November 20, 2024
Vice chancellor

India’s Examination system: हमारी परीक्षा प्रणाली क्याा दिशाहीन हो चुकी है?

प्रो. अशोक कुमार, हायर एजुकेशन पर लगातार अपने विचार रखते हैं।

प्रो. अशोक कुमार
भारत में लगभग 1,100 से अधिक विश्वविद्यालय, 50,000 संबद्ध कॉलेज और 60 स्कूल बोर्ड हैं। एआईएसएचई रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार, उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 40.15 मिलियन छात्र हैं। नियोक्ता उम्मीदवारों की शैक्षणिक उपलब्धियों और रोजगार के लिए उपयुक्तता का कठोर मूल्यांकन करते हैं।

परीक्षाएं छात्रों की सीखने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे न केवल विषय के ज्ञान और समझ का परीक्षण करते हैं बल्कि छात्रों को उनकी ताकत और कमजोरियों की पहचान करने में भी मदद करते हैं। परीक्षा के माध्यम से, छात्र अवधारणाओं को अधिक गहराई से समझ सकते हैं और विषय वस्तु की बेहतर समझ प्राप्त कर सकते हैं।

लेकिन दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली से कैसे पूरा हो उद्देश्य?

वर्तमान परीक्षा प्रणाली बहुत ही दोषपूर्ण है क्योंकि अब परीक्षा का उद्देश्य ज्ञानार्जन नहीं बल्कि प्रमाण पत्र प्राप्त करना रह गया है। यह मुख्य रूप से जीविका चलाने और नौकरी पाने का एक साधन हो गई है। इस प्रणाली में सम्पूर्ण ज्ञान की परीक्षा नहीं होती है। इसमें स्मरण शक्ति पर एकमात्र बल दिया जाता है। अब सवाल यह कि क्या छात्रों को अगली कक्षा या सेमेस्टर में प्रमोट करने और उनके ज्ञान का आकलन करने के लिए परीक्षा आयोजित करना पवित्र है? क्या छात्रों को अन्य प्रणाली या माध्यम से प्रमोट और मूल्यांकन नहीं किया जा सकता?

और बर्बाद कर दिए गए शैक्षणिक संस्थान

परीक्षा के नाम पर न जाने कितने शैक्षणिक दिन बर्बाद कर दिये जाते हैं। दोनों पक्षों की बहुत सारी ऊर्जा छात्रों द्वारा पेपर लिखने और शिक्षकों द्वारा उनकी जाँच और मूल्यांकन करने में खर्च होती है, जो या तो शिक्षकों द्वारा सिखाई गई एक ही चीज़ होती है या इंटरनेट से चुराई गई होती है । दोनों ही मामलों में, छात्रों द्वारा दिए गए उत्तर उनके अपने नहीं, किसी और के हैं, तो शिक्षक किसका मूल्यांकन कर रहे हैं? परीक्षाओं का आधार क्या है? आज परीक्षा में नकल एक वैश्विक समस्या है। और इसमें कोई बाधा नहीं है क्योंकि विश्वविद्यालयों के साथ हित उलझे हुए हैं।

नए समय में पुरानी और जर्जर प्रणाली कितना उचित?

परीक्षा प्रणाली अब पुरानी और जर्जर हो चुकी है। कुछ नया होना चाहिए और सरकार तथा विश्वविद्यालयों द्वारा अधिक समग्र तरीके अपनाए जाने चाहिए। वर्तमान परीक्षा प्रणाली में कई खामियां हैं, जो छात्रों की शिक्षा और कौशल के वास्तविक मूल्यांकन में बाधा डालती हैं। परीक्षा प्रणाली के अत्यधिक औपचारिकीकरण के परिणामस्वरूप विनाश हुआ है। प्रश्न पैटर्न, अवधि, मूल्यांकन के मामले में एकरूपता को लेकर अत्यधिक जुनून बीते दिनों के अवशेष हैं। सभी विषय अपनी प्रकृति में भिन्न हैं और मूल्यांकन के लिए अलग-अलग मानदंडों की आवश्यकता होती है। लेकिन हमारा सिस्टम सभी के लिए एक ही आकार में विश्वास रखता है। यह हास्यास्पद है। परीक्षाओं को नियमित और निरंतर बनाना चाहिए। इससे छात्रों को अपनी सीखने की प्रगति पर लगातार नज़र रखने में मदद मिलेगी।

भरोसे की कमी

परीक्षा प्रणाली पर भरोसे में कमी का असर शिक्षा संस्थानों में शिक्षा के स्तर को बुरी तरह प्रभावित करता है। पढ़ाना और पढ़ना इस प्रकार से होना चाहिए कि किसी भी छात्र को किसी भी प्रकार की परीक्षा के लिए तैयार किया जा सके। परीक्षा प्रक्रिया में प्रश्न पत्र तैयार करने से लेकर उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन और मार्कशीट तैयार करना शामिल है।

भारत में वर्तमान परीक्षा प्रणाली में एकल-मूल्यांकन की प्रणाली है। यह केवल छात्रों की रटने की क्षमता का परीक्षण करती है और उनकी वास्तविक सीखने और समझ को नहीं मापती है। यह छात्रों पर बहुत अधिक दबाव डालती है। परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्रों को लंबे घंटे पढ़ाई करनी पड़ती है, जिससे उनमें मानसिक तनाव और चिंता बढ़ जाती है।

असमानता को बढ़ावा

यह छात्रों के बीच असमानता को बढ़ावा देती है। धनी और गरीब छात्रों के पास परीक्षाओं की तैयारी के लिए समान संसाधन नहीं होते हैं। इन खामियों को दूर करने के लिए, भारत में परीक्षा प्रणाली में परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्रों को अधिक समय दिया जाना चाहिए। इससे छात्रों पर दबाव कम होगा और वे अधिक आराम से परीक्षाओं की तैयारी कर पाएंगे।

रचनात्मकता की कमी

परीक्षा प्रणाली छात्रों की रचनात्मकता और समस्या-समाधान कौशल का मूल्यांकन करने में विफल रहती है। यह छात्रों को केवल एक ही सही उत्तर वाले प्रश्नों को हल करने के लिए प्रशिक्षित करती है, जो वास्तविक दुनिया में अक्सर आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार नहीं है।

स्मृति पर अत्यधिक जोर: परीक्षाओं में अनुप्रयोग विश्लेषण, आलोचनात्मक सोच आदि जैसे उच्च-स्तरीय कौशलों के बजाय केवल रटने की क्षमता और स्मृति का परीक्षण किया जाता है।

समझने में कमी: यह शिक्षण प्रथाओं को छात्रों को वास्तव में अवधारणाओं को समझने के बजाय सामग्री को याद करने पर केंद्रित करती है। अक्सर यह आरोप लगाए जाते हैं कि परीक्षा बोर्ड केवल रटने की क्षमता को महत्व देते हैं। इसलिए शिक्षक भी छात्रों की बेहतर सोच विकसित करने की जगह प्रश्नों के उत्तर याद करने और अच्छे अंक लाने के लिए तैयार करते हैं। ऐसे कई मौके आए हैं जब हम प्रश्न पत्रों में भाषा और समझ से जुड़ी गंभीर गलतियां, विषय से अलग प्रश्न और ऐसे प्रश्न देते हैं जो उच्च शिक्षा का परीक्षण नहीं करते हैं।

मूल्यांकन में सावधानी

परीक्षाओं को अधिक बहुआयामी बनाया जाना चाहिए। इसमें विभिन्न प्रकार के प्रश्न शामिल होने चाहिए, जैसे कि वस्तुनिष्ठ प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न, और लंबे उत्तरीय प्रश्न। प्रश्न पत्रों को तैयार करने के लिए, शिक्षा सामग्री के मुद्दे पर मानक तय किए जा सकते हैं और मूल्यांकन में सावधानी के लिए नियम लाए जा सकते हैं।इससे छात्रों की विभिन्न क्षमताओं का आकलन किया जा सकेगा।

मूल्यांकन में यह तरीका अपनाए

मल्टी-मूल्यांकन प्रणाली को अपनाना चाहिए। छात्रों का मूल्यांकन केवल एक परीक्षा के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उनकी कक्षा प्रदर्शन, परियोजना कार्य, शोध कार्य, और अन्य गतिविधियों के आधार पर भी किया जाना चाहिए।

पारदर्शी मूल्यांकन

छात्रों के मूल्यांकन की प्रक्रिया मे पारदर्शिता और निष्पक्षता महत्वपूर्ण है। छात्रों को मूल्यांकन प्रक्रिया को जानने का अधिकार होना चाहिए ! मूल्यांकन प्रक्रिया को निष्पक्ष होना चाहिए।

न हो जांच में लापरवाही

उत्तर पुस्तिकाओं की जांच लापरवाही से होती है और छात्रों को मिलने वाले ग्रेड उनके वास्तविक शिक्षा के स्तर को नहीं दिखाते हैं। गोपनीयता और समान मानक किसी भी अच्छे परीक्षा की पहचान माने जाते हैं।लेकिन बिना उचित सावधानी बरते, गोपनीयता घोटालों को जन्म देती है।

छात्रों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। परीक्षा प्रणाली को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि यह छात्रों में तनाव और दबाव को कम करने में मदद करे। अभिभावकों को इस नई परीक्षा प्रणाली के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता होगी।

इन परिवर्तनों से भारत में परीक्षा प्रणाली में सुधार होगा और छात्रों को एक बेहतर भविष्य बनाने में मदद मिलेगी। परीक्षा की प्रभावशीलता पर देशव्यापी बहस चलनी चाहिए।

(प्रो. अशोक कुमार, हायर एजुकेशन पर लगातार अपने विचार रखते हैं। प्रो.कुमार, कानपुर व गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। वह राजस्थान के वैदिक विश्वविद्यालय निंबहारा , निर्वाण विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति भी रहे हैं। वर्तमान में आईएसएलएस के अध्यक्ष और सोशल रिसर्च फाउंडेशन कानपुर के प्रेसिडेंट हैं।)

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