Prof.Ashok Kumar
विश्वविद्यालय के कुलपति का पद (Vice Chancellors selection) एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है। एक लीडर और संस्था के प्रमुख होने के नाते, विश्वविद्यालय के कुलपति को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। अकादमिक योग्यताएं, प्रशासनिक अनुभव, अनुसंधान प्रमाण-पत्र और ट्रैक रिकॉर्ड एक कुलपति का होना चाहिए। कुलपति, विश्वविद्यालय के साथ-साथ छात्रों की बेहतरी के प्रति अपने आचरण में एक स्पष्टता बनाए रखता है। एक कुलपति ऐसा होना चाहिए जो छात्रों को प्रेरित कर सके और विश्वविद्यालय प्रणाली में उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों के प्रवेश की गारंटी दे सके। कुलपति एक विश्वविद्यालय के कार्यकारी और अकादमिक विंग के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है क्योंकि वह एक ‘शिक्षक’ और ‘प्रशासक’ दोनों का प्रमुख होता है।
कुलपति के चयन में सर्च कमेटी काम करती…
किसी भी विश्वविद्यालय में कुलपति पद के चयन (Vice Chancellors selection) के लिए यूजीसी के नियमानुसार एक सर्च कमेटी होती है। समिति का अध्यक्ष माननीय कुलाधिपति द्वारा नामित एक कुशल योग्य व्यक्ति होता है , एक सदस्य यूजीसी के द्वारा नामित होता है, एक सदस्य संबंधित विश्वविद्यालय की कार्य परिषद से नामित होता है, किन्ही राज्यों में इस सर्च कमेटी का सदस्य तत्कालीन सरकार का नामित सदस्य भी होता है। ऐसा भी देखा गया है कि किसी राज्य में उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित एक सदस्य होता है। इस कुलपति सर्च कमेटी का मुख्य उद्देश होता है कि वह कुलपति पद के लिए आए हुए आवेदन पत्रों की जांच करें और जांच करके उनके अकादमिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक एवं अन्य प्रकार के अनुभव के आधार पर 3 या 5 सदस्यों का एक पैनल बनाता है।
जवाबदेही भी तय हो…
यह पैनल राज्यों के अनुसार या तो मुख्यमंत्री के पास या राज्य के राज्यपाल के पास दे दिए जाते हैं। 3 या 5 सदस्यों के पैनल से माननीय मुख्यमंत्री या और माननीय राज्यपाल दोनों के निरीक्षण के बाद संबंधित विश्वविद्यालय के लिए कुलपति का नाम चयनित (Vice Chancellors selection) किया जाता है। यह अत्यंत दुख की बात है, बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्वविद्यालय के कुलपति चयनित होने के बाद माननीय न्यायालय के द्वारा यह मालूम होता है कि चयनित कुलपति की नियुक्ति नियमानुसार नहीं हुई। कुलपति के द्वारा आवेदन पत्र में शैक्षणिक या अकादमिक या प्रशासनिक दस्तावेजों से संबंधित सूचनाएं गलत पेश की गई थी।
चयनित कुलपति यूजीसी द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार योग्यता नहीं रखते थे – जब ऐसे समाचार मिलते हैं तब बहुत दुख होता है। माननीय न्यायालय असंवैधानिक रूप से चुने गए कुलपतियों को उनके उनके पद से विमुक्त कर दिया जाता है तब बहुत दुख होता है। मन में एक प्रश्न उठता है कि इस प्रकार के दोष के लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाए।
सर्च कमेटी की जवाबदेही तय क्यों नहीं?
अक्सर साधारण तौर पर माननीय राज्यपाल या माननीय मुख्यमंत्री की ओर इशारा किया जाता है। लेकिन क्या कभी इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं किया जाना चाहिए कि आधिकारिक रूप से नियुक्त एक सर्च कमेटी के सदस्यों की क्या भूमिका है ? साधारण तौर पर इस पूरी चयन प्रक्रिया में सर्वप्रथम उस कार्यालय की जिम्मेदारी होती है जिसमें कुलपति पद के लिए आवेदन प्राप्त किए जाते हैं। उस कार्यालय की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए की आवेदनकर्ता से मांगे गए सभी दस्तावेज प्रेषित किए हैं या नहीं और उन सभी दस्तावेज के बारे में गंभीर रूप से अध्ययन करना चाहिए कि दस्तावेज में कोई कमी तो नहीं है और यदि दस्तावेज में कोई कमी है तो उसको चयन समिति के सदस्यों को बताना चाहिए।
गंभीरता से एक एक बिंदुओं का जांच हो…
चयन समिति (Vice Chancellors selection) के सदस्यों का यह कर्तव्य होना चाहिए कि कार्यालय से जो भी सूची आवेदकों की उनके पास प्रेषित की गई है वह न्यायपूर्ण है। चयन समिति के सदस्यों का यह भी कर्तव्य होना चाहिए कि यदि उनके पास कोई शिकायत आई है, या उनको यह संदेह है कि आवेदक के द्वारा भेजे गए आवेदन में कोई कमी है तब उस उम्मीदवार पर विचार करने से पहले उसकी एक संवैधानिक राय लीगल ओपिनियन अवश्य ले लेनी चाहिए। कुलपति पद के लिए आए हुए आवेदकों के पत्रावली को गंभीरता से जांच कर लेनी चाहिए और समिति संभावित कुलपतियों की सूची बनाने से पहले पूर्ण रूप से संतुष्ट हो जाना चाहिए की प्रस्तावित कुलपतियों की सूची यूजीसी के नियमों के अनुसार है और उन पर किसी भी प्रकार का कोई जांच आदि नहीं है।
इस प्रक्रिया के बाद जब सर्च कमेटी के द्वारा प्रस्तावित कुलपतियों के नाम संबंधित मुख्यमंत्री, राज्यपाल के कार्यालय में जाते हैं तब उस कार्यालय का भी यह कर्तव्य होता है कि वह सूची में प्राप्त हुए सभी आवेदकों का एक बार पुनः परीक्षण कर ले। अंत में संबंधित राज्यों के अनुसार मुख्यमंत्री या माननीय राज्यपाल के द्वारा चयनित व्यक्ति का नाम स्वीकृत होने के बाद संबंधित व्यक्ति को पत्र भेजने से पहले एक बार पुनः जांच कर लेनी चाहिए।
चयन समिति की भूमिका भी तय होनी चाहिए
संबंधित कुलपति चुनाव की प्रक्रिया को देखने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि कुलपति चयन (Vice Chancellors selection) के बाद माननीय उच्च न्यायालय द्वारा किसी कुलपति को इसलिए हटाया जाता है कि उसके पास मान्यता नहीं थी या उसने कुछ फर्जी दस्तावेज पेश किए थे। ऐसी समय मैं समझता हूं कि इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से सबसे ज्यादा दोषी चयन समिति के सदस्यों सदस्य होना चाहिए क्योंकि चयन समिति या सर्च कमेटी का का यह विशेष कार्य है कि वह संबंधित आवेदकों की पत्रावली को नियम के अनुसार उनका नाम प्रस्तावित करें।
कई सदस्य केवल सिग्नेचर करने तक सीमित
इस संदर्भ में मैंने कुछ सर्च कमेटी के सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से बात करी। तब उन्होंने एक और भी गंभीर बात बताइए कि वह सर्च कमेटी के सदस्य के नाते कुलपति का नाम प्रस्तावित तो करते हैं लेकिन वास्तव में वह कुलपति के लिए प्राप्त आवेदकों को आवेदन पत्रों को बिल्कुल जांच नहीं करते और उनके पास प्रस्तावित नामों की सूची पहले से ही या तो राज्य सरकार के द्वारा या अन्य माननीय व्यक्तियों के द्वारा दे दी जाती है। वह तो केवल हस्ताक्षर मात्र ही करते हैं।
यदि यह सही है। यह बहुत ही गंभीर मामला है इस प्रकार के प्रकरण की गंभीरता से जांच होनी चाहिए। मैं मानता हूं कि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए इस प्रक्रिया से कुलपति चुनना (Vice Chancellors selection) एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण मामला है और पूरे नियमों का पालन करने के बाद भी एक सबसे आदर्श कुलपति का चुनाव हो जाए यह भी कहना उचित नहीं होगा लेकिन मेरा यह मानना है कि यदि कुलपति पद के चुनाव के लिए कुछ नियमावली है तो उस नियमावली का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।
कुलपति चयन प्रक्रिया में एक और भी गंभीर प्रश्न है।
गलत व्यक्ति संस्थाओं का नाश कर देते
ऐसा देखा गया है कि जब एक कुलपति की नियुक्ति के बारे में प्रश्न चिन्ह उठते हैं और कोई प्रभावित व्यक्ति न्यायालय में अपील करता है तब न्यायालय की अपनी व्यवस्था के अनुसार प्रक्रिया होती है। न्यायालय की प्रक्रिया के पूर्ण होने में इतना समय लग जाता है की तत्कालीन कुलपति का कार्यकाल स्वतः ही समाप्त हो जाता है। इस प्रकार न्यायालय में अपील करने से ही कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाता और नियुक्ति में हुई धांधली को या कोई असंवैधानिक प्रक्रिया का समाधान नहीं हो पाता है। आने वाले समय मे फिर आम व्यक्ति गलत चयन प्रक्रिया ली अपील न्यायालय ले नहीं करते और गलत चयनित व्यक्ति अकादमिक Academic Institutions का सत्यानाश कर देते हैं।
न्यायपालिका भी न करे देरी
इसलिए मेरे अनुसार कि यदि कुलपति के चयन में या किसी भी संस्थान के मुखिया के चयन (Vice Chancellors selection) में यदि कोई न्यायिक प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है तो उस पर शीघ्र से शीघ्र न्यायालय का निर्णय आ जाना चाहिए क्योंकि यदि अकुशल, अयोग्य व्यक्ति॰ किसी संस्थान के उच्च पद पर लंबे समय तक रह गया तब उस संस्थान के भविष्य एक चिंता का विषय रहता है। अतःमाननीय न्यायालय को शीघ्र से शीघ्र अपना निर्णय लेना चाहिए।
निजी विश्वविद्यालयों में कुलपति के चयन (Vice Chancellors selection) के लिए राज्य सरकार द्वारा अधिनियम / परिनियम होते हैं। लेकिन निजी विश्वविद्यालय इन अधिनियम परिनियम का पालन करता है या नहीं यह राज्य सरकार का कर्तव्य है। मैं इस विषय में इस समय चर्चा नहीं करना चाहता हूं क्योंकि यह विषय अपने आप में ही एक गंभीर विषय है।
(लेखक, कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय (उतरप्रदेश) के कुलपति रह चुके हैं। इसके अलावा पूर्व कुलपति, निर्वाण विश्वविद्यालय, जयपुर व पूर्व कुलपति श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान) भी हैं।)