वाराणसी। महाशिवरात्रि (Mahashivratri) पर विशेष पंचक्रोशी परिक्रमा (PanchKoshi parikrama) करने के लिए युवाओं का हुजूम सोमवार शाम से ही मणिकर्णिका घाट पर उमड़ने लगा। घाट पर स्थित चक्रपुष्कर्णी कुंड और गंगा में स्नान कर हजारों युवाओं का हुजूम संकल्प लेने के साथ ही पंचक्रोशी यात्रा (Panchkoshi Yatra) पर शाम ढ़लते ही निकल पड़ा है। इसी के साथ काशी के चारो ओर स्थित पंचकोशी परिक्रमा मार्ग पर हर हर महादेव के जयघोष गूंज रहे हैं।
पांच पड़ावों की परंपरा है इस पवित्र यात्रा में…
मणिकर्णिका घाट पर युवाओं के हुजूम के कारण हर-हर महादेव, बोल बम और जय शंकर का घोष हर ओर गुंजायमान रहता। इस यात्रा के दौरान बीच में पड़ने वाले पांच पड़ावों पर ही विश्राम की परंपरा है। इन पांच पड़ावों की परंपरागत विश्राम के साथ यात्रा पूर्ण होती है।
क्या है मान्यता?
ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम ने पत्नी सीता और भाइयों के साथ अपने पिता दशरथ को श्रवण कुमार के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए पहली बार यह पवित्र परिक्रमा (Panchkoshi Yatra) की थी। दूसरी बार जब भगवान राम ने रावण का संहार किया तब ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ पंचक्रोशी की यात्रा की। यह भी माना जाता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने द्रौपदी के साथ यह यात्रा की थी।
कहां से प्रारंभ होती है पंचकोशी परिक्रमा?
पंचक्रोशी यात्रा का आरंभ जिस मणिकर्णिका कुंड से होता है वह एक छोटा सा जलाशय है। जो प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर ही स्थित है। कहा जाता है कि यह कुंड गंगा से भी प्राचीन है। परिक्रमा पर जाने से पहले भक्त इस कुंड से अंजुली में पानी लेकर यात्रा करने का संकल्प करते हैं। यह एक प्रकार से यात्रा पूरी करने का वचन है।
कुंड में संकल्प लेने के बाद गंगा के दक्षिणी क्षेत्र की ओर युवाओं का रेला निकलता है। यहीं से यात्रा का वास्तविक आरंभ होता है। इसके बाद रास्ते में पांच पड़ावों से गुजरते हुए 50 मील या करीब 80 किलोमीटर की यात्रा की जाती है। रास्ते में पड़ने वाले पांच पड़ाव असल में पांच मंदिर हैं। यही पांच मंदिर इस यात्रा (Panchkoshi Yatra) के महत्वपूर्ण स्थल हैं।
कौन से पड़ाव हैं परिक्रमा के और क्यों?
पहला पड़ाव कर्दमेश्वर है। यह मणिकर्णिका से 3 कोस पर है। दूसरा पड़ाव भीम चंडी कर्दमेश्वर से 5 कोस, तीसरा पड़ाव रामेश्वर भीम चंडी से 7 कोस, चौथा पड़ाव शिवपुर रामेश्वर से 4 कोस और पांचवां पड़ाव कपिलधारा शिवपुर से 3 कोस पर है। कपिलधारा से वापस मणिकर्णिका आना होता है। कपिलधारा से मणिकर्णिका की दूरी 3 कोस की है। इस तरह कुल 25 कोस की यात्रा होती है। एक कोस में 3.2 किलोमीटर होता है। इस तरह 25 कोस में करीब 80 किलोमीटर की यात्रा होती है।
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