September 12, 2024
Paris Seine Vs Varuna Varanasi

पेरिस की सिन नदी 5 साल में साफ हो सकती है तो गंगा, यमुना, वरुणा और असि क्यों नहीं?

वरुणा नदी का हाल तो और भी बुरा है। ये नदी इस कदर प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी कोई स्पर्श तक नहीं कर सकता।

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी
दुनिया का सबसे बड़ा खेल महाकुभ ओलंपिक इस बार फ्रांस की राजधानी पेरिस में हो रहा है। लिहाजा दुनिया भर में पेरिस चर्चा में है। वैसे भी पेरिस और हिंदुस्तान का पुराना नाता है। भारत में गैर कांग्रेसी लगातार देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर फब्ती कसते चले आ रहे हैं कि, पंडित नेहरू का कपड़ा धुलने के लिए पेरिस जाता था। अव्वल तो ऐसा है नहीं, अगर कुछ देर के लिए मान भी लिया जाए तो ये एक तरह से पेरिस की प्रशस्ति होगी। कम से कम पेरिस के लोगों को क्लीनिंग का तजुर्बा तो है।

वो कोई लक्ष्य निर्धारित करते हैं तो उसे नियत समय में पूरा करने का जज्बा भी रखते हैं। तभी तो पेरिस की मेयर एनी हिडाल्गो ने पांच साल पहले ये तय किया और सार्वजनिक मंच से घोषणा की थी कि वो ओलंपिक के उद्घाटन समारोह से पूर्व सिन नदी को इस कदर स्वच्छ कर देंगी कि उसमें ओलंपिक खेलों की तैराकी प्रतियोगिता हो सके। और उन्होंने वह कर दिखाया।

जब मेयर ने नदी में लगाई छलांग

महीनों के लंबे इंतजार के पश्चात पेरिस की मेयर ऐनी हिडाल्गो ने जुलाई के पहले पखवारे में यानी ओलंपिक उद्घाटन समारोह से पूर्व लंबी अवधि से प्रदूषित सिन (Scine) नदी में डुबकी लगा कर न केवल अपना वायदा पूरा किया बल्कि यह साबित किया कि नदी ओलंपिक 2024 के दौरान खुली तैराकी प्रतियोगिताओं की मेजबानी करने के लिए पर्याप्त स्वच्छ है। तब ओलंपिक का उद्घाटन समारोह नौ दिन शेष था।

नदी जल को बताया स्वच्छ और सुंदर

वेटसूट और गॉगल्स पहने हिडाल्गो ने भव्य दिखने वाले सिटी हॉल, अपने कार्यालय और नोट्रे डेम कैथेड्रल के पास नदी में छलांग लगाई। पेरिस 2024 के प्रमुख टोनी एस्टांगुएट और पेरिस क्षेत्र के शीर्ष सरकारी अधिकारी मार्क गिलियूम स्थानीय तैराकी क्लबों के तैराकों के साथ उनके साथ शामिल हुए। हिडाल्गो ने पानी से कहा, “सीन नदी बहुत ही सुंदर है।” बाहर आने के बाद, वह अपनी बात जारी रखते हुए कहती है, “पानी बहुत, बहुत बढ़िया है। थोड़ा ठंडा है, लेकिन इतना भी बुरा नहीं है।”

पेरिस में एक प्रदूषित नदी साफ हो सकता है तो भारत में क्यों नहीं?

सवाल उठता है कि पेरिस की मेयर पेरिस की मेयर एनी हिडाल्गो पांच साल पुराना अपना वायदा पूरा कर सकती हैं। एक नदी को तैरने काबिल बना सकती हैं, जिसमें दुनिया भर के तैराक निश्चिंत हो कर तैराकी स्पर्धा में भाग ले सकते हैं, तो भारत के राजनेता ये कमाल क्यों नहीं कर सकते। वो मां गंगा, यमुना, वाराणसी की पहचान वरुणा और असि नदी को स्वच्छ क्यों नहीं कर सकते। यहां तो गंगा की स्वच्छता के लिए आधी सदी से प्रयास किया जा रहा है। पहले पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न राजीव गांधी ने गंगा कार्य योजना के नाम से शुरूआत की।

फिर 2014 में सत्ता पर काबिज हुए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नमामि गंगे नाम से गंगा की स्वच्छता का बीड़ा उठाया। लेकिन हाल सुधरने की बजाय और बिगड़ता ही गया। आपका अपना ई-न्यूज पेपर भी इस सच्चाई को अनेक बार प्रकाशित कर चुका है। आलम ये कि गंगा का जल अब आचमन लायक भी नहीं रहा। प्लास्टिक कचरा मां गंगा को खाए जा रहा है तो, इसी नदी के जल से तमाम जानलेवा बीमारियां(कैंसर, पार्किंसन्स, दिमागी बीमारियां, लकवा, मिर्गी जैसी) होने लगी हैं।

गर्मी के मौसम में वाराणसी में गंगा का जल स्तर इतना नीचे चला जाता है कि इसके वजूद को बचाने के लिए नहरों से पानी छोड़ने की मांग होने लगती है। रेत के टापू तो हर जगह, हर मौसम में अब नजर आने लगे हैं। इन 50 सालों में गंगा की अविरलता और निर्मलता आखिर क्यों नहीं कायम की जा सकी? ये यक्ष प्रश्न हर गंगा प्रेमी के दिल दिमाग में कौंध रहा है।

वरुणा का हाल तो और भी बुरा

Varuna (वरुणा) नदी का हाल तो और भी बुरा है। ये नदी इस कदर प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी कोई स्पर्श तक नहीं कर सकता। हालांकि लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट बनाने के बाद वाराणसी में वरुणा कॉरिडोर बनाने की प्रक्रिया तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुरू की। गोलघर कचहरी के समीप लालबहादुर शास्त्री घाट से 10 किलोमीटर तक दोनो छोर पर पक्के निर्माण हुए। घाट बने, पौधरोपण हुआ। अखिलेश की सोच थी कि पहले गंगा की सहायक नदियों को स्वच्छ किया जाए फिर गंगा को स्वच्छ किया जाएगा। लेकिन 2017 में सत्ता क्या गई, वरुणा कॉरिडोर तो दूर, वरुणा फिर से नाले में तब्दील हो गई।

वाराणसी में जहां गंगा और वरुणा का संगम होता है वहां से कुछ पहले यदि कोई जाए तो पल भर को खड़ा नहीं हो सकता। राहगीर नाक पर रुमाल रखे बिना गुजर नहीं सकते। सफेद झाग नुमा पानी से सड़ांध निकलती है। इस तरफ मौजूदा सरकार का कोई ध्यान नहीं। ताजा हाल ये है कि वरुणा पूरी तरह से जलकुंभी से आच्छादित हैं। तस्वीर देख कोई कह नहीं सकता कि ये कोई नदी है।

नाले में तब्दील असि नदी पर भू-माफिया का कब्जा

बात यदि असि नदी की की जाए तो वर्षों से ये नदी जो इस शहर वाराणसी की पहचान है, धरोहर है, उसका वजूद ही मिटा दिया गया। यहां तक कि राजस्व विभाग के आंकड़ों में भी असि नदी को नाला दर्शा दिया गया है। वरुणा की तरह अस्सी पुलिया से गुजरें तो यहां भी सड़ांध का अनुभव होगा। अब तो प्रशासन ने नया तरीका खोज निकाला है, जब भी कोई वीवीआईपी आता है तो उस नदी पर कनात से ढंक दिया जाता है। स्थानीय लोगों ने असि नदी को बचाने को लंबी लड़ाई लड़ी। मामला आज भी न्यायालय में विचाराधीन है। बता दें कि वरुणा और असि नदी के बीच में बसने के चलते ही इस शहर का नाम वाराणसी पड़ा। ये दोनों ही नदियां वाराणसी की पहचान हैं। लेकिन कोई पहचान ही मिटाने पर तुल जाए तो क्या कुछ कहा जा सकता है।

गोरखपुर की आमी नदी तो वरुणा-असि से भी बुरे हाल में

बात सिर्फ बनारस की नहीं, आप गोरखपुर जाएं तो वहां आमी नदी की सेहत तो वर्षों से बदहाल है। नदी के मध्य में चुल्लू भर पानी भले दिख जाए अन्यथा वो पूरी तरह से सूख चुकी है। इस नदी को सेहतमंद बनाने की पहल कभी पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने की थी। कांग्रेस नेता विश्वविजय सिंह ने आमी की स्वच्छता को लेकर बड़ी मुहिम चलाई। इसमें मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी सरीक हुए। शहर के नामचीन लोग, सेलिब्रिटी भी आगे आईं। मगर कुछ खास नहीं हो सका।

इच्छा शक्ति की कमी और भ्रष्टाचार ने नदियों को किया बदहाल

पेरिस सिन नदी को स्वच्छ करने के लिए वहां के मेयर की इच्छा शक्ति रही। वहां वाशिंदे हैं जिनका उस नदी से लगाव है और वो उसे स्वच्छ करना चाहते थे और कर दिखाया। दूसरे ऐसे कार्यों के लिए जो संकल्प शक्ति चाहिए उसकी तो कमी है ही साथ ही भ्रष्टाचार जो हमारे रग-रग में बस गया है उसे दूर करना होगा। हमें बहुत दूर तलक जाने की जरूरत नहीं, विदेशी तकनीक की जरूरत नहीं। आप पंजाब से सबक सीख सकते हैं। लेकिन हमने तो अपनी धरोहर, अपनी थाती और अपनी पहचान को मिटा देने का अगर संकल्प लिया है तो कुछ नहीं हो सकता। प्रो प्रदीप कुमार मिश्र, Senior Prof. IIT BHU, कुलपति अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी

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