हैलो, मैं नाना पाटेकर बोल रहा हूं। मुझे कारगिल युद्ध में जाने की इजाजत दीजिए, देश के लिए कुछ करना चाहता हूं। फोन कॉल के दूसरी तरफ देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस थे। दरअसल, नाना पाटेकर कारगिल युद्ध के दौरान देश के लिए लड़ना चाहते थे। उन्होंने एक अधिकारी से बात की, लेकिन उसने मना कर दिया। नाना ने तब बेहिचक रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को फोन कर दिया। वहां से उन्हें हरी झंडी मिल गई। इसके बाद नाना दो महीने सेना के साथ जुड़े रहे। 1 जनवरी, 1951 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के गांव मुरुद-जंजीरा में जन्मे विश्ननाथ गजानन पाटेकर, जिन्हें दुनिया नाना पाटेकर के नाम से जानती है। नाना बचपन से ही बाकी बच्चों से अलग रहे। तेवर में बगावती सुर थे। समाज की कुरीतियों को कला के माध्यम से दिखाना चाहते थे। इसलिए पहले थिएटर में आए, फिर फिल्मों का रुख किया। नाना अपने गुस्सैल स्वभाव के लिए भी चर्चा में रहते हैं। जब रवि चोपड़ा ने इन्हें रेपिस्ट का रोल ऑफर किया तो इन्होंने गाली बक दी। फिल्म परिंदा की शूटिंग के वक्त नाना और फिल्म के डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा भिड़ गए थे। नाना ने 50 साल के लंबे करियर में तीन नेशनल अवॉर्ड जीते। सत्यजीत रे और दिलीप कुमार जैसे दिग्गज भी इनकी अदाकारी के कायल थे। नाना पाटेकर ने आज अपने जीवन के 74 साल पूरे कर लिए हैं। 74 साल की उम्र में भी वे ओपनिंग बैट्समैन की तरह क्रीज पर जमे हुए हैं। नाना पाटेकर के जन्मदिन पर उनसे जुड़े कुछ खास किस्से.. 13 साल की उम्र, दिन में 16 किमी पैदल चलते थे
नाना के पिता टेक्सटाइल पेंटिंग का एक छोटा सा बिजनेस चलाते थे। नाना जब 13 साल के थे, तभी किसी ने पिता के साथ फ्रॉड कर दिया। रातों-रात बिजनेस चौपट हो गया। सारी प्रॉपर्टी बिक गई। पैसे कमाने के लिए नाना को भी सड़क पर आना पड़ा। वे सुबह स्कूल जाते, शाम में फिल्म के पोस्टर्स पेंट करते थे। जहां पोस्टर पेंट करते थे, वहां से घर की दूरी 8 किलोमीटर थी। इस तरह दिन में 16 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करते थे। इस काम के लिए हर महीने 35 रुपए मिलते थे। यह बात 1963 के आस-पास की है। पैसों की इतनी किल्लत थी कि कभी-कभार खाना भी नसीब नहीं होता था। लंच या डिनर टाइम में नाना यूं हीं अपने दोस्तों से मिलने चले जाते थे। इस उम्मीद में कि सामने से कोई दो रोटी खाने को पूछ ले। टीचर बगल में बिठाते थे, ताकि मारने के लिए बार-बार उठना न पड़े
नाना बचपन में बहुत शरारती थे। इतने शरारती कि टीचर इन्हें बगल में बिठाकर रखते थे, ताकि मारने के लिए बार-बार उठना न पड़े। शरारत इतनी बढ़ गई कि नाना की मां ने उन्हें छठी कक्षा के बाद अपनी बहन के गांव भेज दिया। मां को लगा कि दूसरी जगह जाएगा तो सुधर जाएगा। नाना अपनी मौसी के घर एक-दो साल रहे, फिर वापस लौट आए। मौसी ने ही उन्हें वापस भेज दिया। उन्हें डर था कि नाना की संगत में कहीं उन्हीं के बच्चे न बिगड़ जाएं। खुद को बदसूरत समझते थे, पिता को लेकर पाला था भ्रम
नाना अपने आप को दूसरों से कमतर आंकते थे। वे अपने आप को बदसूरत मानते थे। नाना के दोनों भाई लुक में उनसे ठीक थे। नाना को लगता था कि पिता बाकी भाइयों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। नाना बचपन से ही गांव-दराज में होने वाले नाटक-ड्रामों में भाग लेते थे। एक बार वे गांव में नाटक कर रहे थे। उनके पिता बंबई (अब मुंबई) से सिर्फ नाटक देखने गांव आ गए। उस वक्त नाना का भ्रम टूट गया कि पिता उनसे प्यार नहीं करते। नाना को उस वक्त एहसास हुआ कि जैसे उन्होंने अपनी कला से पिता को प्रभावित किया, वैसे ही पूरी दुनिया को भी कर सकते हैं। पिता हॉस्पिटल में थे, उनकी दवाई के भी पैसे नहीं थे
नाना ने पिता को लेकर जो भ्रम पाला था, वह तो समय के साथ खत्म हो गया, लेकिन एक बात का मलाल आज भी है। नाना अपने पिता के हाथ पर एक रुपया तक नहीं रख पाए। नाना ने यह बात हाल ही में दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में कही थी। उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बात का गहरा दुख है कि अपनी कमाई से पिता के लिए कुछ नहीं कर पाया। उनका निधन भी एक म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के अस्पताल में हुआ था। उस वक्त उनकी दवाई के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरे दोस्तों ने काफी मदद की। उन्होंने ही मुझे दवा के पैसे दिए थे।’ रेपिस्ट का रोल ऑफर किया तो रवि चोपड़ा को गालियां बक दीं
स्मिता पाटिल ने नाना को बी.आर. चोपड़ा के बेटे रवि चोपड़ा के पास भेजा। रवि चोपड़ा उस वक्त फिल्म ‘आज की आवाज’ बना रहे थे। उन्होंने नाना को रेपिस्ट का रोल ऑफर किया। ऑफर सुनते ही नाना भड़क उठे। उन्होंने सबके सामने रवि को गालियां बक दीं। नाना ने कहा कि तुम मुझे ऐरा-गैरा आदमी समझते हो, क्या मैं ऐसा रोल करूंगा? यह कहकर नाना वहां से लौटने लगे। तभी स्मिता पाटिल वहां पहुंच गईं। उन्होंने नाना और रवि, दोनों को समझाया। तब रवि चोपड़ा ने उन्हें मेन विलेन का रोल ऑफर किया। नाना इस बार भी सीधी तरह नहीं माने। उन्होंने कहा कि मैं कर तो लूंगा, लेकिन अपना किरदार खुद लिखूंगा। आखिरकार उन्होंने फिल्म में काम कर लिया। विधु विनोद चोपड़ा के साथ हाथापाई, नाना का कुर्ता फट गया
फिल्म परिंदा की शूटिंग के दौरान विधु विनोद चोपड़ा और नाना पाटेकर में लड़ाई हो गई थी। यह बात खुद विधु ने एक टीवी रियलिटी शो के दौरान स्वीकारी थी। उन्होंने कहा, ‘नाना हर सीन में गाली देता था। मुझे यह बात बड़ी अजीब लगती थी। मुझे उस वक्त गालियां नहीं आती थीं। नाना बार-बार गालियां दिए जा रहा था। ऊपर से बिना शूटिंग किए घर जाने लगा। मैंने कहा कि पहले पैसे दो, फिर वापस जाओ। कम से कम मेरा नुकसान तो मत कराओ। यही बात कहते हुए मैंने उसका कुर्ता फाड़ दिया। अभी यह सब चल ही रहा था कि कैमरामैन ने शॉट रेडी कर दिया। आप फिल्म देखिए, एक सीन में नाना बनियान में बैठकर रोता दिखाई देगा। वह शॉट झगड़े के तुरंत बाद लिया गया था। खैर, शॉट परफेक्ट हो गया। बाद में नाना ने मुझे गले लगा लिया।’ सेफ्टी गार्ड पहनने से मना किया, आग में झुलसे तो स्किन उतर गई
फिल्म परिंदा के क्लाइमैक्स सीन में नाना पाटेकर को आग में जलते दिखाया गया था। दुर्भाग्यवश, नाना सच में आग में झुलस गए थे। इस वजह से उनकी पूरी स्किन उतर गई थी। दरअसल, उस वक्त की फिल्मों में आर्टिफिशियल फायर जैसी कोई चीज नहीं थी। सेट पर असली आग लगाई जाती थी। फिल्म के डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा ने नाना को सेफ्टी गार्ड पहनने को कहा था। नाना ने कहा कि अगर वे सेफ्टी गार्ड पहन लेंगे तो एक्टिंग नेचुरल नहीं लगेगी। फिर भी विधु के कहने पर उन्होंने थोड़ा बहुत खुद को ढंक लिया। हालांकि, जब सीन शुरू हुआ तो आग की लपटें उनके शरीर को छू गईं। उनके हाथ-पैर की स्किन ही गायब हो गई। मामला सीरियस हो गया। उन्हें मुंबई के नानावटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। इस घटना के बाद नाना एक साल तक फिल्मों से दूर रहे। सेना के अधिकारी ने रिस्पॉन्स नहीं दिया तो रक्षा मंत्री को लगा दिया फोन
नाना पाटेकर बचपन से आर्मी जॉइन करना चाहते थे। 1991 की फिल्म प्रहार के जरिए उनका यह सपना भी पूरा हो गया। आर्मी बैकग्राउंड पर बनी इस फिल्म की तैयारी के लिए नाना ने तीन साल तक आर्मी ट्रेनिंग प्रोग्राम किया था, जहां उन्हें कैप्टन की मानद रैंक दी गई थी। 1999 में पाकिस्तान के साथ कारगिल वॉर में नाना ने भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दी थीं। हालांकि इसके पीछे दिलचस्प कहानी है। नाना ने सेना के एक बड़े अधिकारी को फोन किया और आर्मी जॉइन करने की इच्छा जताई। अधिकारी ने कहा कि आप आम नागरिक हैं, हम आपको आर्मी में नहीं ले सकते। नाना ने तब देश के तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को फोन कर दिया। जॉर्ज फर्नांडिस पहले से नाना को जानते थे। पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन जब नाना ने उन्हें अपना आर्मी वाला बैकग्राउंड बताया, तब मान गए। उन्हें हरी झंडी दे दी। नाना कारगिल में दो महीने सेना के साथ जुड़े रहे। वहां वे क्विक रिएक्शन टीम का हिस्सा थे। क्विक रिएक्शन टीम में सिर्फ वहीं लोग काम करते हैं, जो औरों से निपुण हों और हर परिस्थिति में लड़ने को तैयार रहें। परफॉर्मेंस के बीच में जूते बरसाए जाते थे
नाना ने एक नाटक पुरुष (1981) में 16 साल अभिनय किया। इस नाटक में वे विलेन बनते थे। उनका रोल इस कदर घिनौना था कि परफॉर्मेंस के बीच में ही महिलाएं जूते बरसाने लगती थीं। जब वे जूते मांगने आतीं तो नाना मना कर देते। वे उन जूतों को सम्मान के तौर पर संभाल कर रखते थे। 1993 मुंबई ब्लास्ट में भाई को खोया, हाथ के कड़े से बॉडी पहचानी
1993 बम ब्लास्ट में नाना ने अपना भाई खो दिया था। उनके भाई जिस बस में बैठे, उसी में ब्लास्ट हो गया था। बॉडी पहचान में नहीं आ रही थी। नाना के भाई हाथ में एक कड़ा पहनते थे। उसी से शव की पहचान हुई थी। जिसमें ब्लास्ट हुआ, उसके आगे वाली बस में नाना की पत्नी नीलकांति बैठी हुई थीं। दरअसल, नाना की पत्नी और भाई साथ ही निकले थे। दोनों एक ही बस में बैठने वाले थे, लेकिन सीट सिर्फ एक ही मिली। नाना के भाई मजबूरन पीछे वाली बस में बैठ गए। अगर उन्हें पहली बस में सीट मिल जाती तो शायद जान बच जाती। सोर्स- किस्से द लल्लनटॉप का इंटरव्यू, आप की अदालत और जी टीवी के रियलिटी शो सारे गा मा पा से लिए गए हैं। ———————-
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