवल अध्ययन में लगा रहे। विद्यार्थी बहुत ही संतुष्ट हैं कि उनको प्रशासन ने परेशान नहीं किया।
शिक्षकों और परीक्षकों ने विद्यार्थियों का परीक्षा में बहुत ही सहायता पूर्ण व्यवहार किया। शिक्षकों ने परीक्षा का पेपर गूगल की मदद से पूरी इमानदारी से डाउनलोड किया और उसको उसी रूप में परीक्षा के प्रश्न पत्र के रूप में उतार दिया जिससे छात्रों को परीक्षा में प्रश्न पत्रों के सवालों का जवाब आसानी से मिल जाए। संस्था से संबंधित सभी महाविद्यालयों की समस्याओं की समय-समय पर सुनवाई होती थी और उनकी हर समस्या का समाधान उनको आश्वासन देकर दिया जाता था।ऐसा भी होता रहा..
प्रशासन और शिक्षकों के बीच बहुत अच्छा सौहार्दपूर्ण वातावरण रहा कभी भी किसी भी अकादमिक, परीक्षा समिति , कार्य परिषद की बैठक में जब भी कभी किसी ने कोई प्रश्न किया , प्रशासन ने उसको बहुत ही सराहा। बहुत ही सरल मित्रतापूर्ण भाव से उत्तर दिया। यदि कोई शिक्षक समय पर नहीं आया या बैठक खत्म होने से पहले भवन छोड़कर चला गया प्रशासन ने उसको कोई भी नोटिस नहीं दी। विभागाध्यक्ष को भी कोई नोटिस नहीं दी जब कभी किसी शिक्षक ने अकादमी कार्य से या व्यक्तिगत कार्य से अवकाश के लिए अनुमति मांगी प्रशासन ने उसको तुरंत स्वीकृत किया।
शिक्षक, अधिकारी के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार रहा। शिक्षक इसी बात पर प्रसन्न हो जाया करते थे की कागज़ पर ही सही समय समय पर उनको शोध कार्य के लिए आर्थिक सहायता दी जाती थी। इस आर्थिक सहायता का अभी भी इंतेजार है। उसी प्रकार से अधिकारी गणों के साथ कर्मचारियों के साथ प्रशासन का व्यवहार बहुत अच्छा रहा। संस्था से संबंधित सभी महाविद्यालयों की समस्याओं की समय-समय पर सुनवाई होती थी और उनकी हर समस्या का समाधान उनको आश्वासन देकर दिया जाता था।
फिर आगे भी बताता रहूंगा…
प्रशासन विश्वविद्यालय की भी समस्या के बारे में विशेष तौर पर वित्तीय समस्या के बारे में भी काफी चिंतित था और ध्यान रखता था। यदि एक कमरे की सफेदी होनी हो अर्थात whitewash होना हो तब संपूर्ण कमरे के सफेदी के लिए टेंडर नहीं किया जाता था बल्कि प्रत्येक कमरे की एक-एक दीवाल का अलग-अलग कोटेशन मांगा जाता था जिससे कि टेंडर के प्रकाशित करने के कारण विश्वविद्यालय को आर्थिक नुकसान न हो।
इन सब से अलग प्रशासन पशुओं के प्रति भी बहुत संवेदनशील था और संस्था में पाए जाने वाले या संस्था में कार्यरत सदस्यों के घर में यदि कोई पशु होता था तब उसके लिए अलग से संविदा पर सहायक कर्मचारी नियुक्त होते थे। संस्था को बनाने के लिए छात्रों को नित्य नए विषय सरकार की अनुमति लिए बिना खोल दिए जाते थे। सभी विद्यार्थी, अभिभावक गण ऐसी प्रक्रिया से बहुत प्रभावित थे। विद्यार्थी गण प्रवेश की तिथि ,परीक्षा की तिथि और परीक्षा के परिणाम के तिथि के बारे में कभी चिंतित नहीं होते थे। कभी-कभी तो प्रवेश के साथ ही परीक्षा भी दे दिया करते थे। अभी उस संस्थान के बारे में मैंने इतना ही शोध कार्य किया है। भविष्य में भी उस संस्थान के बारे में शोध कार्य से आपको अवगत हूं कराता रहूंगा। मै आशा करता हूँ की आप एक गुणवततापूर्ण संस्थान कैसे बनता है समझ गए होंगे।
Note:NAAC grading के अनुभव के आधार पर एक काल्पनिक संस्था का विवरण किया गया है। यह काल्पनिक संस्था का विवरण यदि किसी संस्था से मिलता है तो उसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। प्रो.अशोक कुमार, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय समेत कई यूनिवर्सिटीज के कुलपति रह चुके हैं। उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर वह लगातार लिख रहे हैं।