किसी ने वॉट्सऐप पर भेज दिया चाइल्ड पॉर्न तो क्या फंस जाएंगे आप? जानें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का निचोड़​

 सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, (POCSO एक्ट 2012) के तहत अपराध के दायरे में आ सकता है

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी देखना और उसे अपने फोन या फिर लैपटॉप में रखने पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जरूरी नहीं कि आपके फोन में अगर चाइल्‍ड पोर्न है, तो आप अपराधी हो जाएंगे. लेकिन यदि आपको कोई चाइल्‍ड पोर्न फॉवर्ड करता है और आप उसे डाउनलोड कर लेते हैं या फिर देखते हैं, तो आप अपराध की श्रेणी में आ जाएंगे. अदालत ने साफ किया कि चाइल्‍ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और उसे देखना पॉक्सो एक्‍ट के तहत अपराध की श्रेणी में रखा गया है. तो चलिए आपको बताते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित यह पूरा मामला क्या है और किस तरह से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा… 

यह आदेश एनजीओ जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस द्वारा उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील में पारित किया गया है, जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चिल्ड्रन पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं है. उच्च न्यायालय के उस फैसले में न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने कहा था कि किसी के व्यक्तिगत इलेक्ट्रोनिक डिवाइस पर चिल्ड्रन पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना या फिर उसे सिर्फ देखना पोक्सो एक्ट और आईटी एक्ट के तहत अपराध नहीं है. उच्च न्यायालय ने एस हरीश नामक व्यक्ति के खिलाफ शुरू हुई कार्यवाही को रद्द करते वक्त यह टिप्पणियां की थीं. हरीश के खिलाफ अपने मोबाइल पर दो चाइल्ड पोर्नोग्राफी वीडियो डाउनलोड करने और देखने के लिए पोक्सो अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था. मार्च में इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणी “घृणास्पद” थीं.केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफिक को एक्सीडेंटली डाउनलोड करना या फिर अपनी मर्जी से डाउनलोड करना इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के तहत अपराध नहीं है.2022 में, सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरडी) को पोर्नोग्राफिक देखने और यौन अपराधों के बीच संबंध का खुलासा करने के लिए डेटा एकत्र करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था.भारत में, पॉक्सो अधिनियम 2012 और आईटी अधिनियम 2000, अन्य कानूनों के तहत, बाल पोर्नोग्राफी के निर्माण, वितरण और कब्जे को अपराध घोषित किया गया है.सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि अब न्यायलय बाल पोर्नोग्राफी शब्द का भी उपयोग नहीं करेंगे.  सर्वोच्च न्यायलय ने अपने फैसले में कहा है कि यदि कोई आपको सोशल मीडिया पर चाइल्ड पोर्न संबंधित चीजें भेजता है तो यह अपराध नहीं है लेकिन अगर आप इसे देखते हैं और दूसरों को भेजते हैं तो यह अपराध के दायरे में आता है. सिर्फ इस वजह से कोई अपराधी नहीं हो जाता क्योंकि उसे किसी ने इस तरह का वीडियो भेजा है. NDTV India – Latest 

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