अशोक कुमार
राष्ट्रीय पुननिर्माण के लक्ष्य की प्राप्ति में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यक्तित्व के समग्र विकास एवं राष्ट्र के नागरिक तैयार करने में किसी भी देश में शिक्षा की अहम भूमिका है। पिछले 30 वर्षों में, भारत में उच्च शिक्षा में तेजी से और प्रभावशाली वृद्धि देखी गई है। संस्थानों की संख्या में वृद्धि, प्रसारित की जा रही शिक्षा गुणवत्ता के अनुपात में नहीं है। अनियोजित अति-विस्तार भारतीय उच्च शिक्षा की अक्सर की सबसे बड़ी गिरावट के रूप में आलोचना की जाती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अपने युवाओं को नियमित स्कूलों के बजाय असंवैधानिक , गैरकानूनी Dummy स्कूलों में जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
औपचारिक शिक्षा अब सिर्फ औपचारिकता रह गई
औपचारिक शिक्षा मात्र औपचारिक ही रह गई है। औपचारिक शिक्षा के विलुप्त होने के लिए हम सभी के लिए वास्तविक चेतावनी हैं। आइए हम गंभीरता से सोचें और अपनी औपचारिक शिक्षा को बचाएं। बहुत समय से मैं यह मंथन कर रहा था कि हमारी उच्च शिक्षा को किस प्रकार से सुधारा जा सकता है ! मेरे सबसे बड़ी चिंता यह थी की कक्षा में विद्यार्थी क्यों नहीं आते। मैंने कई बार कारण जानने की कोशिश करी लेकिन मुझे कोई उपयुक्त उत्तर नहीं मिला। ऐसा देखा गया है कि हमारे देश में किसी भी क्षेत्र में प्रवेश पाने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है जैसे कि आईआईटी , मेडिकल , आईएएस के लिए ! एक प्रकार से देखा जाए तो यह प्रवेश परीक्षा काफी हितकारी है।
केवल एडमिशन के लिए आते हैं स्टूडेंट्स
हम चाहते हैं कि उच्च पदों पर जिम्मेदारी निभाने वाले योग्य व्यक्ति ही चुने जाएं। इसके लिए पूरे देश में एक प्रवेश प्रवेश परीक्षा होती है और हमको उच्च कोटि के युवा मिलते हैं। लेकिन दूसरी ओर एक और बहुत गंभीर बात यह है कि इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए युवा अपने स्कूल / महाविद्यालय या विश्वविद्यालय को छोड़कर कोचिंग केंद्रों में चले जाते हैं और वहां पर प्रवेश की तैयारी करते हैं। ऐसा देखा गया है , यह भी सत्य है की उच्च शिक्षा के लिए कोचिंग संस्थान काफी मददगार होते हैं। लेकिन यह भी दुर्भाग्य है कि विद्यार्थी स्कूल / महाविद्यालय / विश्वविद्यालय में नामकरण तो करवा लेता है लेकिन कक्षाओं में नहीं जाता , Dummy School में जाता है।
प्रेरित किया जाता डमी स्कूलों के लिए
मैंने इस पर काफी चिंतन किया और जो मुझे सबसे चिंताजनक बात ध्यान में आई – ऐसे विद्यार्थी , ऐसे युवा वर्ग जोकि अपने प्रारंभिक शिक्षा के समय स्कूल से एक नियमित स्कूल में न जाकर एक Dummy स्कूल में जाते हैं और वहां से कोचिंग केंद्रों में उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। इस स्थिति को जब भी कभी मैं सोचता हूं तो मुझे एकाएक एक चिंताजनक की स्थिति नजर आती है। यह युवा जो विभिन्न उच्च स्तरीय शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार के माध्यम से जाते हैं उनके मन हमेशा यह ध्यान रहता है। यदि आपको जीवन में उच्च शिक्षा प्राप्त करनी हो या उच्च कोटि की सेवाएं प्राप्त करनी हो उसका एक ही विकल्प है कि आप स्कूल में ना जाएं , महाविद्यालय में ना जाए विश्वविद्यालय में ना जाए और केवल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करें।
जो सीखता है वही दूसरों को सीख देता
इस विचार को सोचते ही आज मुझे एक बात समझ में आ गई कि शायद वर्तमान समय में इन्हीं कारणों के कारण विद्यार्थी नियमित कक्षाओं में नहीं आते। युवा जो सीखता है उसी को अपने जीवन में अपनाता है। यदि एक युवा अपने स्कूल को छोड़कर कोचिंग केंद्र की ओर आकर्षित होता है तब वास्तव में उसको स्कूल महाविद्यालय विश्वविद्यालय के बारे में ज्ञान ही नहीं होता और इसीलिए वह अपने परिवार के सदस्यों को भी यही ज्ञान देता है ! शायद इसी कारण आज युवा नियमित कक्षा मे नहीं आता। हमें देश कि भविष्य के लिए इस विषय मे गंभीरता से विचार करना होगा।
(प्रो.अशोक कुमार, कानपुर विश्वविद्यालय और गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं।)
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